बहुत सी चीजों के नाम बस यूँ ही रख दिए जाते हैं और उनका उस नाम से दूर-दूर तक कोई भी रिश्ता नहीं होता है। अगर विश्वास न हो तो अपने आसपास ही देख लीजिये। “शेर सिंह” नामक शख्स अक्सर कुत्ते को देखते ही भाग खड़ा होता है, “दरोगा प्रसाद” खुद पुलिस को देखते ही ऐसे गायब होते हैं गोया गधे के सर से सींग। कुछ और नाम भी इस सिलसिले में गिनाये जा सकते हैं और यहाँ तक पढ़ते-पढ़ते आपके जेहन में भी कुछ नाम यक़ीनन आ गए होंगे।
खैर! यह तो सिक्के का एक पहलू है, इसका दूसरा पहलू इसके बिलकुल उलट है। मतलब ऐसे नाम जो अपने आप को पूरी तरह चरितार्थ करते हैं। “शीतल” नाम की महिला अक्सर बहुत शांत स्वभाव की हो सकती है (अब आप मध्य प्रदेश वाले शांत को मत सोचियेगा), विनीत नाम का पुरुष भी बहुत विनीत हो सकता है, इत्यादि। अब बात नाम को सार्थक करने की हो रही है तो इस सिलसिले में एक बिलकुल ताजा किस्सा दरपेश है। हुआ यूँ कि हम लोग एक रात को एक भोजनालय पर भोजन करने गए (अब भोजनालय से आप किसी सड़क किनारे चालू होटल की कल्पना मत कीजिये, यह भोजनालय बेहद मशहूर और बढ़िया है)। एक साथी जो बहुत दिनों से भोजन करवाने के लिए वादा तो कर रहे थे लेकिन उसके बाद किसी न किसी वजह से यह कार्यक्रम मुल्तवी हो जा रहा था। बहरहाल वह शाम आ ही गयी जब आखिरकार सब कुछ तय हो गया और हम सब उस रात के भोजन की कल्पना में पूरे दिन मुस्कुराते रहे।
एक और बात अमूमन होती ही है और वह ये कि जिस दिन आपको रात्रि भोज का निमंत्रण मिला हो उस शाम कोई न कोई और भी आपको भरपेट नाश्ता करवा ही देता है। अब हम लोगों के साथ भी वही हुआ था लेकिन फिर भी उस दावत के लिए हम सब रात 8 बजे निकल पड़े। भोजनालय शानदार था, हम लोगों ने पहले भी वहां भोजन किया हुआ था इसलिए यक़ीन था कि आज की दावत जोरदार होने वाली है। अंदर पहुंचकर पहले तो शुरूआती नाश्ते के लिए कहा गया और उसके बाद मुख्य भोजन के लिए आदेश देना था। हमारे एक साथी ने पहले तो पूछा कि आज कोई विशेष डिश बनी है क्या तो भोजन सहायक ने नहीं में सर हिलाया। अब फैसला हमारे हाथ में था कि क्या मंगाया जाए, और फिर वह हुआ जिसके बारे में हम सब में से किसी ने भी कल्पना मात्र तक नहीं की थी। भोजनालय के पत्रक में एक चीज थी “पनीर अंगारा”, और हमारे एक साथी ने कहा कि आज इसे ही खाते हैं। वैसे तो हमारी इन्द्रियों ने हमें सचेत करने की पूरी कोशिश की थी और नाम से ही हमें अंदाजा भी हो गया था लेकिन जब आग से ही खेलने की इच्छा प्रबल हो तो व्यक्ति उसमें कूद ही पड़ता है।
भोजन सहायक से भी इसके बाबत पूछा गया और उसने भी आगाह किया कि यह डिश बहुत तीखी होती है। लेकिन हमें लगा कि कितनी भी तीखी हो, हमें क्या फ़र्क़ पड़ना है, आखिरकार हम लोग तो तीखा खाने के आदी हैं। उसके साथ कुछ अन्य चीजें जैसे रोटी, दाल इत्यादि के लिए भी सहायक को बोल दिया गया था। थोड़े अंतराल के बाद ही जब भोजन सहायक कटोरे में पहली चीज लेकर आया तो वह थी “पनीर अंगारा”। अब अगर भोजन सामने रखा हो तो सब्र किसे होता है और हम सब तो वैसे भी अब तक भूख के चलते बेसब्र हो चुके थे। अब हम सबने लपक कर एक एक चम्मच वह अंगारा अपने मुंह में डाला और उसके अगले दो तीन सेकंड में ही ऐसा लगा जैसे दोनों कानों से धुँआ निकल रहा हो। मैंने अगल-बगल देखा, सबकी हालत लगभग ऐसी ही थी। धुँआ के साथ साथ पसीना भी ऐसे निकलना शुरू हुआ जैसे हम लोग एकाध किलोमीटर दौड़ कर आये हों। पसीना कान के बगल से टपक रहा था तो सर में भी चुनचुनाहट होने लगी थी। इतने में भोजन सहायक पर नजर पड़ी तो ऐसा लगा जैसे वह हमें देखकर मुस्कुरा रहा हो। हम लोगो ने गटागट पानी का ग्लास खाली किया और उसको बुलाकर पूछा “अरे भाई, अगर इतना जहरीला खाना था तो बताया क्यों नहीं? अब उसने बताया तो था लेकिन हमने उसकी सुनी ही कहाँ थी। बस एक गनीमत थी कि उसको मिर्ची मध्यम रखने के लिए ही कहा गया था। अगर कहीं सबसे ज्यादा मिर्ची के लिए कहा गया होता तो हमारी स्थिति क्या होती, इसका अंदाजा आप सब लगा सकते हैं। कुछ ही समय में बाकी सामग्री आ गयी, हम लोगों ने दही का रायता खूब ठंडा वाला दो दो बार मंगाया और भोजन के साथ उसे गटक गए। सामने के प्लेट में पड़ा “अंगारा” हमारा इन्तजार ही करता रहा कि हम लोग उसे दुबारा चखें लेकिन हमने उसे दुश्मन की निगाह से ही देखा।
भोजनालय से बाहर निकलने के बाद भी हमारी हालत कुछ ठीक नहीं थी, पसीना अपनी गति से निकल रहा था। फिर रास्ते में एक जगह रुक कर एकदम ठंडी मिठाई भी खायी गयी कि शायद इससे राहत मिले। और इस तरह हम सब “अंगारे” की आग में जलते हुए घर पहुंचे और जब तक नींद नहीं आयी, तब तक बेचैन ही रहे। अब इसके बाद सुबह क्या हुआ, आप कल्पना कर सकते हैं। अगर आप लोग भी किसी को कुछ ऐसा खिलाना चाहते हैं जिसको खाने के बाद उस व्यक्ति के तन बदन में आग लग जाए और वह इसे ताउम्र न भूले तो इस डिश का नाम याद रखियेगा “पनीर अंगारा”। और हमारा दावा है कि इस डिश को खाने के बाद वह व्यक्ति आपके पुरजोर आग्रह के बाद भी आपके साथ भोजन करने कभी नहीं जाएगा।