राघव ने समय का अनुमान लगाया। हाँ, ये वक्त ठीक रहेगा। अभी सुबह का वक्त है। सब लोग अपने- अपने कामों में व्यस्त हैं। लेकिन इधर भाई की हालत भी तो खराब है। हालाँकि राघव की पत्नी मुन्नी की आँखों में माधव काँच के किरचें की तरह चुभता है। वो उसको फूटी आँख नहीं सुहाता। लेकिन माधव की पत्नी तारा भी कहाँ दूध की धुली है। इन दोनों के कारण ही राघव और माधव में सालों से बोलचाल बंद है। घर की देहरी या आँगन में दीवार खड़ी हो गई है। अब तो सालों हो गये, उन दोनों भाईयों में बात चीत हुए। एक ही घर है आना- जाना भी एक ही दरवाज़े से होता है। लेकिन दोनों भाइयों में बातचीत सालों से बंद है।
जब तक रामकिशन बाबू जिंदा थे, दोनों भाईयों में इलाज या दवा- दारू के बहाने ही या कहीं बाप को डाॅक्टर- वैद्य के पास लाने, ले जाने के बहाने बातचीत हो ही जाती थी। लेकिन पिता के चले जाने के बाद वो पुल भी टूट गया जिसके बहाने से वे मिलते थें। इस बीच जो बात माधव ने कभी कही भी नहीं थी। उसमें घर की औरतें अपन – अपने मर्दों को उल्टा- सीधा पट्टी पढ़ाकर गलतफहमी पैदा करतीं रहीं।
तभी मुन्नी पास से गुजर रही थी। कहीं बाहर से सौदा- सुलफ लाने गई होगी।
राघव को टोका -”ऐत बेर अबेर नहीं हो रही है का? सूरज छत पर चढ़ गया जायेगा। तब जाकर काम पर जाओगे का?”
मुन्नी मुई है ही नक चढ़ी। जब भी बात करेगी। टेढ़ा ही करेगी।
“हाँ-हाँ जा रहा हूँ। जरा दम तो मारने दिया कर कर।”
इधर माधव की बेटी की शादी है। हालाँकि माधव कभी अपने मन – से मदद की बात नहीं कहेगा। आज के भाई तो वे हैं नहीं । जन्मजात भाई हैं। एक ही माँ के पेट के जने। क्या अपनी औरत मुन्नी की बात में आकर वो अपने भाई की मदद नहीं करेगा? क्या किसी और घर से आईं दो औरतों के कारण वो अपने भाई से बिलगाव करेगा? क्या राघव अपनी औरत मुन्नी की बातों में आकर अपना भ्राता-धर्म भूल जायेगा?
नहीं वो इतना अधम नहीं है। नेकी अपने साथ तो बदी दूसरे के साथ वो क्यों करे? आदमी का धरम क्या होता है? अपने भाई की मदद करना। फिर कौन लेकर आया है? और कौन लेकर जायेगा? द्वेष में आकर आदमी को किसी सद्कर्म से वंचित क्यों होना चाहिए? फिर ,ऊपर वाले की इजलास में जाकर वो क्या मुँह दिखायेगा? कहते हैं कि एक दिन कयामत भी आयेगी।ऊपर जाकर अपने माँ- बाप को वो क्या जवाब देगा?
चाहता तो ये पचास हजार रुपये अपने लड़के मिंटू के हाथों ही भिजवा देता। लेकिन , मुन्नी को पता चलेगा तो घर में महाभारत हो जायेगा। मुन्नी तो दुष्ट प्रवृत्ति की है। तभी तो वो माधव की मदद करने नहीं देती।
तभी गली में माधव दिखा। राघव ने उसे इशारे से बुलाया। पास आकर दोनों भाइयों में दुआ- सलाम हुआ।
बहुत दिनों के बाद दोनों में बात हुई थी।
राघव, माधव से बोला – “कैसा है रे ..? ”
“ठीक हूँ भईया ..” माधव बोला।
“बड़ा झटक गये हैं भईया। भाभी खाना नहीं देतीं क्या?” माधव हँसी में बोला।
“ले इधर आ।” ( हाथ के इशारे से किनारे बुलाकर) राघव कहता है।
“ले ये लिफाफा रख”
“क्या , है इसमें… ?”
“अरे कुछ नहीं! सुनीता बिटिया के लिये कुछ खरीद लेना ..। आखिर, मैं भी तो उसका बाप ही हूँ।”
माधव लिफाफा खोलकर देखता है – “अरे, इसमें तो पैसे हैं?..ये किसलिये?”
“रख लो काम आयेंगे। आखिर लड़की का मामला है। और शादी- विवाह, काज- परोजन में तो पैसे पास होने ही चाहिये।”
“नहीं- मैं नहीं लूँगा। भाभी गालियाँ देंगी। फिर आपकी भी तो दो- दो बेटियाँ हैं।”
“तब की तब देखी जायेगी। अभी जो सिर पर पड़ी है, उसको देखो।”
“..और भाभी से कहेगा कौन?”
“दीवार के भी कान और आँख होते हैं। कहीं लड़ाई- झगड़े में कभी आपके मुँह से ही निकल गया तो। तारा भी मुझे ही भला बुरा कहेगी।”
“अपनी मरी माँ की कसम खाता हूँ। मेरे मुँह से कभी ना निकलेगा।”
तभी माधव की पत्नी तारा उधर से गुजरी और दोनों भाई अपने- अपने रास्ते चल पड़े।
माधव रास्ते भर सोचता जा रहा था। भईया तो देवता आदमी हैं। वो उनके बारे में कितना गलत सोचता था।
उधर राघव को अपने भाई की मदद करके बहुत आत्मिक खुशी हो रही थी। आज गलतफहमी की एक काली रात का अंत हो गया था और दोनों भाइयों का जैसे पुनर्जन्म हुआ था।