डंकी वो मुश्किल सफर है जिसमें भूख, गोलियां, सरहदें लांघनी होती है। कोई बंदूक की गोली से मरे, कोई भूख से फ़र्क है जी! ये संवाद है कल रिलीज हुई शाहरुख खान की फिल्म के। डंकी यानी गैरकानूनी तरीके से अपने मुल्क से किसी दूसरे मुल्क में प्रवेश करना और वहाँ शरणार्थी बन काम करना। भारतीय लोग सालाना तौर पर लाखों की संख्या में इस तरीके से विदेशों में जाते हैं। जिसमें बेहद मुश्किलों का सामना उन्हें करना पड़ता है। बहुत से तो बीच रस्ते में मारे जाते हैं। या तो भूख से या फिर बन्दूक की गोलियों से। आम भारतीय जो महंगे वीजा और हवाई यात्राओं के खर्च को नहीं उठा सकते उनके पास यही एक रास्ता बचता है।
फिल्म में भी कुछ पात्र है जो इसी तरह से लंदन जाने का ख़्वाब पाले हैं। किसी की माँ दर्जी है तो कोई घर के लोन से परेशान होकर विदेश जाना चाहता है। ताकि वहाँ डॉलर कमाकर भेज सके। लेकिन क्या वे सभी अपने-अपने सपने पूरे कर पाएंगे? फिल्म इसी बात को प्रमुखता से दिखाती है। बहुत सी जगहों पर हास्य के रूप में तो बहुत सी जगह आँखें नम कर देने वाले सीन से।
आम लोग जो ख़ास बनने की चाह में विदेश जाना चाहते हैं ये सोचकर कि वहाँ उनके लिए डॉलर की भरमार है और कम पढ़े लिखे होने के बाद भी वे खूब सारे डॉलर कमा पाएंगे इस बात को उठाते हुए फिल्म असली हकीकत भी बयाँ करती है उन लोगों की जो गैरकानूनी तरीके से वहाँ बस तो गए लेकिन वहाँ से हमेशा अच्छी ख़बरें और तस्वीरें ही भेजते हैं ताकि उनके घर वालों और दुनिया समाज को यह नजर आये कि वे वहाँ के कोई राजा बन गये हों।
भारत के पंजाब राज्य में तथा उसके आस-पास के इलाकों में यह समस्या ख़ास तौर पर आम बात बन गई है। लेकिन डंकी के रास्ते इतने आसान होते भला? फिर कोई भी काम गैरकानूनी ढंग से किया गया कैसे आपको कुछ अच्छा दिला सकता है जीवन में? फिल्म इन मुद्दों पर भी बेहद संवेदना भरे अंदाज में बात करती है।
निर्देशक राजकुमार हिरानी ने जिस कहानी को उठाया है वह आपके-हमारे समाज की आम कहानी है और उसमें उन्होंने कलाकारों से जिस तरह काम लिया है उससे डंकी की समस्या ही नहीं बल्कि प्रेम की कहानी भी बेहद खूबसूरत तरीके से उभर कर सामने आती है। शाहरुख खान, तापसी पन्नू, विक्की कौशल, सतीश शाह, बोमन ईरानी, जेरेमी व्हीलर, क्रिस काये, विक्रम कोचर, अनिल ग्रोवर, अत्तिला अरपा मिलकर लेखक, निर्देशक की कहानी को जिस अंदाज में पेश करते हैं वह पहले भाग तक तो बेहद हल्के और हास्यपूर्ण तरीके से दिखाया गया लगता है। दूसरे भाग तक आते-आते फिल्म आपको कई दृश्य ऐसे दिखाती है जिससे आप इसे बनाने वालों को दाद देते हैं कि एक बेहद जरूरी मुद्दे पर कुछ तो बात हुई।
‘डंकी’ का मतलब भारतीय समाज में इतना है कि एक अवैध यात्रा, जिसे बहुत से लोग अपने देश से बाहर दुनिया भर की सीमाओं के पार जाने के लिए करते हैं। इसे गधा यात्रा कहा जाता है सचमुच जिस तरह से फिल्म दिखाती है उससे भी यही प्रतीत होता है कि अपना देश ही भला। फिर कई दिनों, महीनों तक ऐसी-ऐसी यात्राएँ करना जहाँ जीना मुहाल हो जाए, भला ऐसा भी क्या डॉलर और विदेशी मोह।
फिल्म अपनी कहानी से यह भी बताती है कि अगर कायदे से हमारी सरकारों ने गरीबों, गुरबों के लिए सच में कुछ किया होता तो उन्हें आज ऐसे मुश्किल सफर तय नहीं करने पड़ते। फिल्म के गाने, बैकग्राउंड स्कोर, कैमरे का इस्तेमाल और तमाम तकनीकी पक्ष इतने मजबूत बन पड़े हैं कि आपको फिल्म कहीं अखरती नहीं। अलबत्ता इसकी स्क्रिप्ट पर कुछ मेहनत और की जाती तो इसे बेवजह लंबा होने से बचाया जा सकता था। हाल फिलहाल के लिए इसे अवश्य देखिए ख़ास करके वे लोग जो ‘डंकी’ के रास्ते विदेश जाकर डॉलर कमाकर अपना रुतबा बढ़ाने का सोच रहे हैं। ऐसी फ़िल्में हमें अपने मुल्क से मोहब्बत करना सिखाती है कि भले हम अपने मुल्क में रूखा-सूखा खा लें लेकिन इस तरह अवैध तरीके अपना कर विदेशों और विदेशियों की गंदगी ना ढोने लगें। फिल्म के तमाम कलाकारों द्वारा दिया जा रहा साल का आखिरी हास्य मिश्रित यह सन्देश हर भारतीय तक अवश्य पहुंचना चाहिए।
अपनी रेटिंग…. 3.5 स्टार