वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो चुकी थीं। मिस साल्वे को करेक्शन हेतु चार कक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाएं भी मिल चुकी थीं। स्कूल में गाहे बगाहे इंविजिलेशन की ड्यूटी भी दी जा रही थी। लगातार साढ़े तीन घंटे की ऑन फुट ड्यूटी करने के बाद कभी कोई अवांछनीय सेमिनार तो कभी कोई आधारहीन वर्कशॉप….बचता आखिरकार एक घंटा…. उस बचे हुए एक घंटे में किसी तरह चार पांच उत्तर पुस्तिकाएं ही जंच पाती थीं।
फिर छुट्टी होते होते दो से सवा दो बज जाते और फिर स्कूल से घर आने में लगभग तीन बज जाते। तत्पश्चात आकर घर के सारे काम , खाना बनाना और फिर मेड के टाइम के अनुकूल अपने सारे काम जल्दी निपटाना, मेड के काम की देखरेख , फिर लगभग आए दिन ही घर की अनेकानेक पूर्ति-आपूर्तियों जैसे राशन, सब्ज़ी लाने से लेकर बिजली, पानी का बिल जमा करना …फोन रिचार्ज…मेडिकल चेकअप …घर की देखरेख इत्यादि …..सबकुछ अकेले संभालती हुई अति क्लांत मिस साल्वे जब अंततः अपने स्कूल के काम लेकर बैठती तब उनके थके हुए शरीर पर निद्रा देवी का विचरण प्रबल हो उठता।
फलस्वरूप उनके मात्र एक ही कक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं का कार्य पूरा हो पाया था। वह असामयिक निद्रा देवी के विचरण का घोर जब टूटता तब उस गए समय पर अफ़सोस करते हुए रात की पूरी समय सारिणी की उठा पटक कर देर रात तीन चार बजे तक बैठ कर किसी प्रकार से वह उत्तर पुस्तिकाओं के कार्य को पूरा कर रहीं थीं!
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उच्च शिक्षित, तीक्ष्ण बुद्धि की परिचायक, अति परिश्रमी, बहुमुखी प्रतिभा की धनी एवं स्वयमसिद्धा मिस साल्वे भाग्य की धनी नहीं थीं। अपितु अल्पायु में ही माता पिता को खो चुकी वह अभागिनी एवं दांपत्य जीवन से भी परित्यक्त इस निस्संतान स्त्री का जो यह नितांत एकांत निरंतर चलता जीवन संघर्ष था, हर मायने में असामान्य एवं अलाैकिक ही जान पड़ता था!
एक परित्यक्ता को समाज में जितनी लांछना गंजना का सामना करना पड़ता है उन सभी स्थितियों से वह अविचल जीवन पथ पर बढ़ती ही चली गईं थीं। कभी किसी के आगे सहानूभूति बटोरने हेतु अपने कठिनतम जीवन की रुदन कथा नहीं सुनाई।
असाधारण इच्छा शक्ति से परिपूर्ण एवं कर्तव्य बोध प्रबल मिस साल्वे एक शक्ति स्वरूपा थीं जिनके जीवन के किसी भी हठधर्मी प्रतिकूलता ने उनके चेहरे पर ज़रा सी शिकन भी नहीं आने दी। कभी किसी के आगे अपने आत्म सम्मान की तिलांजलि नहीं दी उन्होंने। उन्होंने अपने आप को हर रूप से – आंतरिक एवं बहिर – संवार रखा था। उनके ओजवान मुख के तीक्ष्ण नैन नक्श, उनकी नियमित योग साधना की बाबत गठित पुष्ट, सुडौल काया ने उनके इस लोक के पचास बसंत देख लेने की सूचना को अभी भी भालि भांति गुप्त रखा था! सादा, तामझाम रहित शालीन जीवन और उच्च विचारों की अनुगामी अपने छात्र – छात्राओं में भी बहु प्रचलित एवं अत्यन्त सम्मानित शिक्षिका थीं। वह हिंदी पढ़ाती थीं और अपने विषय की प्रकांड ज्ञाता भी थीं। उनके पढ़ाने की रोचक शैली बच्चों में अत्यन्त लोकप्रिय थी।
वह समय के अनुसार ढल जाने वालों में से थीं। समय के साथ चलायमान एवम् गतिशील।
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आज उनकी आंख खुली तो घड़ी के कांटे साढ़े छः बजे से कुछ आगे निकल चुके थे!! होते भी क्यों नहीं…..पिछली रात करेक्शन करते तीन बज ही गए थे…!!….और सोते सोते साढ़े तीन….!!!!
वह हड़बड़ा कर उठीं पर नीचे ज़मीन पर पैर ही नहीं पड़ रहे थे।
चोटिल घुटनों में लगातार खड़े रहने के कारण टीस से निर्लिप्त पीड़ा हो रही थी। यह पिछले कई दिनों की कहानी थी। पर आज पीड़ा कुछ अधिक ही हो रही थी। वह जैसे ही खड़े होने को हुईं वैसे ही ना जाने घुटने के ऊपर की ओर ज़ोर का खिंचाव महसूस हुआ। खिंची नस की असहनीय पीड़ा ने उनको उठने में असमर्थ बना दिया। अंततः उम्र ढलने के प्रारम्भिक संकेत दस्तक देने लगे थे। योग करने से कष्ट की तीव्रता को अति सूक्ष्म किया जा सकता है पर उसे पूरी तरह नष्ट नहीं किया जा सकता और जीवन की गति भी नहीं रोकी जा सकती।
घड़ी की सुइयां निरंतर भागी जा रहीं थीं। वेदना और हड़बड़ाहट के कारण आंखों से झर झर आंसू बहने लगे! पैर ज़मीन पर झटक कर किसी तरह खिंची नस के तनाव को बड़ी मुश्किल से थोड़ा कम कर वह बिल्कुल तूफान मेल की तरह फटाफट सुबह के काम पूरे कर नाश्ता एवम् लंच का बंदोबस्त कर तैयार होकर बस पौने घंटे में नीचे आ गईं ।
समय से स्कूल पहुंचने की घबराहट मय घुटनों में टीस मारती पीड़ा को लिए जब उन्होंने अपनी स्कूटी को पोंछ कर स्टैंड से मुक्त किया तो पाया कि पीछे का टायर पंक्चर हुआ पड़ा था!!!!!
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पौने आठ बज चुके थे!!!
पंच का टाइम था साढ़े आठ बजे का ! आज नौ बजे से उनकी इनविजीलेशन ड्यूटी भी थी! चक्रव्यूह जैसा संयोग था और यहां पसीने से लथपथ होकर मिस साल्वे असीम वेदना
को सहन करते हुए अपने घुटनों के बल झुक कर पंक्चर टायर स्टेपनी से बदल रहीं थीं।
उनका सारा शरीर थर थर कांप रहा था घबराहट के मारे परंतु उनके पास और कोई चारा नहीं था। देर से पहुंचने के भयंकर परिणाम हो सकते थे!
अपनी पीड़ा का विस्मरण कर किसी तरह वह स्कूटी को सुचारू कर उसे विमान की रफ्तार से दौड़ाते हुए स्कूल के ठीक पीछे वाले गोल चक्कर पर जैसे ही पहुंचीं उन्होंने देखा कि सड़क की मरम्मत हेतु पूरा वन वे कर रखा था प्रशासन ने! यू टर्न लेती वाहनों की लंबी कतार देख मिस साल्वे ने घड़ी देखी ….आठ बजकर दस मिनट हो चुके थे! अब उन को इस बात की पुष्टि हो गई कि आज तो सितारे गर्दिश में थे!किसी तरह इन बाधाओं को पार करते हुए जब मिस साल्वे स्कूल पहुंचीं और पंच किया तो उनका दिल बैठ गया।
हताश मन का भय प्रत्यक्ष था।
पंच टाइमर पर आठ बजकर इकतीस मिनट हो चुके थे!!!
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निराशा और घुटनों की पीड़ा को मन में ही कैद किए वह ठीक पौने नौ बजे एग्जाम हॉल पहुंची।
बच्चों की एंट्री आठ बजकर पचपन मिनट की थी। मिस साल्वे ने यथासंभव फुर्ती से उत्तर पुस्तिकाएं सबकी मेज़ों पर रखा, काउंटिंग करी….प्रश्न पत्रों का सील हटाया और फिर पचपन होते ही सभी बच्चों को हॉल के अंदर भेजा।
सबको सुव्यवस्थित कर एवं प्रश्न पत्रों का वितरण कर बच्चों को आरंभ करने की अनुमति देकर पूरी कक्षा को एक सरसरी निगाह से देखा।
हमेशा की तरह टीचरों के बैठने के लिए उस कुर्सी को छोड़ बाकी सब कुछ अपने अपने स्थान पर था। बस वही कुर्सी हमेशा की तरह नदारद थी!
संकुचित मानसिकता के अधीन स्कूल प्रशासन का मानना था कि टीचर्स टेबल के साथ दी गई कुर्सी का टीचर्स आराम कुर्सी की तरह उपयोग करते थे, पूरी क्लास में कुर्सी पर विराजमान होकर वे सभी बच्चों पर खासकर बैक बेंचर्स ध्यान नहीं देते थे। और इनविजीलेशन के दौरान तो चौकस रहने की आवश्यकता होती है तो कुर्सी की कोई जरूरत ही नहीं थी। फलस्वरूप स्कूल से इस कुर्सी का अस्तित्व ही लुप्त हो चुका था!
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अपने चोटिल घुटने की बढ़ती हुई वेदना में सम्मिश्रित रात में अति अल्प निद्रा के कारण पूरे शरीर में कभी ना खत्म होने वाली क्लांति को महसूस करते हुए मिस साल्वे कभी हॉल में टहलती, तो कभी कहीं खड़ी हो जाती।
शून्यता में देखते हुए वह अपनी इच्छा शक्ति का सहारा लेते हुए मन ही मन हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए बस इन तीन कठिन घंटों की समाप्ति तक संयम और पीड़ा सहने की क्षमता की अटूट कामना कर रही थी।
उनके पास चंद पलों के लिए भी बैठने का ना कोई उपाय था और न ही कोई व्यवस्था। बार बार कातर दृष्टि से टीचर्स टेबल के उस ओर के रिक्त स्थान को देखती और अपने घुटनों की पीड़ा को भूलने की चेष्टा करतीं।
मन में एक और चिंता ने उन्हें विचलित कर रखा था।
आज के लेट पंच के लिए उन्हें न जाने कितनी अपमानजनक ताड़ना सहन करनी पड़ेगी एवम् जद्दोजहद करनी पड़ेगी। क्योंकि मिस पंच का कोई प्रावधान नहीं था। देर चाहे एक सेकंड की हो या एक घंटे की ……मुरव्वत नहीं थी ….. हाई कमांड के पास क्षमा याचना पत्र के साथ पेश होना पड़ता था और फिर…….यह सब सोचते सोचते कितना समय निकल गया पता ही नहीं चला!
अकस्मात घड़ी की ओर नज़र पड़ी तो दो घंटे बीत चुके थे! और अभी तक कोई रिलीवर नहीं आया था!!
उन्होंने थोड़ा सा हॉल के दरवाज़े की तरफ जाकर एक पियोन को बुलाया और इस विषय में पूछा तो पता चला कि रिलीवर की ड्यूटी अल्टरनेट कर दी गई थी और रिलीविंग टाइम को पंद्रह मिनट से कम कर केवल दस मिनट कर दिया गया था!! यानी आज रिलीवर के दर्शन उन्हें नहीं होने थे!! ये नया फरमान बस बिना पूर्व जानकारी के ही आज से ही लागू कर दिया गया था! दिनों दिन नए नए अनर्गल नियमों के पिटारे में कैद होता जा रहा था टीचिंग स्टाफ!
तमाम चिंताओं को मन में लिए मिस साल्वे ने सोचा कि एक जगह ना खड़ी होकर शायद टहलते रहने से कुछ देर तक काम चल जाए। लेकिन कुछ देर की परिभाषा डेढ़ घंटे तो नहीं हो सकती थी। पूरे बचे डेढ़ घंटे कैसे बीत पाते ऐसे। अब तो दोनों घुटनों में ही भीषण पीड़ा होने लगी थी। मिस साल्वे ने पूरे हॉल में एक बार फिर नज़र दौड़ाई । आज तो सभी बेंच भी बच्चों से घिरे हुए थे। लगता रहा था कोई एबसेंट भी नहीं था। केवल तीसरी रो में बिल्कुल कोने की एक बेंच का दूसरा सिरा खाली था। मिस साल्वे की चाल भी अब डगमगाने लगी थी। वह उस अर्ध रिक्त बेंच के बहुत पास पहुंच चुकी थीं।
मरुभूमि में जल प्रपात सम प्रतीत होता यह बेंच मिस साल्वे की मृग तृष्णा की तृप्ति का एकमात्र विकल्प था। परंतु मन और मस्तिष्क का द्वंद्व एवं इस परिस्थिति से उत्पन्न हुई भीषण दुविधा उनको रोक रही थी। तभी दाहिने पांव के घुटने में एक भयंकर टीस उठी! संपूर्ण शरीर में एक कंपन की अनुभूति हुई। आंखों के आगे एक क्षण के लिए अंधकार छा गया। मन और मस्तिष्क के द्वंद्व पर अनायास ही पूर्ण विराम लग गया!
खुलते भींचते नेत्रों ने कातर होकर एक बार पुनः याचानापूर्ण दृष्टि से टीचर्स टेबल के उस ओर की रिक्तता को देखा और फिर पास पड़े उस बेंच की और बड़ी आशा लेकर वह बढ़ने को हुईं।
परंतु भयंकर कष्ट और मर्मांतक पीड़ा को वह और ना सह पाने के कारण उस बेंच तक भी नहीं पहुंच पाई!
मुख मंडल से निकली उस वेदनापूर्ण धीमी ध्वनि के साथ ही मूर्छा आ गई और मिस साल्वे की इच्छा शक्ति ने उनको पराजित करते हुए उन्हें धम्म से धरती के सुपुर्द कर दिया!