एक गाँव में एक गरीब चरवाहा रहता था। वह अनाथ था। चरवाहा हर रोज अपनी भेड़ों को चराने के लिए पास के जंगल में ले जाता था। उसकी भेड़ें जब तक घास चरतीं, चरवाहा उस घने जंगल में पहाड़ी की ढ़लान पर उगे पेड़ों की छाँह में बैठ अपनी बाँसुरी पर दिलकश धुनें छेड़ा करता था। शिकारी जानवरों को भेड़ों से दूर रखने के लिए वह अक्सर ढ़ोल, पखावज आदि वाद्ययंत्रों पर भी थाप लगाया करता था। चरवाहा जब बहुत छोटी सी उम्र का था तभी से वह इस जंगल में भेड़ों को चराने के लिए आता था। वह मुँह अंधेरे जंगल में भेड़ों को लेकर आ जाता और अंधेरा होने से पहले उन्हें लेकर गाँव लौट जाता। इस तरह से जंगल के जानवरों ने भी चरवाहे की उपस्थिति को अपने बीच अब स्वीकार कर लिया था। गाँव के लोग कहते कि चरवाहा पशु-पक्षियों की बोली समझता है।
एक दिन की बात है भीषण गर्मी पड़ रही थी, तेज धूप में सारे घास जल गए थे, हरी हरी घास की तलाश में चरवाहा अपनी भेड़ों को जंगल में काफी आगे तक ले गया। जब उसकी भेड़ें वहाँ घास चर रही थी तब चरवाहा एक घने और विशालकाय पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर पूरी तन्मयता के साथ ढ़ोलक बजा रहा था।।।कि तभी उसने देखा कि उसके ढ़ोल की आवाज को सुनकर एक हिरणी घने जंगल से निकल कर वहाँ आ पहुँची है। देखते हीं देखते वह हिरणी उसकी बगल में आकर बैठ गई। चरवाहे ने देखा उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। जैसे जैसे चरवाहा अपनी ढ़ोलक पर थाप लगाता हिरणी की आँखों से आँसुओं की झड़ी लग जाती।
दिन बीत चला, शाम हो गई। चरवाहा अपनी भेड़ों को समेट कर गाँव की ओर चल पड़ा। दूसरे दिन वह फिर से भेड़ों को चराने जंगल पहुँचा। और अपनी पखावज पर उसने ज्यों हीं थाप लगाई वही हिरणी फिर से वहाँ आ पहुँची। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।।
दो दिन, तीन दिन, चार दिन, पाँच दिन बीत गए पर ये स्थिति नहीं बदली। चरवाहा ज्यों हीं पखावज पर थाप लगाता मृगी मानो वहाँ खिंची चली आती और उसके पास बैठ कर रोने लगती।
एक दिन चरवाहे ने ढ़ोलक पर बीच में हीं थाप देनी बंद कर दी और तब रोती हुई वह हिरणी वापस जाने लगी, चरवाहे ने जब दुबारा ढ़ोलक पर थाप दी वह वापस आकर फिर से बैठ गई। चरवाहे को अब इस बात में कहीं से कोई संशय न रहा कि हिरणी ढोलक की थाप सुनकर हीं रोती थी। तब चरवाहे ने अपनी ढ़ोलक को किनारे रखा और हिरणी के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। उसने कहा, क्या मुझसे कुछ ग़लत हो रहा है? मैं पिछले कई दिनों से देख रहा हूँ कि मैं जब भी पखावज बजाता हूँ, तुम यहाँ आकर रोने लगती हो। इसका क्या कारण है? मुझे बताओ, क्या मुझसे कोई भूल हुई है?
तब हिरणी ने कहा, तुम कौन हो ये मैं नहीं जानती, मुझे ये भी नहीं पता कि यह तुम्हारे हाथ में कौन सा वाद्ययंत्र है। लेकिन जब भी तुम इस वाद्ययंत्र को बजाते हो, तुम्हारे हाथ की हर थाप मेरे हृदय को आघात देता है, मेरे दिल में टीस उठती है, क्योंकि तुम्हारे वाद्ययंत्र पर जो खाल लगाई गई है, वह मेरे प्रेमी, मेरे युगल, मेरे साथी की है…
यह सुनकर चरवाहा अवाक रह गया। हिरणी की आँखों से आँसुओं का गिरना जारी रहा। वह निःसहाय सी बोली, मेरा तुमसे एक अनुरोध है कि मेरी मृत्यु के बाद इस यन्त्र के दूसरी ओर तुम मेरी चमड़ी को मढ़वा देना।
तुम्हारे इस वाद्ययंत्र से निकलने वाला संगीत, सुनने वाले के मन को तभी परम सुख प्रदान कर सकता है जब उससे निकलने वाली धुन में दोनों तरफ से समान लय की तरंगें प्रस्फुटित होंगी। जब तक दोनों किनारों से समान लय की तरंगें नहीं निकलती तब तक बात बेअसर रहती है। मेरे चिर प्रेमी के चमड़े से मढ़े इस वाद्ययंत्र की आवाज़ में विरह का दु:ख है। यह दुःख मुझे भी सहना है…और यह कहते कहते उस हिरणी की उसी वक्त मृत्यु हो गई।
घोर अपराध बोध के साथ दुःखी मन से उस चरवाहे ने उस मृगी की खाल को पखावज के दूसरी तरफ लगवाया जिसकी एक तरफ उसके प्रेमी की खाल मढ़ी हुई थी। और फिर जब उस पखावज पर चरवाहे ने पहली थाप मारी तो उसकी आँखों से आँसू बह चले। ऐसा लगा मानो दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे से बातें कर रहे हों, एक दूसरे का आलिंगन कर रहे हों, एक दूसरे का सुख-दुख साझा कर रहे हों, एक सच्चे प्रेमी प्रेमिका जिसने न केवल जिंदगी बल्कि मृत्यु को भी साझा कर लिया था।
अनायास चरवाहे ने महसूस किया कि जंगल की हवा एक अदृश्य लय के साथ प्रवाहित होने लगी है, जिसके साथ घुल रही है एक सच्चे प्रेम की खुशबू।