“विश्वा अन्ना!” सुब्बू सीढ़ियाँ उतरता हुआ ठिठक गया और पीछे लौट पड़ा।
“अन्ना, आप! आप कैसे!…आप ही हो न?”
“अरे सुब्बू! तू यहाँ कैसे?”
“मैं तो तीर्थयात्रियों वाली बस में इधर काशी आया, पर आप? उधर गाँव में तो सब…”
“सब यही जानते हैं कि मैं मर गया, है न. तो ठीक ही तो जानते हैं। उधर के लिए तो मैं मर ही गया।“
“हां, अन्ना, उधर तो आपका श्राद्ध भी हो गया, भोज भी हो गया और आप जब वहां से आए तो आपकी हालत भी तो ऐसी ही थी।“
“हां रे सुब्बू, तब मैं मरे जैसा ही तो था बस सांस कहीं अटकी थी जैसे, और मेरी ही तो जिद्द थी काशी में प्राण त्यागने की।“
“आप ही क्या अपने उधर तो सब काशी में प्राण त्यागना चाहते हैं। मानते हैं न कि मोक्ष मिलता है।“
“मोक्ष ओक्ष तो पता नहीं, सुब्बू, पर मुझे तो प्रायश्चित करना था। लगता था काशी जाय बिना प्राण निकलेंगे ही नहीं।“
“प्रायश्चित? प्रायश्चित काहे का अन्ना।“
“असल में तेरी मन्नी का बहुत मन था काशी में प्राण त्यागने का। वे कहती रह गयी मुझसे पर तब मैं दुकान, धंधा पानी में इतना व्यस्त था कि उसकी आखिरी इच्छा कितनी गहरी है समझ ही नहीं पाया। जब वो चली गयी तब उसकी असली कीमत समझा मैं। भरा पूरा परिवार होने पर भी कैसा अकेला पड़ गया था मैं।“
“तभी आप बीमारी हालत में काशी ले चलो, काशी ले चलो बड़बड़ाते रहते थे और जब आपके लड़के आपको काशी ले आए तो गाँव में सब कहते थे, विश्वा बड़ा भाग्यशाली है। भगवान उसके बेटों जैसी औलाद सबको दे।“
“मेरे बेटे?”
“पर अन्ना हुआ क्या?”
“वो तो मुझे भी पता नहीं, पर जब मैं थोड़ा होश में आया तो मैं यहां घाट पर पड़ा था और उन दोनों का कहीं पता नहीं था। मैं तो था ही मरणासन्न हालत में. कितने दिन हो गए थे, वे कब चले गए मुझे पता नहीं पर गंगा मैया की शरण में मैं धीरे धीरे ठीक होने लगा। और अब तो तीन साल हो गए। पहले से अच्छा हूँ।“
“तो अन्ना घर वापस क्यों नहीं आये?”
“घर?” क्षणांश को ऐसा हाहाकारी सन्नाटा उठा विश्वा की आँखों में कि सुब्बू की नजरें अपने आप ही नीचे झुक गयीं पर अगले पल ही विश्वा शांत था। “सुब्बू, मैं नहीं जानता काशी में मरने से मोक्ष मिलता है या नहीं पर मुझे तो यहां जी कर मिल गया मोक्ष… न किसी से शिकायत, न मोह। और सुन सुब्बू…”
“हाँ, अन्ना।”
“तू भी ऐसा ही समझ ले जैसे हमारी यह मुलाकात हुई ही नहीं।“
विश्वा के चेहरे का शांत, निर्लिप्त भाव सुब्बू के भीतर तक उतर गया। उसने मुस्कुरा कर हामी भरी और स्थिर कदमों से डुबकी लगाने सीढ़ियाँ उतरता चला गया।
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अन्ना – बढ़े भाई के लिए सम्बोधन
मन्नी – भाभी
(तमिल भाषा के शब्द)