आज सोसायटी की ग्रुप पोस्ट पढ़ी , जिसमें लिखा था कि आगामी 21 जून को योगा डे सेलिब्रेट किया जायेगा। उसके लिए सोसायटी गार्डन में शनिवार,रविवार प्रैक्टिस सेशन भी होगा, अतः सभी लोग ज़्यादा संख्या में जुड़ें!
शनिवार को यूँ तो बच्चों का स्कूल नहीं था अतः मेरे पास जाने का भी ऑप्शन था, किंतु मैंने जाने के बजाय पतिदेव के साथ चाय की चुस्की मारना योगा से ज़्यादा हितकारी समझा। चुस्की लेते हुए मैं बोली,”सुनो! सुन रहो हो क्या..?” पतिदेव के जवाब न देने पर फिर से मैंने झिड़का।
“बोलो”, बड़ी ही बेरुख़ी से उधर से उत्तर आया। “देखो ना कितने कम लोग हैं प्रैक्टिस में। सिर्फ़ 5 बच्चे और 3 बड़ी आंटियाँ। लोग बाग कुछ नहीं करते”, मैं बोली। “तुम क्यों नहीं गई?” पतिदेव ने सवाल दागा। “मुझे आता है न ये सब। ये बेसिक है। 21 को जाऊँगी मैं।” तपाक से मैंने भी जवाब दे डाला।
उसी शाम को फिर से ग्रुप पर पोस्ट आई कि “ 21 जून को जो भी बच्चे और बड़े योगा सेशन में भाग लेंगे, उन सभी को अपना रजिस्ट्रेशन करवाना होगा क्योंकि ‘ग्राउंड स्पोर्ट्स कम्पनी’ इस कार्यक्रम को स्पॉन्सर कर रही है और भाग लेने वालों को एक फ्री गिफ़्ट, फ्री नाश्ता और 500 रुपये का वाउचर भी दिया जाएगा।
बेटे ने बोला ,”मम्मी आप रजिस्टर कर दो अपना नाम!आप करती हो ना योगा!”
“फ्री में नाश्ता मिलेगा मम्मी …” उसने शरारत से मुझे देखा। मैंने सिर्फ़ अपना नाम रजिस्टर किया क्योंकि बेटा अभी हाल ही बीमारी से उठा था और हमारे पति को इन बेकार की बातों में पड़ना कभी भी अच्छा नहीं लगता!
21 जून की 6 बजने से पहले ही लॉन में बच्चों की आवाजाही शुरू हो गई। वैसे भी बच्चों ने ही पूरे प्रैक्टिस सेशंस में भाग लिया था। मुझे ताज्जुब तो हमारी प्रिय महिलाओं को देखकर हुआ था, तब महसूस हुआ कि “योग” वाक़ई में बड़ा ही ज्वलंत मुद्दा है देश का।
प्रोग्राम बड़े ही अच्छे ढंग से “स्पोर्ट कंपनी” के युवा वर्ग द्वारा संचालित किया जा रहा था । Zumba पर हर वर्ग थिरक रहा था और हम तो आज स्वयं को 20 साल का सा महसूस कर रहे थे। हमने भी अपनी एक नई कविता मंच से पहली बार सुनाकर सोसायटी में अपनी लेखन कला का परिचय दिया और कुछ तारीफ़ों के पुलिंदे भी समेटे।
अब बारी आई गिफ़्ट,वाउचर और फ्री नाश्ते की! “प्रोग्राम में भाग लेने वाले सभी बच्चों को गिफ़्ट और नाश्ते का कूपन पहले दिया जाएगा। कृपया शांति बनाये रखें और लाइन में आ जायें।“ ये अपील एक लड़की के द्वारा माइक से की जा रही थी। बच्चों की लाइन बनना शुरू हुई। हमारे दोनों बच्चे भी वहीं आ डटे। हालाँकि दोनों ने कुछ भी नहीं किया था। पर क्या हुआ! मम्मी ने तो किया था ना! मम्मी का गिफ़्ट हमारा गिफ़्ट! कुछ इस तरह की भावना उनकी मुझे समझ आई। और क्यूँ न आयें भला! माँ जो ठहरी।
दोनों हमारा गिफ़्ट और खाने का कूपन लेकर रफूचक्कर हो गये। फिर हमारा संघर्ष शुरू हुआ वाउचर के लिये। स्पोर्ट कंपनी वालों की टेबल पर लोगों की भीड़ जुट चुकी थी और लोग अपने वाउचर प्राप्त कर खुद को धन्य महसूस कर रहे थे। वहीं कुछ हम जैसों को हौसला भी बढ़ा रहे थे।
जैसे-तैसे हम आगे तक जा पहुँचे। वहाँ एक लड़की ने हमसे फोन में कंपनी का मैसेज दिखाने के लिए बोला। अब हम लगे मशक़्क़त करने! ”क्या, कहाँ,कैसे?” जैसे कई सवाल हमारे साथ अन्य लोग भी दागे जा रहे थे। “हमने तो रजिस्टर किया था। हमें तो वाउचर मिलना चाहिए ना? हमारी गलती नहीं है ये। आपके सिस्टम में ही ग़लती है। नेटवर्क नहीं आ रहा , कहाँ से आपको verify करें मैसेज?”
हमारे आस-पास से सिर्फ़ यही आवाज़ें लगातार आ रहीं थीं। एक बुजुर्ग सज्जन तो वाउचर के लिए आपा ही खो बैठे। हमें भी हमारा मैसेज मेल में दिख नहीं रहा था। तभी अचानक दिमाग़ की घंटी बजी कि मेल id तो पति का दिया था। फिर क्या था! भागे पतिदेव को ढूँढने। देखा तो वह दोनों बच्चों के साथ गन्ने का रस और समोसा का आनंद ले रहे थे । वो भी फ्री का!
देखते ही हम ग़ुस्से में बोले ,”फ़ोन दो अपना। उसमें कुछ मैसेज आया था?”
पतिदेव ने रस को मुँह में भरकर बड़े ही हल्के में जवाब दिया “पता नहीं”पता नहीं …???? और लपक कर हमने उनके हाथ से फ़ोन छीन लिया। अब हम ही देखते है …. तमतमाए से हम फ़ोन में पड़ताल करने लगे। पर मैसेज था कि मिलने का नाम ही नहीं ले रहा था। बेटे ने गन्ने का रस से भरा गिलास दिखाकर कहा ,”मम्मी,देखो” हमने भी बड़ी ही बेरुख़ी से कहा ,पी लो! और हम वापस काउंटर पर जा पहुँचें। बड़ी मशक़्क़त के बाद अब कूपन और 500 रुपये का वाउचर हमारे हाथ में था। हम सीधे बच्चों और पतिदेव की तरफ़ बढ़े चले गए।
हमने उत्साहित होकर कूपन और वाउचर दिखाया। पतिदेव हाथ में समोसे की प्लेट को मरोड़कर बोले ,” आख़िर में ले ही आई।” हमने भी मुस्कुराकर जवाब दिया ,”तो क्या नहीं लाती?” अच्छा!अब जल्दी बताओ समोसा और जूस कहाँ मिल रहा है? कहकर जूस के ठेले की तरफ़ हम सरक पड़े। वहाँ भी भीड़ थी पर कुछ जद्दोजहद के बाद गन्ने का रस को अपने अधिकार में कर लिया और एक ही झटके में पी कर गला तर किया।आख़िर 6 बजे से अपनी ऊर्जा खर्च किये जा रहे थे।
अरे !!! समोसा तो भूल ही गए…फिर अचानक ही याद आया। वो समोसा कहाँ है? ज़रा लेकर तो आ ,बेटे को पसीना पोंछते हुए हमने बोला।
बेटे ने रस पीकर मुँह भींचकर कहा ..,”समोसा !!! वो तो खतम हो गया!” आप वाउचर के चक्कर में रह गईं । हमने तो कूपन देकर समोसा खा लिया।” बेटे ने बड़ी ही बेफ़िक्री से जवाब दिया।
अब…….बड़ी मुश्किल से हम बोले। अब क्या ? कुछ नहीं ..बाप- बेटे दोनों हँसकर हमें सांत्वना देने लगे कि योगा के बाद कोई समोसा खाता है भला! हाय ! काश ,एक टुकड़ा समोसा तो छोड़ देते! समोसा! मेरा समोसा ग़ायब हो चुका था। ख़ाली पड़े इमली चटनी और हरी चटनी के मर्तबान आपस में हँसकर आज की रस्साकशी पर चर्चा कर रहे थे।