खर खर करती हुई सकुन चाची की सिलाई मशीन अपनी पूरी रफ्तार से चल रही थी। वह मितभाषी थीं, परन्तु अपने मृदु व्यवहार के कारण लोगों में बहुत लोकप्रिय भी थीं। उनके दोनों सधे हुए हाथ कपड़े को आगे सरकाने में व्यस्त थे। चश्मा नाक की नोक तक खिसक आया था। कानों के छेद इतने बड़े थे कि उसमें सेंठें की डंडी तक घुस जाये। पहनी हुई बालियां, जिसका डायमंड कट कबका घिस चुका था, निरंतर हिलती हुई मानो अपनी उपस्थिति का आभास करा रहीं थीं। किसी के ब्याह का वह लहंगा सिल रहीं थीं। उनकी बूढ़ी झुर्रीदार उंगलियों ने रेशम और सलमें सितारों से उत्कृष्ट कारीगरी की थी। कमरे में चारों तरफ कतरने, सिलाई का सामान सब अस्त व्यस्त बिखरा पड़ा था। आज ही शाम को देना भी था। इतने में कुंडी खड़कने के साथ ही दरवाजा खुला और प्रेमा मौसी अन्दर दाखिल हुईं। वो चाची की रिश्ते में दूर की बहन लगती थीं, इसी नाते बिन्नो मतलब ‘बिनती’ उनको मौसी कहती थी।
‘राम, राम चाची।’
‘राम, राम, आओ प्रेमा, सब कुशल मंगल है?’
‘हां सब कृपा है।
‘चटाई पर बैठ जाओ, हाथ का काम खतम कर ले, फिर बात करते हैं। कुछ ख़ास काम है क्या?’
‘नहीं, आज पुराने सिरके में ठुकरे वाली खटाई, सूखी लाल मिर्च, लहसुन डालकर कलौंजी का छौंका लगाया है। थोड़ा तुम्हारे लिए लेते चले आयें, कि इसी बहाने मिलना हो जायेगा, कुछ सुख दुख बांट लेंगे,और क्या।’
‘अरे वाह! प्रेमा, अभी हम सोच ही रहे थे कि बिन्नो स्कूल से आने वाली होगी, क्या बनायें उसके लिए, तरकारी भी घर में नहीं थी। तुमने समस्या का समाधान कर दिया। बस अभी परांठे सेंक लेंगे और तुम्हारे सिरके के साथ हम मां बेटी खा लेंगे। समय बिल्कुल नहीं है ढेरों काम पड़ा है।’ चाची ख़ुश होते हुए बोलीं।
सकुन चाची थीं तो उनकी हम उम्र ही मगर जनता जनार्दन उनको चाची ही बुलाती थी। प्रेमा मौसी और पास आ कर बोलीं,
‘काये चाची, बिन्नों की कहीं कुछ बात बढ़ी की नहीं? उमिर तो बढ़ ही रही है।’
ठंडी सांस लेते हुए चाची बोलीं,’बात बढ़ेगी तब, जब शुरू होगी। यहां तो आवां का आवां ही ढीला है। बिन्नो पुट्ठे पर हाथ ही नहीं रखने देती है। कहती है कि वह ब्याह ही नहीं करेगी। दूसरी बात कि यहां कौन से रुपिया कौड़ी के अम्बार लगे हैं। बिनती का ब्याह होना हथेली पर सरसों उगाने के बराबर है। तुम तो जानती ही हो इनके बाबू लम्बी बीमारी के बाद भगवान को प्यारे हो गये थे। सारी जमा-पूंजी उनकी दवा-दारू में ख़र्च हो गई। बहुत कंगाली भरे दिन देखे हैं, दो कौर तक नसीब नहीं होते थे। घर घर जाकर बिन्नो ने ट्यूशन पढ़ाया है तब कहीं जाकर दाल रोटी का जुगाड़ सम्भव हो पाया।’
‘हूं! कह तो तुम बिल्कुल ठीक रही हो। लेकिन लड़की को ऐसे बिठा के तो रख नहीं सकते हैं। देखा जाए तो तुम्हारी बिटिया, जैसी औसत दर्जे की लड़कियां होती हैं वैसी है। सीना पिरोना भी जानती है, एक तरह से गुणवंती है। बहुत अच्छे संस्कार दिये हैं तुमने। फूलकुमारी नहीं बनाया है उसको, स्वाभिमानी भी बहुत है। जीवन के झंझावातों से सीखने के तमाम गुर भी सिखाए हैं। अरे हां! याद आया, कहो तो बतायें।’
चाची हंसते हुए बोली,’हां! जैसे मना कर देंगे तो नहीं बताओगी। है ना प्रेमा! जल्दी बताओ, अगर इस बीच बिन्नो आ गई ना तो घर में नया बखेड़ा खड़ा हो जायेगा। बहुत चिढ़ती है इन विषयों से।’ कह कर चाची फिर से मशीन चलाने लगीं।
‘वो जो हमारी बड़की जिया हैं ना! अरे वही, जो पल्टनिया टोला में रहतीं हैं। देखा तो है तुमने और बिन्नो ने उनको हमारे बंटिया की शादी में। उनका छोटा बेटा “बिनय” है, कहो तो बात चलायें। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि कुल खानदान भी एक ही है। दान दहेज की उनको कोई आवश्यकता ही नहीं है। जिया हमारी अच्छे खाते पीते परिवार में ब्याही गईं थीं। बहुत सुलझे हुए लोग हैं,उनके यहां बिन्नो को कोई कष्ट नहीं होगा, इस बात की हमारी फुल गारंटी है। बाकी तो हम हैं ही। कहो तो बात चलायें।’
‘क्या कह रही हो प्रेमा? वो तो बहुत पैसे और ऊंचे तबके वाले लोग हैं। सौ की सीधी बात, वह लोग इसको पसंद ही नहीं करेंगे, कहे देते हैं।’ कह कर चाची खामोश हो गईं। तब तक बिन्नो के आने की आहट पाकर प्रेमा दबे पांव वापस लौट गईं।
‘ये प्रेमा मौसी यहां इस समय क्यों आईं थीं अम्मा? अभी उनको बाहर निकलते हुए देखा है। कुछ देने आईं थीं कि लेने आईं थीं? आपके दिमाग का दही कर गईं होंगी। दूसरे के फटे में टांग घुसाने की इनकी बड़ी बुरी आदत है।’ आते ही एक सांस में बिन्नो सब बोल गई।
‘अरे नहीं! उन्होंने सिरका बनाया था वही तुम्हारे लिए दे गईं हैं। बहुत मानती हैं तुमको।’ कहती हुई वह चौके में चली गईं।
तीन चार दिनों के बाद एक इतवार को सुबह-सुबह ही सकुन… चाची..! सकुन…चाची..!’ जोर से गोहराते हुए प्रेमा मौसी धमक गईं।
दोनों परिवारों में अपनापन हद से ज़्यादा था, इसी वजह से कोई भी, कभी भी एक दूसरे के यहां प्रकट हो जाया करता था। पूछना जांचना कब ख़त्म हो गया पता ही नहीं चला।
‘क्या हुआ मौसी? काहे तूफ़ान मेल बनी हो, सब ठीक है?’
‘सब! अरे सब चकाचक है, अम्मा कहां हैं तुम्हारी?’ हंसते हुए मौसी बोली।
‘छत पर बड़ियां सुखाने गईं हैं, लेकिन माजरा क्या है मौसी? कुछ तो बताइए।’
‘का हो प्रेमा! काहे फटे बांस जैसी बजे जा रही हो, तनी सांस लेलो।’
‘सांस ले का बखत हमारे पास नहीं है। तुम्हें तो कुछ याद ही नहीं रहता है। अभी दो दिन पहले ही तो बातचीत हुई थी।’ मौसी थोड़ा झुंझला के बोली।
‘हां हां याद है प्रेमा, बात हुई…’
‘कौन सी बात अम्मा?’ बात काटती हुई बिन्नो बोली।
‘किसी से शादी वादी की बात ना करियेगा, बता रहे हैं। ये सब हमें बिलकुल पसंद नहीं है। घर में भूंजी भांग नहीं और यहां अम्मा चली भुनाने।’ भुनभुन करती हुई वह वहीं मोढ़े पर बैठ गई।
‘देखो बिनती, ब्याह आज नहीं तो कल करना ही पड़ेगा। यहां लड़का हमारा गोद खिलाया हुआ है। तुम भी जानती हो उसको। बड़की जिया का बिनय है। सब देखा भाला है।’
‘लेकिन मौसी, उन लोगों का रहन सहन काफ़ी ऊंचे स्तर का है। हमारे घर से मेल नहीं खायेगा, और ना ही हम वहां सामंजस्य बिठा पायेंगे। उनके तौर तरीके हम लोगों से एकदम अलग हैं। कम से कम अपनी इज्जत की धज्जियां तो न उड़वाइये।’ बिन्नो ने अपनी बात रखी। मगर दोनों बुज़ुर्ग महिलाओं के सामने उसकी एक ना चली।
तयशुदा दिन पर दोनो जनी जिया के घर पहुंच गईं। घर को बाहर से देख कर ही चाची की आंखे चुंधिया गईं। यहां बात बनेगी नहीं, ये सोच कर अपने साथ लाए हुए झोले को और कस के पकड़ लिया। काहे से उसमें घर के बने हुए बेसन के लड्डू थे। ब्याह की बात करने हाथ झुलाते तो जाया नहीं जा सकता है ना! बात बनती है तो ठीक, नहीं तो बिगड़ेगा तो कुछ भी नहीं। बड़की जिया सचमुच बहुत अपनेपन से मिलीं, ख़ातिर तवज्जो भी खूब की। कहने लगीं कि, ‘देखो चाची बात ऐसी है कि बिनय के पापा तो अपनी हैसियत के अनुसार ही शादी करना चाहते हैं, अगर लड़की बहुत अच्छी हुई, जैसा कि प्रेमा कह रहीं हैं तो हो सकता है कि वह मान जायें। रही बिनय की बात तो उसको हम देख लेंगे। लाखों में है हमारा लाल। बात नहीं टालता है कभी हमारी। ऐसा करो बिनती की फोटो दिये जाओ।’ चाची इतने प्यार भरे आश्वासन से निश्चिंत हो गईं और घर वापस आ गईं।
‘क्या हुआ अम्मा?’ धक्के खा के आ गईं? कितना मना किया था। हम लोग गरीब हैं तो क्या हमारी कोई इज्जत ही नहीं हैं? आप भी ना..।’
‘शान्त हो जाओ, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। जिया ने फोटो रख ली है। बिनय और उसके पापा से बात करके बतायेंगी।’
जिया ने अपने कहे का मान रखा। बिनय और उसके पापा को साम, दाम, दण्ड, भेद की नीति अपना कर राज़ी कर लिया। लड़की दिखाने के समय केवल जिया ही बिन्नो से बात करती रहीं। बिनय से कहा गया कि वह भी कुछ बातचीत कर ले, क्योंकि निभाना तो उसी को है। लेकिन उसने सिर हिला कर मना कर दिया।
शुभ दिन, शुभ मुहूर्त में बिनती और बिनय की शादी हर्षोल्लास, गाजे बाजे के साथ सम्पन्न हो गई। सारा ख़र्चा पानी भी जिया की तरफ से ही उठाया गया था।
विवाह की पहली रात वह बिनय का बेसब्री से इंतज़ार करती रही। लेकिन वह नहीं आया। दूसरे दिन सुबह जिया उसको बाकी रस्मों के लिए बुला कर लें गईं। उसने अकेले ही सभी रस्में निभाई। मुंह दिखाई में इतना ज़ेवर मिला था कि वह सोने से मानो मढ़ सी गई थी। हर कोई उसके भाग्य से ईर्ष्या कर रहा था। लोग तो यहां तक कह रहे थे कि ‘बिनती ने सोने के जौ बोये होंगे तभी उसको बिनय जैसा पति नसीब हुआ है।’ लेकिन ये सब उसे अब चुभ से रहे थे। उसके असली गहने से अभी तक उसकी भेंट नहीं हुई थी। उसका दिल अब घबराने लगा था। उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। उसने मन को समझाया कि हो सकता है किसी काम में फंस गए हों, आज रात में आ जायेंगे। घर में कोई छोटा देवर या ननद थी नहीं जिससे वह पूछ लेती।
रात में जिया बिनय को लेकर उसके कमरे में आईं ओर हंसते हुए बोली, ‘लो संभालो अपने पति को।’ और दरवाजा बंद करके बाहर चलीं गईंं। वह अचकचा कर खड़ी हो गई। बिनय ने उसको बैठने का इशारा किया, वह मंत्रमुग्ध सी बैठ गई। वहीं उसके सामने वह भी बैठ गया। बिन्नो का दिल हर्षातिरेक की उत्तेजना से बेहिसाब धड़क रहा था, जैसे कि शायद ये उसका आख़िरी सफ़र हो। बिनय ने उसे वहीं रखे हुए जग से पानी उसको पीने के लिए दिया। उसने एक सांस में गिलास खाली कर दिया। बिनय ने बताया कि ये शादी उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हुई है। वह एक विजातीय लड़की से विवाह करना चाहता था। लेकिन उसके मां बाप को यह मंज़ूर नहीं था। उन्होंने ज़बरदस्ती ये ब्याह करवाया है। वह चाहे तो अपना पूरा जीवन यहां बिता सकती है। बहू होने के सारे अधिकार उसे मिलेंगे। किसी चीज़ की कमी नहीं है यहां। लेकिन उससे वह कोई भी आस ना रखे। इसके बाद उसने चुप्पी साध ली।
बिनती को काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई थी। बिनय ने तो उसके पैरों के नीचे से चादर ही ख़ींच ली। वह धड़ाम से मुंह के बल आसमान से पटकी गई थी। एक क्षण नहीं लगा उसकी दुनिया उजड़ने में।
‘अ.म्..मा..के ..पा..स..हमें..छो..ड़..आ..इ..ये।’ कंपकंपाती आवाज उसके गले से निकली। अपने आपको संयत करते हुए उसने एक गिलास पानी फ़िर से पिया और बाहर आ गई, अंदर अब उसको घुटन होने लगी थी।
सीधा वह अपनी सास के पास गई, ‘अम्मा जी, हमें घर पहुंचा दीजिए।’
‘कल तो तुम्हारी चौथी की बिदाई है, तुम्हें तो जाना ही है।’ बड़े प्यार से जिया बोलीं।
‘जब आपको पता था कि आपका बेटा किसी और के साथ बंधा हुआ है तब आपने हमारी ज़िन्दगी क्यों ख़राब की?’ आपको इसका जवाब देना पड़ेगा।
‘हम लोगों ने सोचा था कि जब किसी के साथ फेरे पड़ जायेगें तो बिनय की अक्ल ठिकाने आ जायेगी। घर गृहस्थी का बोझ अच्छे अच्छों को सुधार देता है। ये प्यार व्यार कुछ नहीं होता है बस वक़्ती बुखार है जो समय के साथ अपने आप उतर जाता है। थोड़ा धैर्य रखो बहूरानी, सब ठीक हो जाएगा।’
‘आपने एक साथ तीन ज़िंदगियां ख़राब की हैं। क्या ठीक होगा? शादी कर देने से क्या सब ठीक हो जाता है? केवल लड़कियां आजीवन इस कष्ट को झेलती रहती हैं, पर पति का प्यार उन्हें कभी नहीं मिलता। हमें इस दर्द के साथ नहीं रहना है।’
‘देखो बिनती, तुम यहां रहो या कहीं और, ब्याह तो तुम्हारा बिनय के साथ हो चुका है। ये चूड़ी, बिंदी, मंगलसूत्र जो तुम ठाट से पहने खड़ी हो ना वह इसी शादी की बदौलत है,वरना तुम लोगों की आर्थिक स्थिति तो ऐसी नहीं थी कि इतने बड़े घर में ब्याही जातीं। कल जब तुमको बिदा कराने आयेंगी ना तुम्हारी अम्मा, तब चली जाना। जाओ अपने कमरे में बैठो।’
उसके साथ धोखा किया गया था। आंखों से धाराप्रवाह आंसू बहे चले जा रहे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसकी दुनिया बसने भी ना पाई थी कि उजाड़ दी गई। कितने सपने संजो कर आई थी, क्षण में बिखर गये। उसकी गलती कहां थी? किसी का क्या बिगाड़ा था उसने। निर्धन होना अपराध है क्या,जो उसे स्वार्थसिद्धि के लिए इस्तेमाल किया गया? वह कमज़ोर नहीं है, ग़रीबों का भी आत्मसम्मान होता है। इन सबकी षड्यंत्री योजनाएं वह कामयाब नहीं होने देगी। इस दृढ़ता के साथ अपने घर से लाये हुए कुछ कपड़े बैग में रखे और जिया के हाथ में चूड़ी, बिंदी, मंगलसूत्र थमा कर घर से बाहर हो गई। उसकी चौथी और आखिरी बिदाई हो गई थी। सामने खुला आसमान था।