लेख
भारतीय माँ है बेमिसाल
– घनश्याम बादल
दुनिया भर में मई के दूसरे रविवार को माँओं को सम्मान देने के भाव के साथ ‘मदर्स-डे’ मनाया जाता है। जहाँ पश्चिमी जगत की ‘माँ’ सफल कैरियर के साथ आत्मकेंद्रित जीवन जीती है, वहीं भारतीय ‘माँ’ अपने कैरियर व अपनी उन्नति के बजाय आज भी अपने बच्चों के हित के लिए कहीं ज्यादा जीती है और भारतीय नारी अपनी पूर्णता का अहसास तभी करती है, जब वह माँ के रूप में सामने आती है।
आज भी दुनिया का सबसे प्यारा शब्द ‘माँ’ ही है जो न केवल मानव अपितु हर जीव को समान रूप से लुभाता है। भले ही अलग-अलग देशों में बोलने में अलग हो पर, दुनिया के किसी भी कोने में जाईए, हर जगह का शिशु सबसे पहला जो शब्द बोलना सीखता है वह ‘माँ’ ही होता है।
माँ से ही सृष्टि का निर्माण हुआ है, ‘माँ’ ने ही इंसान को सभ्य बनाया। यह माँ का ही जिगर है कि वह अपनी सारी खुशियाँ व आराम, त्यागकर केवल अपनी जान को जोखिम में डालकर बच्चे को सलामत रखती है, उसके लिये मौत से भी टकरा जाती है। ऐसा दुनिया के किसी भी कोने में बसने वाली माँ बिना किसी झिझक के कर डालती है।
भारत के इतिहास में बहुत ही बहादुर, साहसी और विदुषी माताएं हुई हैं, जिनकी प्रेरणा से उनकी संतानें विश्व में न केवल चर्चित और बहुप्रशंसित हुई बल्कि वें अपना और अपनी माँओं का नाम अमर कर गईं। आइए आज मातृ दिवस के अवसर पर जानें उन वीरांगना, स्नेहशील व संतानों पर जान छिड़कने वाली माताओं के बारे में।
भारत की यें बेमिसाल माएँ
सीता:
त्रेता में जाएँ तो एक माँ के रूप में सीता अनुपम ठहरती हैं। यदि गौर से देखा जाए तो रावण वध के बाद अयोध्या लौटने पर राम द्वारा वनवास दिए जाने के बाद उनका सारा जीवन अपने बेटों लव कुश के जीवन को संवारने में बीता। महर्षि वाल्मीकि के सहयोग से उन्होंने सारी कठिनाईयाँ झेलते हुए भी लव कुश को अप्रतिम वीर व विद्वान बनाया और अंततः वे ही रामराज्य के उत्तराधिकारी बने।
शकुंतला:
पति की अनुपस्थिति में बच्चे पालना कोई हँसी खेल नहीं है। उस पर भी अगर अपको वन में रहना पड़े तो और भी मुश्किल। पर, राजा दुष्यंत से गंधर्व विवाह कर माँ बनने वाली शकुंतला को जब दुष्यंत भूल गए, पहचानने से भी इंकार कर दिया तब कण्व ऋषि के आश्रम में रह, बेटे भरत को शेरों से खेलने वाला बहादुर बनाने का काम शकुंतला जैसी माँ ही कर सकती थी। ऐसी माँ किसी देश के गौरव से कम नहीं कही जा सकती है।
रानी धर्मा:
मौर्य काल में सम्राट अशोक मौर्य सम्राट बिंदुसार और रानी धर्मा के पुत्र थे। अशोक की माता धर्मा विदुषी होने के साथ-साथ सुंदर भी बहुत थीं। बिंदुसार अपने समय के एक कमज़ोर राजा थे और उन पर दरबार और महल की राजनीति भारी पड़ती थी मगर धर्मा महत्वाकांक्षी होने के साथ ही राजनीतिक चालें चलने में भी सिद्धहस्त थीं। जब बिंदुसार अपने दूसरे पुत्र सुषिम को राजा बनाने के लिए करीब-करीब तैयार थे तब धर्मा के सहयोग व मार्गदर्शन से अशोक राजा बने। सम्राट अशोक के ओजस्वी व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली उनकी माँ धर्मा ही थीं।
झाँसी की रानी:
“खूब लड़ी मर्दानी….. ” कहे जाने वाली झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई ऐसी ही एक और माँ थी। उनके पुत्र की जन्म के कुछ महीने बाद ही मृत्यु हो गई थी। तब उन्होंने अपने ही परिवार के पांच साल के एक बालक दामोदर राव को गोद लिया और उसे अपना दत्तक पुत्र बनाया। जब अंग्रेजों ने झाँसी पर आक्रमण किया, तब रानी घोड़े पर सवार हो, हाथ में तलवार लिए अपनी पीठ पर पुत्र दामोदर को बांधे हुए अंग्रेजों पर टूट पड़ीं। अंग्रेजों से बहादुरी से लड़ते-लड़ते रानी गंभीर रूप से घायल हो गईं। मृत्यु से पहले उन्होंने एक बार दामोदर की ओर प्यार से देखा और फिर उनके वे तेजस्वी नेत्र हमेशा के लिए बंद हो गए। वास्तव में प्रणम्य है ऐसी वीरांगना माँ।
जीजाबाई:
भारत में वीर शिवाजी का नाम यदि किसी परिचय का मोहताज नहीं है तो उसका सारा श्रेय जाता है उनकी वाीरांगना माँ जीजाबाई को। उन्होंने अपने बेटे की शिक्षा के लिए दूरदृष्टि का परिचय देते हुए समर्थ गुरु रामदास को चुना और शिवाजी में कूट-कूट कर देशभक्ति के भाव भरे, उन्हें छापामार गुरिल्ला युद्ध पद्धति में पारंगत किया, उनमें नारी के प्रति सम्मान के अप्रतिम भाव भरे और एक देशभक्त और बहादुर शिवा के व्यक्तित्व का निर्माण किया। सचमुच एक सच्ची माँ थी जीजाबाई।
पुतलीबाई:
राष्ट्रपिता कहलाने वाले मोहनदास कर्मचंद की माँ थीं पुतलीबाई। गाँधी ने बार-बार माना है कि उनके जीवन पर सबसे ज्यादा प्रभाव उनकी माँ का ही पड़ा। जब गाँधी केवल 17 वर्ष की आयु में कानून की पढ़ाई के लिए विदेश जाने लगे तब गाँधीजी की माँ पुतलीबाई अपने पुत्र को लेकर बहुत चिंतित थीं। उन्होंने गाँधीजी से तीन वचन लिए- वे हमेशा शाकाहारी भोजन ही करेंगे, शराब नहीं पियेंगे केवल अपनी पढ़ाई पर ही ध्यान देंगे। और गाँधीजी ने भी अपनी माँ को दिए वचनों का पूरी ईमानदारी से पालन किया। इस प्रकार गाँधीजी के जीवन का निर्माण करने वाली भी माँ ही थी।
आइ पी एस अनुकुमारी:
आज के आधुनिक भारत में जब भागमभाग का जीवन हावी हो रहा है, जिसे भी देखें वही अपने कैरियर के पीछे व भौतिकतावद के पीछे भागता दिख रहा है तब हरियाणा की अनुकुमारी ने यू पी एस सी की परीक्षा में दूसरी रैंक हासिल की है। अपने संक्षिप्त साक्षात्कार में अनु कहती हैं कि उन्हें यह सब अपने करने की प्रेरणा अपने छोटे से बेटे के हित की भावना से मिली और वे अपनी सफ़लता को अपने तीन साल के बेटे को समर्पित करती हैं। यानि एक माँ अपने बेटे के लिए सारी जिम्मेदरियाँ निभाकर भी एक नया आसमान रच सकती है आज भी।
नहीं है माँ का विकल्प:
दुनिया में कितने भी बदलाव आए हों पर माँ सदैव से एक-सी ही रही है। प्यार लुटाती, ममत्व बांटती, बच्चे को सीने से चिपकाकर उसकी हिफाज़त करती, उसके लिए मौत से भी टक्कर लेती, अपने हिस्से का खाना भी उसे देती, ख़ुद गीले में लेटकर भी बच्चे को सूखे में सुलाती, उसके सोने पर सोती; उसके खा लेने पर खाती, अपनी छातियों के अमृतरस से उसे जीवन देती; पालती है, स्नेह धार से सींचती और भी जाने क्या-क्या करती माँ। माँ सचमुच अद्भुत और अनुपम होती है, उसका विकल्प न है और न ही होगा।
सबसे प्यारी है माँ:
नहीं बदली माँ: परिस्थितियों व समय के साथ माँ में भी बदलाव आए हैं। उसके सोचने, समझने, पहनने, ओढ़ने, कार्य करने व जिम्मेदारियों में वक्त के साथ तब्दीलियाँ आई हैं। उसके आचार-विचार बदले हैं। उसने भी समय के साथ करवटें बदली हैं। उसके हावों-भावों में भी बदलाव देखे गए हैं, पर जहाँ तक उसके अपने बच्चों प्रति नज़रिए की बात आती है तो आज भी वह उसी असीमित प्यार और स्नेह के साथ अपने बच्चों के लिए कुछ भी करने को तत्पर नजर आती है।
हर माँ अपने आप में बच्चे के लिए सीता, शकुंतला, जीजाबाई या झाँसी की रानी होती है। उसमें अनुकुमारी की सी काबिलियत होती है। धर्मा जैसी कुव्वत होती है। अब ऐसी गुणवान और असीमित प्यार लुटाने वाली माँ जब पास हो तो उसकी कद्र करना, उसका सम्मान करना; हमारा सबसे बड़ा फर्ज हो जाता है।
– घनश्याम बादल