राजेश फल वाले के ठेले पर पहुंचा तो उसे फल वाला कहीं नहीं दिखाई पड़ा। उसने इधर-उधर देखा तो बगल के ठेले वाला रमेश आया और बोला, ज़हीर तो खाना खाने गया है, बताइए आपको क्या चाहिए ? राजेश समझ गया कि ज़हीर रमेश से फल बेचने को कह गया होगा।
राजेश ने कहा, एक दर्जन केले दे दो। रमेश ने केले दे दिए और पूछा कि उसे और क्या चाहिए। राजेश ने मौसमी के रेट पूछ कर एक किलो मौसमी भी देने को कहा और फल लेकर वह चला गया। रमेश के पास बिक्री के डेढ़ सौ रुपये आ गए थे। वह सोचने लगा कि यदि वह 50 रुपये अपनी जेब में रख ले और ज़हीर को सौ रुपये की बिक्री ही बता दे तो 50 रुपये उसके लिए बच जाएंगे। एक बार को उसे कुछ बुरा लगा, लेकिन दिन के दो बज चुके थे और उसकी बोहनी तक नहीं हुई थी, जबकि ज़हीर काफ़ी फल बेच चुका था। रमेश ने फ़िर अपने मन को समझाया कि यदि वह 50 रुपये अपनी जेब में रख भी लेता है तो ज़हीर का क्या बिगड़ेगा। शाम तक वह न जाने कितने फल बेच लेगा। लेकिन उसकी तो ठंडी की ठेली है। सर्दी के कारण अभी तक कोई ग्राहक नहीं आया, हो सकता है शाम तक कोई ना आए। फिर बूढ़ी मां का चेहरा भी उसके सामने घूमने लगा, जिसका उसके सिवाय कोई सहारा नहीं था। शाम को खाली हाथ जाएगा तो मां के हाथ पर क्या रखेगा, घर का चूल्हा कैसे जलेगा ? रमेश तरह-तरह से अपने मन को समझाने की कोशिश कर रहा था। फिर मन को कड़ा कर उसने तय किया कि वह ज़हीर को 50 रुपये के बारे में कुछ नहीं बताएगा।
थोड़ी देर बाद ज़हीर आया और रमेश ने सौ रुपये की बिक्री बताकर उसे रुपये दे दिए। शाम तक रमेश की भी सौ रुपये की बिक्री हो गई। रात को वह उन्हीं पैसों से सब्जी आदि खरीद कर घर पहुंचा तो उसके पास 50 रुपये बचे हुए थे। वह मन ही मन सोचने लगा, बेकार ही ज़हीर के 50 रुपये मारकर अपना ईमान खराब किया। एक बार फिर उसने अपने मन को समझाया कि यदि कल बिक्री नहीं हुई तो ये रुपये काम आएंगे।
मां खाना बना रही थी पर वह अनमने भाव से बैठा हुआ था। मां उसकी उधेड़बुन देखकर समझ गई कि ज़रूर उसके मन में कुछ चल रहा है। उसने रमेश को पास बिठा कर प्यार से पूछा तो वह सच बोल पड़ा कि उसने ज़हीर के 50 रुपये अपने पास रख लिए हैं। मां ने उसे समझाया, बेटा यह तुमने अच्छा नहीं किया। मैंने तुम्हें ईमानदारी के संस्कार दिए हैं, इसलिए तुम इस बात को मन ही मन स्वीकार नहीं कर पा रहे हो। खैर अभी कोई देर नहीं हुई है, कल ज़हीर को उसके पैसे लौटा देना। सच्चाई के पैसे से जो मिले, हम उसी में रूखा-सूखा खा लेंगे, लेकिन बेईमानी के पैसे कभी नहीं लेंगे।
मां की बात सुनकर रमेश का मन काफ़ी हल्का हो चुका था। अगली सुबह उठकर वह जल्दी-जल्दी तैयार हुआ और अपनी लेकर ठेली लेकर मार्केट जा पहुंचा। तब तक ज़हीर नहीं आया था। रमेश बेसब्री से उसका इंतज़ार करने लगा। तभी उसे ज़हीर आता हुआ दिखाई दिया तो वह बड़ा खुश हुआ और उसके आते ही उसके हाथ में 50 रुपये रखकर बोला, भाई कल 50 रुपये के केले भी बिके थे, जो मैंने अपनी जेब में रख लिए थे। यह कहते-कहते रमेश के नेत्र कोर गीले हो उठे तो ज़हीर ने उसे गले लगा कर कहा, कोई बात नहीं भाई कभी-कभी मन में बुरे खयालात आ जाते हैं, लेकिन यदि हम उन पर विजय हासिल कर लेते हैं तो हम ही असली विजेता हैं। आओ बैठकर सेब खाते हैं.. और इसी के साथ ज़हीर ने फटाफट एक सेब काट दिया। दोनों प्यार भरी निगाहों से एक-दूसरे को देखते हुए सेब खाने लगे।