लघुकथा
गायत्री ने जुगल को एक बार घर से बाहर निकलते वक्त फिर से याद दिलाया -”आज तुम्हारा तीसरा दिन है। आज भी खाली हाथ मत लौटना। नहीं तो आज बच्चे मानने वाले नहीं हैं। कल पड़ोसन के यहाँ से पार्टी में बची पूड़ी लाकर खिलाया था। सम्मी की माँ का नरसों का उधार लिया दो सौ रूपया भी चुकाना है। उधर पंसारी सौदा देने से मना कर रहा है। सबके अपने तकाजे हैं। मैं आखिर कहाँ तक देखूँ?”
आखिर जुगल से भी नहीं रहा गया और वह गायत्री पर बिफर पड़ा -”आखिर तीन दिनों से बोहनी नहीं हो रही है। तो मैं क्या करूँ? मैं शौक से थोड़ी ही खाली हाथ लौटता हूँ। कुकुरमुत्ते की तरह बेगारी बेरोजगार लड़के हो गये हैं। एक तो आर्डर नहीं है। भेड़ों से ज्यादा गड़ेंरी हो गये हैं। न ही मैं घर में बैठा रहता हूँ। सुबह नौ बजे से रात दस बजे तक आखरी आर्डर के इंतजार में मैं सड़कों की खाक छानता रहता हूँ। अब जब बाजार ही ज्यादा खराब रहता है, तो कोई क्या कर सकता है?”
पर्वतपुर पहाड़ी एरिया है। यहाँ बारिश कुछ ज्यादा ही होती है। ऑनलाइन ऑर्डर बरसात में कम ही निकलते हैं। फिर गाँव ज्वार वाला एरिया होने के कारण पिज्जा- बर्गर और पेटिस खाने वाले लोग हैं ही कितने? वो तो शहर में पढ़ने वाले आजकल के नौजवान लड़के- लड़कियों के शौक-मौज की चीज है।”
“पापा…बहुत भूख लगी है। कुछ खाने के लिए लेकर आओ ना।”
रंगोली ने जब बहुत लाड़ से कहा तो जुगल की तंद्रा टूटी -”हड़बड़ाकर बोला, अभी देखता हूँ। जाकर बाहर से कुछ लाता हूँ।”
जुगल ने जेब टटोली। कल रात जब वो घर आने के लिए लौट रहा था। तब उसकी जेब में एक पाँच रूपये का सिक्का था और उसी सिक्के से उसने एक पैकेट बिस्किट खरीद लिया था। रास्ते में उसमें से एक बिस्किट निकालकर खाया था। बाकी के पाँच- छ: बिस्किट उस पन्नी में पड़े थें। जुगल ने मुस्कुराते हुए वो बिस्किट का पैकेट रंगोली की ओर बढ़ा दिया। वो कूदती -फांदती बिस्किट का पैकेट लेकर बाहर भाग गई।
जुगल ने अपनी मोटर-साईकिल निकाली बैग को पोछा। तभी उसकी नजर बैग पर लिखी इबारत पर पड़ी। जिसके मजमून कुछ इस तरह के थें -”आज आप क्या खाएँगें?”
बड़ी अजीब बात है। वो खुद लोगों से पूछता रहता है कि ”आज आप क्या खायेंगें?” लेकिन आज तक कभी उसने अपनी फैमिली से नहीं पूछा कि आज आप क्या खायेंगें?
उसने गौर से देखा बैग के ऊपर लिखी इबारत पर किसी का ध्यान तो नहीं गया। बच्चे बाहर खेल रहें थें। गायत्री कपड़े धो रही थी l
लगा उसने कोई चोरी की हो। और वह पकड़ा जायेगा। वह जल्दबाजी में मोटर-साईकिल लेकर सड़क पर आ गया। धूप में बैग पर लिखी इबारत बैताल की तरह जुगल के कंधे पर सवार होकर पूछ रही थी -”आज आप क्या खायेंगे..?”