अष्टरंग
पहली बात जन्म ही नहीं
चाहिए था
मिला तो मिला
दूजी बात
तुमसे नहीं मिलना चाहिए था
तीसरी बात
तुम्हें जानना भी नहीं चाहिए था
जान लेने के बाद का कहर
बांध की तरह टूटता है
नदी का दर्द है कि
ख़र्च ही नहीं होता है
चौथी
पाँचवी
छठी या सातवीं बात
सप्तसदी, सप्तऋषि
सात सुर
सात चक्र, तारे, समुद्र
सात रंग
सात आश्चर्य की बातें
कबसे घायल पड़ी हैं
और रही….
नवीं बात की बात…..
एक बार अजनबी होने का मौका मिले
तो तुम्हें दस पल की मौहलत न दूँ
तुम्हारी आँखों में
शून्य ठहराकर वापस लौट आऊँ
छूट गया बीच में आठवां अंक
वो मेरा प्रिय अंग है और
तुम्हारे लिए आठवां आश्चर्य
जिसे तुम मेरा घमंड कह सकते हो
मैं अष्टरंग ही कहूँगी …….!!!
——————
मुझे हर बार बारिशों ने रोका है
तुझसे अपना दुःख कहते हुए
सभ्यताओं के विकास के साथ
मुझे भी आ गया है जज़्ब करना जज़्बात को
प्रेम को विस्तार देते हुए सृष्टि के दुःख से मेरा लिपटना भी
इच्छित नहीं तुम्हारे लिए
खींच कर तोड़ देते हो बातों को इतना कि …
ओज़ोन परत में हुए छेदों की
वजह भी मैं हुई
मेरे सुख बीजने की आदत से क्या तुम सुख में हो?
शीतल हो क्या स्वम् की मनाग्नि के विस्फोटक से ?
सूरज को भी जला देने वाली ज्वाला से ?
अनुत्तरित कब तक रहोगे
प्रश्नवाचक चिन्ह बनकर सदियों खड़ी रहूँगी
शीत लहर हो या शीत युद्ध
हर ऋतु के भीतर का सन्नाटा अब मुझे प्रिय है
तुम्हारी दी गई अप्रियता की हिस्सेदारी
आज भी ..मेरी प्रियता पर की गई तीरंदाज़ी
तुम्हारे अपर्याप्त प्रीत का
निशान है
हँसते हुए तुम्हारे लिए रांधे हुए दूध-भात में
शक्कर के साथ कुछ नमक का स्वाद रहा
सच कहना, चखा है क्या कभी आँसुओं का स्वाद?
मैंने चखा है मीठापन, खारापन, कड़वापन नशीले उद्दाम का
रूह की बात जाने दो
देह को जला दे
धूप की मजाल ही क्या?
तुम्हारे प्रेम में गलने से भी
मुझे हर बार सिर्फ़ बारिशों ने ही रोका है……!
Photo Credit: Syed Akhtar Hussain