वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इतिहास बोध को लेकर लिखी साठ पृष्ठों की लम्बी कविता ‘पुरातत्ववेत्ता ‘ तथा पहल में प्रकाशित लम्बी कविता ' देह ' के लिए चर्चित कवि लेखक शरद कोकास के दो कविता संग्रह 'गुनगुनी धूप में बैठकर' और 'हमसे तो बेहतर हैं रंग' प्रकाशित हैं ।
कविता के अलावा उनकी चिठ्ठियों की एक किताब 'कोकास परिवार क
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और इतिहास बोध को लेकर लिखी साठ पृष्ठों की लम्बी कविता ‘पुरातत्ववेत्ता ‘ तथा पहल में प्रकाशित लम्बी कविता ' देह ' के लिए चर्चित कवि लेखक शरद कोकास के दो कविता संग्रह 'गुनगुनी धूप में बैठकर' और 'हमसे तो बेहतर हैं रंग' प्रकाशित हैं ।
कविता के अलावा उनकी चिठ्ठियों की एक किताब 'कोकास परिवार की चिठ्ठियाँ' और नवसाक्षर साहित्य के अंतर्गत तीन कहानी पुस्तिकाएं भी प्रकाशित हुई हैं । इसके अलावा देश की प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिकाओं में उनकी पांच सौ से अधिक कविताएँ, लेख व समीक्षाएं प्रकाशित हो चुके हैं ।
साहित्य लेखन के अलावा दर्शन एवं मनोविज्ञान के अध्येता शरद कोकास अन्द्धश्रद्धा निर्मूलन क्षेत्र में भी एक एक्टिविस्ट के रूप में कार्यरत हैं । उनकी विचार श्रंखला 'मस्तिष्क की सत्ता' सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध है । वे अन्द्धश्रद्धा निर्मूलन व वैज्ञानिक चेतना के विकास हेतु विविध विषयों पर व्याख्यान देते हैं तथा ब्लॉग लेखन भी करते हैं ।
विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व में परास्नातक कवि शरद कोकास की गद्य रचना ‘ एक पुरातत्त्ववेत्ता की डायरी ‘ के अंश भी सोशल मीडिया पर काफी चर्चित हैं ।
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