बाबूजी पुराने वकील थे , इसलिए उनके पास बहुत सारे मुकदमे होते थे । वैसे तो खून का रिश्ता था हमारा पर कई वर्षों से मैं बस उनके सहायक की तरह काम कर रहा था।
मैं यदा कदा बाबूजी से कहता कि मुझे भी कोई मुक़दमा लड़ने दीजिए पर बाबूजी हमेशा टाल देते।
उस दिन मैं शाम को जैसे ही काम निपटा कर घर जाने वाला था, तभी बाबूजी आए और एक कागज़ देकर बोले – “सुदीप, तुम्हें याद है न कि गाँव मे हमारी ज़मीन है। वहां किसी ने कब्ज़ा कर रखा है। तुम कल वहाँ जाओ और उन्हें यह नोटिस देना और उन्हें जल्द से जल्द वह जगह खाली करने को बोलना।”
मैंने बस हाँ में सर हिला दिया।
मैं बस यही करता रहूँ । कोई केस तो देते नहीं, बस नोटिस बाँटते रहो । मैंने नोटिस बैग मे रख लिया ।
जाते- जाते बाबूजी बोले – “यह तुम्हारा पहला केस है, अच्छे से देखना सब कुुुछ और जीतना।”
मैं एक पल को अपने आपको संभाल नहीं पाया। मैं अपनी ख़ुशी बता नही सकता। इतने वर्षों बाद मुझे कोई केस लड़ने को मिला था।
अगले दिन मैं जल्दी ही गाँव के लिए निकल गया। कुछ भी नहीं बदला था। तंग गलियों में फैला हुआ कीचड़, पुराने टायरों संग दौड़ते बच्चे। वही घर। सब कुछ पहले जैसा था। बस लोग अनजान थे। उस बिजली के खंभे के पास जाकर मेरी साँसे तेज हो गई। यहीं से मुड़कर देखने पर मेरा घर दिखाई देता था। मैं उत्सुकता से उस ओर मुड़ा पर पल भर में ख़ुशी ग़ायब हो गई।
आँगन में लगा जामुन का पेड़ हरा भरा अभी भी था पर झूला गायब था। घर कहाँ था, वहाँ बस एक झोंपड़ी थी।
इसे कहते है घर?
और यह है कब्ज़ा?
मेरा मन अनगिनत सवालों से भर गया ।
आँगन में सूखी पत्तियां फैली हुईं थीं और एक छोटा बच्चा वहाँ लकड़ी की गाड़ी से खेल रहा था। एक पल को मेरा बचपन सामने आ गया।
मुझे देखकर वह बालक उठ खड़ा हुआ और मुझे घूरते हुए तेजी से बोला – “अम्मा कोई आया है।”
बाहर एक बूढ़ी औरत आई। मैंने अपने कपड़े ठीक किये, नोटिस निकाला और बोला – “देखिये अम्मा, यह जगह रामनारायण जी की है और आपने यहाँ कब्ज़ा किया हुआ है। आपको 10 दिन में यह जगह ख़ाली करनी है।
मैं आगे कुछ कहता, इससे पहले ही अम्मा बोलीं – “उस रामू से कह देना हम कहीं नहीं जाने वाले। वो खुद आकर हमसे बात कर लें। बोल देना, रमा ताई सरकारी कागजों से नहीं डरती।”
इसके बाद भी वह बोलती रही परंतु मैं सुन नहीं पाया। “रमा ताई” सारा गांव उन्हें इसी नाम से जानता था। इन्हीं की गोद मे मेरा बचपन बीता है । इसी जामुन के पेड़ पर झूला झुलाया करती थीं ताई मुझे।
मेरी आँखों से गर्म गर्म आँसू बहने लगे। मैंने कहा – ताई, मैं आपका सुदीप। आपके रामनारायण का बेटा।
ताई ने एक पल मुझे घूर कर देखा और फिर मेरे ललाट पर चूम लिया। उनकी आँखों में भी आँसू थे।
मैंने नोटिस से आँसू पोंछे और नाली में फेंक दिया। ताई ने मुझे गले लगाया, तो लगा मैं मुकदमा जीत गया हूँ।