हरिया, छोटी जाति का छोटा आदमी। यह बात वो जानता भी है और मानता भी। वह कभी प्रश्न नहीं करता कि एक ही ईश्वर के संतानों में यह ऊँच-नीच भेदभाव क्यों? उसने तो सहजता से स्वीकार लिया है समाज द्वारा दी गई हर शिक्षा को, कि वह छोटी जाति का है और ग़रीब है और गऱीबी ही उसका भाग्य है। यह भी की बड़े लोगों की चाकरी करना ही उसका काम है। वह इसी को अपना जीवन मानता है। बड़ा बनने का बड़े बड़े सपने वह नहीं देखता।
वह पिछले दो वर्षों से विधायक जी के यहाँ झाड़ू लगाने व चाय नाश्ता लाने का कार्य करता है। विधायक जी बहुमत से विधायक बने हैं, ग़रीब दुखियारों का विशेष ध्यान रखते हैं। तभी तो हरिया जब हाथ जोड़ कर उनके सामने खड़ा हो गया तो वो मना न कर पाएं। विधायक जी कहते हैं, “अरे, अब जात पात कहाँ रह गया है यह तो केवल राजनीतिक मुद्दा है।”
हरिया सदैव हाथ जोड़े उनके समक्ष खड़ा रहता है। विधायक जी बहुत कृपा है उस पर। “रजनीगंधा लाने को 100 रुपये देते हैं तो बचे हुए पैसे कभी वापस नहीं मांगते। बड़े दयावान हैं।” हरिया सदा गुण गाते रहता। इस महँगाई में 5000 पगार देते हैं। हरिया इसी में संतुष्ट है। ज़्यादा की अपेक्षा नहीं रखता। मगर उस दिन विधायक की अंगूठी पर नज़र पड़ी तो आँखें चमक उठी। अंधेरे में भी जगमगा रही थी। तबसे उस अंगूठी को लेकर जाने कैसा मोह मन में बैठ गया है। “आह! कितनी सुंदर है। दुर्गा माता की मुकुट में लगे नग जैसा।”
ग़रीब के जीवन में कितनी ही इच्छाएं पनपती हैं और मर जाती हैं। मगर इस हीरे की चमक तो जैसे उसकी आँखों में समा गई। वह उसे भूल ही नहीं पा रहा था। यहाँ तक कि सपने में भी वो हीरा नागमणि बना शिवजी के जटों में लगा दिखा। मगर जब वो उसे लेने को बढ़ा तो शिव जी के गले के साँप ने डंस लिया। फिर वो बचा कि नहीं यह देखने के पूर्व ही उसकी आंखें खुल गई। वो हीरा उसके हृदय में बस गया था और उसे पाने की इच्छा अब तृष्णा बन गई। परन्तु उसे प्राप्त करने की कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी। ऐसे में स्वयं विधायक जी ही उसके पथ प्रदर्शक बनें।
विधायक जी अपने कुछ सहयोगियों के साथ बैठे देश दुनिया की बातें कर रहे थे। मिश्रा जी बोले- “राज्य में दिन दहाड़े चोरी डकैती लूटपाट हो रहा है पर अपराधी पकड़े नहीं जाते। आज तो अपने शहर में भी दो बदमाशों ने दिन दहाड़े एक व्यक्ति की मोटरसाइकिल छीन ली। परंतु पुलिस तो शांत बैठी है।”
“बात तो सही कह रहे हैं आप। परंतु क्या कीजिएगा देश दुनिया ऐसे ही चलती है। यह सब भी जीवन का हिस्सा है मानो।” विधायक जी ने रजनीगंधा चबाते हुए कहा।
उनकी यह बात हरिया के लिए संजीवनी के समान थी। ” अच्छा तो अब अपराध करना कोई बड़ी बात नहीं। बल्कि संसार का चलन है। अब तो अपराधी को पकड़ा नहीं जाता” उसके अचेतन मन में घंटी बजी।
आधी रात को जब उसकी आंखें खुली तो बल्ब की रौशनी में भी उसे हीरा चमकता दिख रहा था। मन का चोर कूदकर बाहर आ गया। “क्या सोचता है हरिया इतनी तो चोरी डकैती होती है कितने पकड़े जाते हैं। और अंगूठी तो बहुत छोटी चीज़ है छुपा लो तो पता भी ना चले। ” ना ना, यह ठीक नहीं.. हरिया ने अपनी परछाई से मुँह फेरा। मगर मन भी कहाँ शांत बैठने वाला था फिर बोल पड़ा- अरे विधायक हैं वो। समुंदर में से एक लोटा पानी निकाल भी लो तो क्या फ़र्क पड़ता है। दो चार दिन में भूल जाएंगे। पर तेरे जीवन की दशा सुधर जाएगी। कम से कम इस चूते छप्पर से तो मुक्ति मिलेगी। अभाव में सुख की अनुभूति ने उसे बहकाया। मगर वो फिर अटका- ना ना कहीं कुछ हो गया तो..
मन फिर उकसाया- अरे कुछ ना होगा इतनी छोटी सी चीज़ छुपा के निकल जाए। चुराया कैसे जाए यह सोच। परछाई ने कहा और विलुप्त हो गई।
अगले दिन उसे वो अवसर मिल ही गया। विधायक जी स्नान से पहले अपने आभूषण टेबल पर रख देते हैं। उसी समय…
आज उसका मन किसी भी कार्य में नहीं लग रहा था। जो करता उसी में गड़बड़ कर रहा था। बार बार दृष्टि विधायक जी पर जा टिकती कि कब वो स्नान के लिए जाएं मगर वो थे कि उठ ही नहीं रहे थे। ऐसे ही सुबह से शाम हो गई। आखिर संध्या 5 बजे वो स्नान करने को गए। पीछे टेबल पर छोड़ गए अपनी हीरे की अंगूठी। हरिया चुपके से कमरे में घुसा मगर मेज के निकट जाकर कदम थम गए। हृदय की गति अत्यंत तीव्र हो गई। मुँह में जैसे धूल उड़ रही थी। मन ने टोका तो बढ़ा हुआ हाथ रुक गया। मगर दिल पर दिमाग़ हावी हो गया और उसने शीघ्रता से अंगूठी उठा कर धोती में खोंस ली। काँपते पैरों से नीचे सीढ़ी पर आ बैठा। काँपते पैरों को उसने अपने दोनों हाथों से थम लिया। अपने ही हृदय का स्पंदन कानों में गोली की आवाज़ सी लग रही थी। उसे तो भाग जाना चाहिए था मगर वो तो उठ नहीं पा रहा था। लग रहा तंग पीठ पर भारी बोझ लदा हो। उसे घोर आश्चर्य हुआ एक छोटे से हीरे की टुकड़े का इतना वजन। वह इसका भर वहन नहीं कर पा रहा था। ऐसा नहीं कि इससे पहले उसने चोरी नहीं कि थी। कितनी ही बार दूसरे के खेतों से टमाटर और ककड़ियाँ चुराई है मगर यह कैसी दशा। ना वह इसका भार ना उठा पाएगा। उसने अंगूठी को पुनः अपने स्थान पर रखने का निश्चय कर उठ खड़ा हुआ तभी अंदर से शोर सुनाई दी।
“अरे यहीं तो रखा था। कहाँ गई?”
विधायक जी चिल्लाए।
“ध्यान से देखें वहीं गिर गई होगी”। मालकिन ने कहा।
शोर सुनकर विधायक जी के दोनों अंगरक्षक भी ऊपर दौड़े इसी क्रम में हरिया जो गेट के निकट था से टकरा गए। साथ ही धोती से निकल अंगूठी फर्श पर आ गिरी। शाम के अंधेरे में भी अंगूठी जगमगा उठी। “अरे यह रही अंगूठी”
सबकी दृष्टि एक साथ अंगूठी पर पड़ी। और साथ ही पास खड़े हरिया पर टिक गई।
“अबे साले तूने अंगूठी चुराई!”
दोनों अंगरक्षक और विधायक जी के छोटे भाई एक साथ उस पर टूट पड़े।
मालिक क्षमा करें। गलती हो गई। हरिया गिड़गिड़ाया।
गलती! साला चुराकर भाग रहा था
नहीं मालिक हम- तो -रखने- आये- थे।
उसके शब्द मुँह में ही रह गए क्योंकि गार्ड ने अपनी बंदूक उसके सर पर दे मारी थी।
धड़ाम!! स्वयं को बचाते हुए हरिया का हाथ ढीला पड़ा और वह फर्श पर गिर पड़ा। फर्श पर उसका लाल रक्त फैल गया। कमरे में अचानक सन्नाटा फैल गया। थोड़ी देर बाद विधायक जी का स्वर गूंजा-
” अरे हरामज़ादे, यह क्या कर दिया। चुनाव सर पर है… हरिजन है ये..हमरा सबसे बड़ा वोट बैंक। पूरी लंका जला डाली।” विधायक जी विचलित हो उठे।
सर सर हम तो.. गार्ड पसीने में नहा गया।
चटाक! विधायक जी के भाई ने एक तमाचा उसके मुँह पर जड़ा।
“तूने किया है तू समझ। चिक्की पीसना जेल में। ”
“नहीं साहब, हम जेल नहीं जाना चाहते। हमको बचा लीजिए सर। हमारे चार छोटे बच्चे हैं”। गार्ड विधायक जिनके कदमों में लोट पड़ा। विधायक जी चिंतित मुद्रा में खड़े थे। उनका दिमाग तेज़ी से कुछ सोच रहा था।
” यह बात यदि तूल पकड़ेगी , बात कोर्ट तक पहुंची तो चुनाव का तो बंटाधार..”
वह धम से सोफे पर बैठे। कुछ क्षण चिंतन की मुद्रा में बैठने के बाद बोले-
“ठीक है हम तुम्हें जेल नहीं भेजेंगे लेकिन हम जैसा कह रहे हैं चुपचाप वैसा करते जाना।”
कहते हुए पास रखा फूलदान उठा कर गार्ड के सर पर दे मारा। छलछलाकर खून उसके माथे से बह निकला। वह दर्द से चीख़ उठा।
“मरेगा नहीं, शांत रह”। विधायक जी ने डाँटा तो वह शांत हो गया।
“अब इसे लेकर इसके घर जा। कह देना मोटर साइकिल से तेरे साथ बाज़ार जा रहा था। रास्ते में दुर्घटना हो गई। हरिया का सर पत्थर से जा लगा जिससे… । समझे?”
जी.. जी सर। गार्ड हाथ जोड़ते हुए बोला।
हरिया के घर के बाहर चीख़ पुकार मच गई। गार्ड ने रोते रोते दुर्घटना की कहानी सुनाई-
“क्षमा करें अम्मा। काश! ईश्वर हमें उठा लेता। हरिया भैया को छोड़ देता।”
चीख़ पुकार से पूरा गाँव इकट्ठा हो गया था। थोड़ी देर बाद विधायक जी की गाड़ी उसके द्वार आकर रुकी। विधायक जी हाथ जोड़े अम्मा के सामने खड़े हो गए।
अम्मा इस हानि की पूर्ति नहीं हो सकती। पीड़ा से हमारा हृदय फट रहा है। दो वर्षों से हमारे यहाँ काम करता था परंतु कभी कोई त्रुटि न की। पता नहीं भगवान ने क्यों..
उन्होंने रूमाल निकाल अपनी आँखें पोंछी।
हरिया की हानि की पूर्ति तो हम नहीं कर सकते परन्तु उसके पीछे उसके परिवार को रोता ना छोड़ेंगे। हरिया का परिवार हमरा परिवार है।
फिर थोड़ा ऊंचे स्वर में बोले-
हरिया के दाह संस्कार का सारा वहन हम करेंगे। और इसका परिवार भी अब हमारी जिम्मेदारी। और अम्मा हरिया को तो नहीं लौटा सकते परन्तु इसके परिवार को संभालने के लिए यह तुच्छ भेंट दे रहा हूँ। स्वीकार करें।
कहते हुए अपनी हीरे की अंगूठी निकल अम्मा के हाथ में रख दी।
आशा है इससे कुछ सहारा मिलेगा। और आगे मेरा द्वार हरिया के परिवार के लिए सदा खुला रहेगा।
दीपक के हल्के प्रकाश में हीरा जगमगा उठा।
वातावरण में एक शोर गूंज उठा।
“विधायक जी की जय”।