ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
फ़ितरत को इंसानी रख
आँखों में कुछ पानी रख
बंगले के इक हिस्से में
कोई याद पुरानी रख
लहरों से लड़ना है गर
कुछ नावें तूफ़ानी रख
अपने को तन्हा न कर
अपना कोई सानी रख
उम्र पके चाहे कितनी
दिल में कुछ नादानी रख
माँ ही काशी-का’बा है
चरणों में पेशानी रख
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ग़ज़ल-
दिल में लाना चाहता है वो तुझे
सच दिखाना चाहता है वो तुझे
भूल जाना चाहता है जिसको तू
याद आना चाहता है वो तुझे
तोड़ आया था तू जिसका दिल कभी
दिल से पाना चाहता है वो तुझे
देख कर मझधार में जीवन तेरा
पार लाना चाहता है वो तुझे
क्यों अलग जाकर खड़ा है ख़ुद से तू
साथ लाना चाहता है वो तुझे
– हेमा अंजुलि