बचपन और युवावस्था में पैसा जेब में रुकता नहीं और बुढ़ापे में जेब से निकलता नहीं! कारण यह कि इस उम्र में इच्छाओं पर बहुत अधिक नियंत्रण हो जाता है। मेरी पेंट की जेब में पॉंच सौ का नोट ना जाने कितने दिनों से पड़ा था, बाहर घूम आता पर नोट बाहर निकालने की कोई जरूरत ही नहीं पड़ती। ये नोट मेरी एक पेंट की जेब से दूसरे पेंट की जेब में ट्रांसफर होता रहता। लगता था नोट पर विराजमान बापू भी एक ही जगह रहते रहते उदास हो गये हैं।
एक दिन घूमने निकला तो न जाने कैसे वह नोट जेब से गिर गया । घर आकर पता चला तो मैं उसे ढूँढने निकला। सड़क पर जैसे मैं चल रहा था उससे सभी को पता लग रहा था कि मैं कुछ ढूँढ रहा हूँ। तभी अचानक एक व्यक्ति ने पूछा कि आपका कोई नोट गिरा था क्या? मैंने तुरंत हॉं कहा और उस व्यक्ति से पूछा कि क्या आपने उसे किसी को उठाते हुए देखा है? उसने कहा कि गली के नुक्कड़ पर जो छोटी झोंपड़ी है, उसमें एक बारह तेरह वर्ष का लड़का रहता है उसने वह नोट लिया है। मैं तेज़ी से उधर बढ़ा। झोंपड़ी के बाहर मैं रुका क्योंकि अन्दर से आने वाली आवाज़ों से ऐसा लग रहा था, मानो आज कोई बहुत बड़ा त्योहार है।
लड़का कह रहा था कि मैं आज मॉं के लिए नया दुपट्टा, पापा के लिए नया पायजामा और छुटकी के लिए नयी फ्रॉक लाया हूँ । तभी ज़ोर से थप्पड़ की आवाज़ सुनाई दी और ये शब्द भी कि तूने ये रुपये कहाँ से चुराये? मैं तपाक से अन्दर गया और बोला “ये रुपये मैंने आपके बेटे को दिये हैं”और तुरंत बाहर आ गया।
मुझे लगा, आज नोट पर विराजमान बापू भी मुस्कुरा रहे होंगे।