एक फागुन ऐसा भी
ए सखी, फागुन आयो री
हाँ सखी, फगुआ गाओ री।
कैसे गाऊँ फगुआ!
अबकी, फगुआ का रंग बड़ा फीका।
काहें सखी?
पिया जी गए परदेस का?
ना री सखी, पिया तो यहीं हैं हमरे पास,
खाली पिया संग थोड़े है फगुआ त्योहार।
अबके बरिस माई जी नहीं, बाबूजी नहीं
आ, उनका कवनो आसिसो नहीं।
किसका गोड़ छुएंगे रंग- अबीर डाल!
कौन देगा सुख- सौभाग्य आसीरबाद?
लईकन का मुँह देख, लेगा कौन बलाए?
देख तरक्की बेटवा की, छाती कौन फुलाए?
सारा धन छीन लिया कोरोना महाकाल,
ओ धन में रहे अनमोल, माई जी का प्यार!
ऊ गईं सब बिखर गया,
सास-ससुर बिन ससुरा क्या!
जेठ पईसा मांगे, ननदी हीरा हार,
पिया जी को चिंता, है करजा अपार।
हमरे जईसन होंगे इहाँ लोग हजार,
राम जाने कईसे लगेगा बेड़ा पार!
कोरोना में अइसन बढ़ी महंगाई,
पगार पड़े कम, अब जोड़ें पाई- पाई।
साँचो री सखी, अबकी विपत घड़ी आई!
विपत में अपना, पराया हुआ
आ, जो कोई नहीं था उहे अपना हुआ।
केतना रंग में रंगी, अलबेली है ये दुनिया,
ओमे रंग अनोखा सबसे प्रेम रंग मुनिया।
ओही प्रेम में रंगा हुआ राजा, रंक, फकीर
कह गए इसको ढ़ाई आखर, एक रहिन कबीर।
जेतना दिन का दाना-पानी, ओतने दिन की महिमा,
जिस दिन आँखें मूंद गईं फिर किस्सा कौन कहिंना।
एतना पर भी जे ना समझे उनकी बुद्धि भरम है,
हमरे बात का तू सखी क्या समझे कुछ मरम है?
सखी री, समझे कुछ मरम है?
सखी की पनियायी आँखे, ढब-ढब चुए लोर,
मेरे मन की पाती पढ़ ली, तू कैसी चितचोर?
सखी तेरी पाती क्या, ई तो किस्सा है घर-घर का
हमरे-तुमरे, इसके-उसके ई किस्सा जीवन भर का!
का करें फिर, कब तक रोएँ, बीती रतिया हो गई भोर,
ई नयनन का नमक चुक गया, कोई न पोछे लोर।
सखी री, कोई न पोछे लोर!
ई जिनगी का ताना बाना, चलेगा जब तक है साँस,
अपने लईकन का मुँह देखो, उनको किसका आस?
आओ सखी, खिला पलाश है, फागुन की है माया,
रंग बसंती में रंग जाएँ, फगुआ मन को भाया!
सखी री, फगुआ मन को भाया !