गुड मॉर्निंग मैम! रोज की तरह यह आवाज मेरे कानों में पड़ी और मैंने भी रोज की तरह बिना देखे प्रतिउत्तर में गुड मॉर्निंग कहा और इंस्टीट्यूट के भीतर दाख़िल हो गई। घड़ी में सुबह के ठीक आठ बजे थे। मेरे पीछे-पीछे विनीत भी दाखिल हो गया, यह लगभग रोज की दिनचर्या थी। विनीत जाकर कंप्यूटर लैब में बैठ गया और मैं अपने ऑफिस में। विनीत अपने मॉक टेस्ट देने की तैयारी में लग गया और मैं दिन भर के क्लास शेड्यूल बनाने में व्यस्त हो गई। कुछ समय पश्चात मैंने कंप्यूटर लैब में जाकर विनीत के मॉक टेस्ट के स्कोर देखे और इस बार भी विनीत ने अच्छा किया था हर बार की तरह।
विनीत एक मेहनती छात्र था जो कि काफी लगन व मेहनत से एसएससी सी.जी.एल की तैयारी कर रहा था। विनीत और मैं अमूमन इंस्टीट्यूट में सबसे पहले पहुँचते, उसके बाद विद्यार्थियों का आना लेक्चर के अंतिम चरणों तक चलता रहता। टेस्ट के बाद विनीत लाइब्रेरी में जाकर अपनी पढ़ाई में व्यस्त हो गया।
आज सबसे पहले मेरी ही क्लास थी, जिसमे मुझे जनरल साइंस का एक चैप्टर पढ़ाना था। मेरे लेक्चर में विनीत अनुपस्थित रहा। क्लास खत्म होने के बाद जब मैंने उससे अनुपस्थिति का कारण पूछा तो उसने बताया कि उसे अपना एक रीजनिंग का चैप्टर कंप्लीट करना था जो अत्यंत आवश्यक था।विनीत की मेहनत व पढ़ाई के प्रति उसकी लगन देख कर मैं बहुत खुश होती। उसका उदाहरण मैं दूसरे छात्रों को भी दिया करती। मैं छात्रों को अक्सर ग्रुप स्टडी के लिए प्रोत्साहित करती रहती।
मेरा मानना है कि ग्रुप स्टडी करने पर फाइन डाउट्स तो क्लियर होते ही हैं। साथ ही स्टूडेंट की प्रेजेंटेशन स्किल भी अच्छी होती है, जो कि आगे जाकर उन्हें इंटरव्यू में बहुत मदद करती है।देखते -देखते सारा दिन बीत गया । शाम के छः बज रहे थे, मैने अपना लैपटॉप बैग में डाला और केबिन के बाहर निकल आई तभी मेरी नजर विनीत पर पड़ी जो कि लाइब्रेरी में बैठ कर अभी भी उसी तन्मयता से अपने स्टडी पोर्शन को खत्म करने में जुटा था। मैंने उससे पूछा ..क्यों आज घर नही जाना है विनीत? विनीत ने कहा बस दस मिनिट और मैम! मेरा चैप्टर कंपलीट होने ही वाला है,मैं वही बैठ गई। मेरी आदत थी अगर एक स्टूडेंट भी इंस्टीट्यूट में होता, तो मैं इंस्टीट्यूट नही छोड़ती थी। तभी विनीत आया और दो पब्लिशर के नाम देकर कहा..मैंम इनकी किताबें अच्छी है, आप देख लीजिएगा।
घर जाने के पहले रोज विनीत दिन भर की पढ़ाई का ब्योरा देता और कभी-कभी कुछ नई किताबों के नाम देकर उन्हें मंगवाने की रिक्वेस्ट करता। मैं भी उन किताबों को मंगवाने में बिल्कुल देर न करती। मैं हमेशा विनीत को प्रोत्साहित करती। विनीत इंस्टीट्यूट में आने वाला पहला व जाने वाला आखिरी स्टूडेंट होता।
दूसरे दिन मैंने देखा विनीत कुछ परेशान सा था..मैंने उसे अपने आफिस में बुलाया और उससे परेशानी का कारण पूछा। उसने बताया आजकल उसके घर कुछ समस्या चल रही है, जिसके कारण वो पढ़ाई में पूरी तरह मन नही लगा पा रहा। मैंने उसकी थोड़ी कॉउन्सिलिंग की जिससे वो काफी हद तक रिलेक्स हो गया उसके चेहरे के भाव देख कर मैं भी आश्वस्त हो गई।
बातों बातों में मैंने विनीत से पूछा कि किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक प्रेरणा होती है, तुम्हारी प्रेरणा कौन है..उसने बिना देरी किए बताया मैम मेरी फियांसे।
मैं चुप रही। उसने बात को जारी रखते हुए कहा मैम यहाँ से जाने के बाद मैं सिटी लाइब्रेरी में जाता हूँ, वहां मैं और मेरी फियांसी दो घंटे पूरे दिन की पढ़ाई को डिस्कस करते हैं। वो भी एसएससी की तैयारी कर रही है। और अगले दिन के लिए पढ़ाई का भाग निर्धारित करते हैं। अगर हमारा चैप्टर कम्पलीट नही होता तो हम न तो उस दिन मिलते हैं न ही आपस मे मैसेज या कॉल करते हैं।
मैं प्रेम के इस सुंदर रूप को देख रही थी, जो कोरे कागज पर रंगबिरंगी स्याहियों से रंगरोगन की तैयारी कर रहा था। मैंने विनीत से पूछा दशरथ मांझी के बारे में जानते हो..उसने कहा नही। मैंने कहा, एग्जाम क्लियर कर लो तो बताऊंगी।
कुछ दिनों पहले ही विनीत का फ़ोन आया और उसने बताया मैम मैंने और मेरी फियांसे ने एग्जाम क्लियर कर लिया है।
मैं सोचती रह गई प्रेम सहज, सरल व समर्थ तो है ही साथ में निश्चल व सशक्त भी। वाकई प्रेम न जाने कितने रूपों में विद्यमान है, कितनी आसानी से रास्ते के कोहरे को हटाकर दूर तक देखने का साहस भर देता है.. यदि सच्चाई हो।