ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
दर्द की गठरी सँभाले जा रहे हैं
ऐ शहर! तेरे उजाले जा रहे हैं
ख़ूब मिलती है मदद हमने सुना है
फिर कहाँ बोलो निवाले जा रहे हैं
बाद बँटवारे के पहली बार ऐसे
लोग सड़कों पर निकाले जा रहे हैं
दिख रही है आग-सी जलती सड़क पर
भट्टियों में जिस्म ढाले जा रहे हैं
शौक ज़हरी बोल का रखती सियासत
इसलिए कुछ साँप पाले जा रहे हैं
बेबसी की हो गई है इंतिहा ही
पाँव में रिसते हैं छाले, जा रहे हैं
बाँटते खैरात हो कुछ इस तरह से
खोखले वादे उछाले जा रहे हैं
ज़िंदगी के इन अँधेरों को मिटाने
रोशनी के दर खँगाले जा रहे हैं
ज़िन्दगी की मुश्किलों का यह ‘परम’ अब
बोझ काँधों पर उठा ले जा रहे हैं
**************************
ग़ज़ल-
शोर क्यूँ बरपा हुआ है
घाव क्या गहरा हुआ है
हर तरफ सूखे का मौसम
जल कहाँ ठहरा हुआ है
क़त्ल करके आप मेरा
पूछते हो क्या हुआ है
आँख में यह अश्क़ जैसे
रेत में दरिया हुआ है
दौरे-गर्दिश का हमारा
यह सफ़र उलझा हुआ है
भूख भारत देश में अब
वोट का मुद्दा हुआ है
ख़ास की तो छींक का भी
हर तरफ चर्चा हुआ है
आजकल हर शख्स लगता
भीड़ में तनहा हुआ है
************************
ग़ज़ल-
अश्क़ आँखों में यूँ मत छिपाया करो
बदली बरसे अगर भीग जाया करो
इन चहकते परिन्दों की बातें सुनो
और तितली चमन में उड़ाया करो
जैसे गहने सजे हो हसीं जिस्म पर
ऐसे लब पर हँसी को सजाया करो
ग़म के मौसम नहीं ये रहेंगे सदा
आप नग़मा यही गुनगुनाया करो
ग़म है ज़ेवर सजाओ इसे आँख में
आँसू पलकों पे अब मत नुमाया करो
*******************************
ग़ज़ल-
अच्छा है औक़ात बता दी
तुमने अपनी ज़ात बता दी
बूँद अभी तक गिरी नहीं थी
ख़बरों ने बरसात बता दी
जिसको आँखों से कहना था
खुलकर हर इक बात बात दी
एक किरण उससे माँगी तो
लम्बी तनहा रात बता दी
चोर-लुटेरों को क्यों तुमने
यह हँसती बारात बता दी
छल से शकुनि ने पांडव को
फिर-फिर वो ही मात बता दी
हम तो जोड़े हाथ खड़े थे
पर उसने तो लात बता दी
मेलजोल की बात करी तो
अलग हमारी पात बता दी
ठीक समय पर यार आपने
घर की भीतर घात बता दी
************************
ग़ज़ल-
दीप यह जो जल रहा है
तीरगी को खल रहा है
देख कर नन्हीं किरण को
सूर्य आँखें मल रहा है
हर अँधेरे दौर का बस
यह उजाला हल रहा है
साथ में हर रोशनी के
इक सुनहरा कल रहा है
सुबह की संभावना में
रोज़ सूरज ढल रहा है
धन्य करने इस धरा को
मेघ नभ से गल रहा है
दरमियाँ जीवन-मरण के
एक छोटा पल रहा है
हार को माने चुनौती
जीतने वह चल रहा है
कर्म जो निष्काम करता
वो कहाँ निष्फल रहा है
– परमानन्द भट्ट