नौकरी करने वालों के अपने ही टंटे हैं। नौकरी चाहे सरकारी हो, अर्द्धसरकारी हो, गैरसरकारी हो, दुकान में हो या प्रतिष्ठान में, दस मंजिला कार्यालय में हो या एक तल्ले कार्यालय में हो, कुछ बातें सभी प्रकार के कर्मचारियों पर लागू होती हैं। एक तो बॉस या अधिकारी किसी का अच्छा नहीं होता। कुछ ना कुछ खड़ूसियत तो होती ही है। यह उसका दोष नहीं, उसकी कुर्सी का दोष है, जिसमें बैठते ही उस पर अहंकार, अभिमान और स्वयं के श्रेष्ठ होने का भाव अपने आप आ जाता है। जो बाॅस खड़ूस नहीं होता उसकी कोई सुनता भी नहीं इसलिए मिथ्या हो या सत्य, बॉस होने के लिए कुछ मात्रा में ऐंठू होना आवश्यक है। यूं समझ लीजिए कि यह आवश्यक योग्यता है। कर्मचारियों का एक ही सपना होता है कि काम काज कम करना पड़े और नंबर फुल मिलें। इसका सीधा, सच्चा, टिकाऊ, परीक्षित तरीका चापलूसी करना है। जो जितनी उच्च कोटि का चापलूस वो उतना ही सफल। चापलूसियत और मस्का पालिस करने को कोई आसान काम नहीं समझना चाहिए। यह गुण बहुत तपस्या के बाद सिद्ध होता है। आत्मा की आवाज, जो हर बात में टांय-टांय करने अवश्य आती है, उसे दबाना पड़ता है। इस हद तक दबाना पड़ता है कि दोबारा उसकी चूं भी ना निकले। यही नहीं अपने स्वाभिमान को घर के कबाड़ के साथ बेच देना भी जरूरी है। कहीं ये रह गया तो पूरी तपस्या निष्फल होने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। इतने भर से काम नहीं चलता, फिर लच्छेदार बातें बनाने में भी कुशल होना चाहिए दस-बीस शेर, चालीस-पचास गाने आने चाहिए। जिनका भाव ये निकले कि जो तुमको हो पसंद वही बात करेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो रात कहेंगे। साथ ही चाटुकारास्त्र चलाने में निपुणता प्राप्त होनी आवश्यक है। इन शार्ट, आपके पास दो किलो मक्खन सदैव तैयार होना चाहिए। जहां मिले बाॅस उसके ऊपर बिना संकोच लगा देना चाहिए। बास कितना भी कठोर हो इस प्रकार की गई निरंतर तपस्या से पिघलता जरुर है और एक बार पिघला तो समझो तपस्या सुफल।
इसके साथ ही एक और गुण अपेक्षित है। वो ये कि अपने को कोई काम आता हो या ना आता हो, दूसरे के काम का क्रेडिट लेना अवश्य आना चाहिए। इसमें ‘बने रहो पगला, काम करे अगला’ वाली नीति अपनाकर अपना काम दूसरे से करवा लेना चाहिए और उसे सौ फीसदी अपना बताकर बाॅस के सामने रखना चाहिए। सबसे अच्छे कर्मचारी के लिए बाॅस के कान भरना भी जरूरी है। यदि कभी गलती से बाॅस किसी अन्य कई प्रशंसा कर दे तो इसके लिए फुसफुसा कर इतना कह देना पर्याप्त है कि, ‘काम-वाम तो कोई कर ले, पर आपके बारे में फलाने को ऐसा नहीं कहना चाहिए था।’ ये फुलझड़ी निश्चित काम करती है। जैसे ही बाॅस जिज्ञासा दिखाए तुरंत दूसरा वाक्य जड़ देना मुफीद होता है कि, ‘सर ! अब क्या ही बताएं, आप इतने सज्जन है फिर भी आपके पीठ पीछे आपकी बुराई कर रहा था। खैर आप टेंशन ना ले मैं हूं ना। वो नादान है, मैं समझा दूंगा।’
प्रत्येक कला का एक लेवल होता है कि उसमें किस उच्च स्तर तक पहुंचा जा सकता है। किंतु चापलूसी एक ऐसी अद्वितीय कला है, जिसका शास्त्रों में कोई उल्लेख ना होने पर भी सफलतापूर्वक सबसे अधिक आजमाई जाने वाली कला है। ब्रह्मास्त्र एक बार को लक्ष्य से भटक सकता है, पर मस्का पालिस शस्त्र लक्ष्य भेद कर ही आता है। ऐसे निष्काम तपस्वी बॉस कोई भी हों, पता लगा ही लिया जाता है कि उनको क्या -क्या पसंद है। इतना तो शायद उनके घरवालों को या उनके बेबी, शोना जादू-टोना को भी नहीं पता होता जितना इन तपस्वियों को उनके बारे में पता होता है। एक कार्यालय में कार्यरत सुखीराम अपने नाम की तरह सदैव सुखी रहते हैं। नया बास आते ही उसे क्या पसंद की लिस्ट अपने दिमाग में फीड कर लेते है और तदनुसार उनकी कार्रवाई चालू हो जाती है। नया बास आया नहीं कि उसके घर तक उनकी पहुंच हो जाती है। बास का नाम पता चलते ही वे उनके पुराने सहयोगियों से उनकी पसंद-नापसंद, घर खानदान, नाते रिश्तेदार आदि का ब्यौरा पर्सनल डायरी में डिटेल में विधि विशेष टिप्पणी नोट करते और साथ ही उनकी फेसबुक, इंस्टाग्राम आईडी का गहन अध्ययन चालू कर देते हैं। बाॅस के अनुसार रंग बदलकर अनुकूलन स्थापित करने में वे गिरगिट से अधिक दक्ष हैं। जैसे यदि बाॅस साहित्य प्रेमी है तो उसके पसंदीदा लेखकों की किताबों के कुछ अंशों का रट्टा लगाकर एकदम साहित्यिक प्राणी बन जाते हैं। बाॅस को शायरी पसंद है तो हर बात में उनके मुख से शेर जरुर निकलता है, भले काम की बात निकले या न निकले और यदि कहीं आसान बाॅस हुआ और खाने-पीने का शौकीन हुआ तो फिर सोने पे सुहागा। रास्ते में किसी प्रसिद्ध हलवाई की दुकान से कभी कचौरी, कभी ढोकला, कभी मटर चाट अपने स्टील के डब्बे में पैक करवाकर ले आते हैं। बाॅस की उम्र अनुसार उसके समक्ष कुछ इस अंदाज में प्रस्तुत करते, ‘साहब, आपकी बहू ने बनाया है और कहा है कि सर को जरुर खिलाइयेगा।आखिर वो हमारे अन्नदाता हैं।’ एक तो मनपसंद खाना दूसरे उच्च कोटि की लल्लो चप्पो। बाॅस बचकर कहां जायेगा। फिर जिसका नमक, चीनी, तेल, मसाला खाया हो उसका कर्ज तो उतारेगा ही। फिर क्या मजे ही मजे। इसलिए एक नई कहावत बननी चाहिए कि ‘चापलूसी हजार नियामत है।’