भाषान्तर
कन्हैयालाल शेवानी (बैरागढ़, भोपाल) की सिन्धी ग़ज़लों का कल्पना रामानी द्वारा हिंदी अनुवाद
ग़ज़ल-
पुनः इक धमाका हुआ शहर में है
कतल का इजाफा हुआ शहर में है
सुई गिरने की भी है आवाज़ आती
हैं सुनते सियापा हुआ शहर में है
बढ़ी दोस्ती है अँधेरों में कितनी
कि जब भी उजाला हुआ शहर में है
सुनाते हमें हाल हैं होंठ हिलते
नया फिर फ़साना हुआ शहर में है
है भटकी जवानी अँधेरों में जबसे
तभी से बुढ़ापा हुआ शहर में है
हुए जिसके पीछे हजारों तमाशे
वही अब तमाशा हुआ शहर में है
‘बचाओ’ ही अब नाम रख दें शहर का
बचाओ, ही फैला हुआ शहर में है
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ग़ज़ल-
परवानों के साथ जो रहता
‘हेमू’ जैसा मैं भी बनता
गीत वतन के गाकर मुख से
लबों-चूम फाँसी पर चढ़ता
देश की आज़ादी की ख़ातिर
मैं भी इक झंडा ले चलता
कतरा इक ‘सिंधु’ का बनकर
कलकल-कलकल के संग बहता
जिनने नोचा देश हमारा
बनके तीर उनको मैं चुभता
इस भू की हरियाली के हित
मैं भी बनकर बूँद बरसता
हुई दूर माँ, हमसे हमारी
माँ की गोद में, मैं भी रहता
बदल नाम यह अपना ‘कन्हैया’
नाम अपना मैं ‘हेमू’ रखता
– कल्पना रामानी