लेख
युवा ही देश को दिशा देंगे
– घनश्याम बादल
विवेकानंद देश के सबसे बड़े युवा आइकॉन्स में एक हैं। उन्होंने जिस तरह अपना जीवन जिया, जैसे जीवन संघर्ष में विजय प्राप्त की, अध्यात्म व विज्ञान का समन्वयन किया, देश के बाहर भी जाकर अपने धर्म व संस्कारों का प्रचार किया, ओजस्वी भाषण से दुनिया भर को चमत्कृत किया, वह आज के युवाओं के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकता है बल्कि कहना चाहिए कि उसके लिए प्रेरणा का स्रोत होना ही चाहिए।
भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। विश्व शक्ति बनने की ओर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था का तमगा हासिल किया है। विज्ञान व तकनीकी में कमाल करते वैज्ञानिक, खेल की दुनिया में बढ़ते कदम, यही है आज के भारत की पहचान और इस पहचान का पूरा पूरा श्रेय जाता है देश की युवा पीढ़ी को। आज जब 12 जनवरी को विवेकानंद जयंती व युवा दिवस मनाया जा रहा है, तब आज के परिप्रेक्ष्य में देखना होगा कि आज के युवा की दशा व दिशा क्या होनी चाहिए। उसे देश के लिए क्या करना चाहिए।
अभी परसों जब सूर्य कर्क से मकर राशि में संक्रमण कर रहा होगा, तब देश एक साथ विज्ञान व मिथ तथा संस्कृति का अद्भुत समन्वयन देखेगा और देखेगा कि कैसे सूर्य के उत्तरायण होने से तिल-तिल बढ़कर दिन इतना फर्क पैदा कर लेता है कि शरद व ग्रीष्मकाल में भारी अंतर दिखने लगता है। उसी तरह से युवा पीढ़ी को जानना होगा कि एक -एक कदम मात्र बढ़ाने से भी जीवन के सफर में मंज़िल हासिल की जा सकती है और अपने दम-खम पर छलांगें भर कर भी। मगर एक रास्ते में स्थायित्व है तो दूसरे में खतरे के साथ मंज़िल पर जल्दी पंहुचने का लाभ। बस, अपनी सामर्थ्य व प्रतिभा देखकर रास्ता चुनना होगा बढ़ते हुए युवा को, न कि देखा-देखी।
बेशक, मकर संक्रांति की तरह ही हम भी आज एक संक्रमण काल में हैं। एक तरफ बुजुर्गोंं की पसंद का पुराना परंपरागत रास्ता है, उनकी अपनी सोच व संस्कार हैं तो दूसरी और बहुत ही तेजी से बढ़ता विज्ञान और तकनीकी व डिजिटल युग का नया-नया पदार्पण हुआ है। एक से प्रगति में ज़्यादा गति संभव नहीं है तो दूसरे के आफ्टर इफेक्ट्स अभी ज़्यादा पता नहीं हैं, अतः केवल एक ही रास्ते पर चलने का वक्त अभी नहीं आया।
हाँ, हर हाल में नए रास्ते की समझ पैदा करनी ही पड़ेगी, उसके प्रगति के सूत्र सीखने होंगें और पुरातन कहकर संस्कारों व अपनी सभ्यता को बिसराने, भूलने या उसे दोयम कहने, समझने की भूल से भी बचना होगा।
आज का युग रफ्तार का युग है और ‘स्पीड़ विद एक्युरेसी’ आज का ध्येय वाक्य है। अगर आपको आगे बढ़ना है तो हर हाल में आगे आना व रहना होगा। कार्य के प्रति समर्पण इसके लिए पहली शर्त है। अच्छी बात यह है कि हमारी नई पीढ़ी इस दिशा में सजग लग रही है तभी तो निजी क्षेत्र में तैनात युवा ब्रिगेड़ दस-बारह घंटे तक बिना थके व रुके काम कर रही है। पर, अगर यही बात सार्वजनिक क्षेत्र में भी आ जाए तो भारत सोने की चिड़िया वाली कहावत को हकीकत में तब्दील करने में ज़्यादा देर नहीं ही लगाएगा।
समर्पण के साथ लक्ष्य केन्द्रित होना भी अनिवार्य शर्त है। जो भी करें पहले एक लक्ष्य निर्धारित ज़रुर हो। क्या, क्यों, कैसे व कब तथा कहाँ करना है; यह तय करके ही पहला कदम उठाना समझदारी है। फिर उस लक्ष्य के लिये एक समय-सीमा तय कर छोटे-छोटे कदम उठाकर उस दिशा में बढ़ने वाला असफल होगा, इसकी आशंका कम ही होगी। और हाँ, केवल और केवल सफलता ही जीवन का मूलमंत्र नहीं होता है अपितु उस सफलता को पाने के लिए संसाधनों व प्रक्रिया की पवित्रता के साथ, नैतिक मूल्यों की राह को भी न छोड़ने वाले की सफलता चिर स्थाई होती है। हमें पश्चिम की नकल करते हुए केवल भौतिक समृद्धि का लक्ष्य ही हासिल नहीं करना अपितु अपने संस्कार व संस्कृति को भी बचाना-बढाना व समृद्ध करना होगा। हम ऐसा कर पाते हैं तो फिर हम ‘क्वालिटी विद डिफरेंस’ को भी पा सकते हैं।
तकनीकी पर पकड़ और अधुनातन यानि अल्ट्रामॉडर्न और एडवांस टेक्नालोजी को प्रयोग करना तो ज़रुरी है ही आज के युग में। कंप्यूटर तो अब छोटी बात हो गई है, नैनो तकनीकी और डिजिटलाइजेशन को अपनाए बिना कामयाबी की बात सोचना महज़ कल्पना मात्र ही होगा। अतः बिना हिचक के नई से नई तकनीकी का उपयोग करना होगा आज की युवा पीढ़ी को, तभी ग्लोबल गाँव हो चले विश्व में आप टिक पाएंगें। अब भारत के युवाओं के लिए केवल अस्तित्व बचाने का नहीं वरन् वर्चस्व बनाने का दौर है। उसमें आगे आकर ही हम अपने युवा आदर्श विवेकानंद जैसी शख्सियतों को श्रद्धांजलि दे सकते हैं।
मौज मस्ती ठीक है, शायद अधिक काम के बोझ से दबे युवा के लिए ज़रुरी भी हो। पर मस्ती के लिए समयबद्धता से समझौता आपको फिसड्डी बना देगा, यह भी जान लें। वचनबद्धता यानि कमिटमेंट पर ख़रा उतरने के लिए जो भी एसाइनमेंट आपको मिलता है, उसे गुणवत्ता के साथ-साथ दिए गए समय पर पूरा करने का मतलब होगा- आपकी प्रतिष्ठा व माँग बनी रहेगी अन्यथा रेस से बाहर होने में भी देर नहीं लगेगी; यह भी जान ले आज के युवा।
आज के युवा पर सबसे बड़ा आरोप लगता है उछ्रंखलता व मनमानी करने का, देर रात तक पार्टी में डूबे रहने का, शराब व नशाखोरी का, काम के प्रति लापरवाही का, पैसे की बर्बादी का, बड़ों की बात न मानने व उन्हें सम्मान न देने का। किसी हद तक यह बात सही हो भी सकती है पर क्या ताली एक ही हाथ से बजती है? क्या इसी सच का दूसरा पहलू यह भी नहीं है कि बुजुर्ग भी युवा को अपनी लाठी से हांकने के दोषी हैं। उन पर अपने बीते समय के मूल्य लादने की हरचंद कोशिश तो होती ही है, उनके हर काम में व करीब करीब हर बात में ही मीनमेख निकालने, उनकी हर बात में कमी ढूंढने, उनके आधुनिक विचारों पर अपने पुरातन पंथी विचार लादकर अनुभव या सीनियरिटी का रौब ग़ालिब करने की कोशिश शायद 10 से 20 प्रतिशत लोग ही नहीं करते होगें बाकी तो चाहते हैं कि हर हाल में युवा बस केवल और केवल उनकी ही सुनें, उनकी ही कही करें और परिणाम निकलता है दो पीढ़ियों के संघर्ष व एक खाई के रूप में।
हमें भी चाहिए कि हम युवा को उसके मन की करने दें। उसकी ऊर्जा को कुछ करने दें और अपने अनुभव को उसके सामने इस तरह रखें कि वह उसे आदेश या हस्तक्षेप नहीं वरन् एक सलाह लगे। यदि ऐसा होता है तो वह भी निश्चित ही उसे मानेगा।
चलते-चलते, आज विवेकानंद जी को याद करने का मतलब केवल उनकी नकल करना करना नहीं हो वरन् उनकी ही तरह की रचनात्मकता, योग-विज्ञान, संस्कृति व संस्कारों तथा देश भक्ति को आज की युवा पीढ़ी में संस्थापित व संक्रमित करना होना चाहिए। आज जब हम दुनिया के सबसे युवा देश माने जाते हैं, तब इस स्वर्णिम काल का पूरा-पूरा फ़ायदा देश को मिले, इसकी व्यवस्था करनी ही होगी। अन्यथा जो देश इस दौर से निकल चुके हैं और जो समस्याएं उनके सामने आ रही हैं वें या उनसे भी ज़्यादा हमारे सामने भी आने वाली हैं।
अब कुछ भी कहें, आने वाले समय में न पुरानी सोच काम आएगी न पुराने लोग। देश को नई दिशा देने का काम अगर कोई करेगा तो वे युवा ही होंगें। अगर वे विवेकानंद से प्रेरणा ले सकें तो बेशक हम एक बेहद चमकदार भारत को देखने वाले हैं आने वाले समय में। तो विवेकानंद जी के ही शब्दों कहें, “उत्तिष्ठ, जाग्रत प्राप्य वरांन्निबोधत।” यानि उठो, जागो और श्रेष्ठ को प्राप्त करो।
– घनश्याम बादल