लेख
आयामों के इंद्रधनुष रचती नारी, तुझे सलाम: घनश्याम बादल
वह नारी है, नर से दो ज्यादा मात्राएं लिए है शाब्दिक रूप में भी। वह दोयम दर्जे से लगातार बाहर आ रही है। उसे अबला बने रहना अब स्वीकार नहीं। वह कठोरतम पत्थरों के सीने में रस भरने व उनसे पानी निकालने का दम रखती है आज, उसने विपरीत परिस्थितियों में वह कर दिखाया है, जो अपने अनुकूल हवा बहने के बावुजूद खुद को उससे श्रेष्ठ मानने वाला पुरुष नहीं कर सका।
उसी प्रचंड दुर्गा व स्नेह की मूर्ति स्त्री को सलाम करने का दिन है आठ मार्च यानि विश्व महिला दिवस।
सहस्र रूपा नारी
सच है कि जीवन रफ्तार के साथ सही ढंग से तभी चलता है, जब उसके दोनों पहिए रवां हों। दोनों में तालमेल हो व दोनों ही बराबर गति के साथ चलें, अगर दोनों पहिए अपने हिसाब से चलें या रुकें तो जीवन की गाड़ी में न गति होगी न लय, न उसमें सफर करने वाले को आनंद आयेगा। पुरुष अपने अहं में कई बार अड़ता व लड़ता है मगर स्त्री हर बार जीवन को लय व गति देती है। अपने आप को होम कर भी माँ, बहन, पत्नी कितने ही रूपों में जीवन को जीवन बनाती रही है सदियों से। उसके बलिदान को प्रणाम का दिन भी है 8 मार्च।
अहा! वह कोमलांगी
कोमलांगी कहे जाने वाली नारी आज जीवन के हर क्षेत्र में न केवल जमकर खड़ी है अपितु उसने आयाम दर आयाम रचे हैं। ललित कलाओं में तो वह अप्रतिम है। लोक गायन को लें तो तीजनबाई का दूसरा सानी नहीं दिखता, लोकप्रिय संगीत व गायन में लतामंगेशकर अद्वितीय हैं। कितने ही पुरुष गायक आए व चले गए पर लता का राज कायम रहा व है। सोनल मानसिंह, कृष्णा सोबती, अमृता प्रीतम, महाश्वेतादेवी अपने-अपने सृजनक्षेत्र की महारानियाँ हैं। तो कोमलमना क्षेत्र की देवियों को भी नमन का दिन है 8 मार्च।
आँखें चौंधियाती सफलता
अब केवल कोमल व लालित्य क्षेत्र में ही नहीं, मुक्केबाजी, रणक्षेत्र, तकनीकी, वैमानिकी, अंतरिक्ष, आर्थिकी कहाँ नहीं हैं स्त्री के चरणरज का प्रताप। मैरी कोम, सानिया मिर्जा, साइना नेहवाल, अरुंधति भट्टाचार्य कितने ही चमकदार नक्षत्रों की चमक के आगे आँखें मिचमिचाने का दिन भी तो 8 मार्च।
संस्कार व सहकार की वाहक
उसे औरत कहें अथवा श्रद्धा या हव्वा। जननी कहें कि वामा या कोई दूसरा नाम दें पर उससे ही सृष्टि बनती बढ़ती व चलती है। वह हर समाज व देश का आधार है। स्त्री के बगैर समाज व परिवार में संस्कारों की कल्पना भी बेमानी है। पर, वही स्त्री आज जब पुरुष पर निर्भर हो, दोयम बन जीने व उसके इशारों पर नाचने को विवश हो तो विश्व महिला दिवस मनाना अर्थहीन हो जाता है और नारी की हालत, उसके हालात, दशा-दिशा व भविष्य पर सोचने का दिन बन जाता है 8 मार्च।
डार्क सर्किल तोड़ती स्त्री
इस उज्ज्वलता के पीछे अंधेरे भी कम नहीं हैं। आजादी को पुरुषों ने अपनी ताकत व बाहुबल से हथियाया है। औरत को मुट्ठी में कैद कर रखने, उसके हिस्से को हड़पने का हर हथकंडा अपनाया है। कई बार ऐसा लगता है कि औरत की कोई हैसियत है न वुजूद। वह बस पिसने, लुटने, शोषित होने को ही बनी हैं। उसकी आज़ादी झूठी व उसके लिए रचे गए जुमले थोथे हैं। सच में वह न आराध्या है, न पूज्या। अगर कुछ है तो बस शोषिता व दमित तथा प्रताड़ित। कभी निर्भया तो कभी किसी और रूप में वह बस देह मात्र बना दी गई है। वह न एकल आॅटो में सुरक्षित रह गई है, न शेयर्ड में। न आॅफिस में उसका शरीर महफूज़ है न घर में। वह सड़क पर भी लुटती है और घर में भी। इस पर भी चिंतन मनन का दिन है स्त्री दिवस।
बुलंदी का इतिहास रचती नारी
अब शोषण पुरुष करे या स्त्रियाँ पर नारी ने बुलंदी के नए से नए आसमान बनाए हैं व छुए हैं। उसने हर पल एक नया इतिहास लिखा है। कम से कम बीसवीं व इक्कीसवीं सदी में तो वह किसी से उन्नीस न रहने का जीवट व दमखम रखने का संदेश दे ही चुकी है। और आज का दिन एक निगाह वामा यानि स्त्री की उपलब्धियों पर डालने का मौका भी है। अब वे ज़माने लद गए, जब नारी को घर की चारदीवारी की शोभा बताकर उसे बाहर की खुली हवा में साँस लेने से रोका जाता था। आज घर-बाहर, दफ्तर-खेत, खलिहान, ज़मीन-आसमान, रेत-समंदर, बाहर-अंदर सब जगह अपनी छाप छोड़ चुकी है स्त्री।
बैटर दैन ‘बेटर हाॅफ’
एक बात और जहाँ-जहाँ भी अर्धांगिनी कही जानी वाली भार्या गई है, वहीं-वहीं उसने मर्द से बेहतर परर्फोमेंस दी है। शायद यही वजह है कि प्राईवेट सेक्टर में जब चुनाव की बारी आती है तो केवल फाईन आर्ट्स में ही नहीं वरन् इंजीनियरिंग जैसे मर्द-सेक्टर माने जाने वाले क्षंत्रों में भी उसने सफलता के झांडे गाड़े हैं। आज मैथ्स, तकनीकी, वैमानिकी, कंप्यूटर, मैनेजमेंट, आर्किटेक्ट जैसे क्षेत्रों में भी उसने अपने आपको सच में ही उसने खुद को बैटर दैन ‘बैटर हाॅफ’ सिद्ध किया है।
अप्रतिम होती स्त्री
आज वह सेना में सीमा पर लड़ रही है, जहाज व विमान चला रही है, पहाड़ों पर चढ़ रही है, समंदर की गहराईयों को नाप रही है, करखानों में उत्पादन में बरारबर की हिस्सेदारी दे रही है, खेलों में देश का झंडा बुलंद कर रही है, राजनीति में मर्दो को पाठ पढ़ा रही है यानि किसी भी नज़र से व किसी भी क्षेत्र में वह कमतर नहीं है। और रही बात उसके अपने विशिष्ट क्षेत्र की तो वहाँ तो वह आज भी अद्वितीय है ही। बच्चे पैदा करने, उन्हे संस्कार व तहज़ीब देने, परिवार का ख्याल रखने, उसे जोड़े रखने में स्त्री का सानी न था और न ही होने की उम्मीद है।
देश में एक से बढ़कर एक महिला रत्नों की कमीं नहीं है। हर वर्ग को लुभाने वाले अनगिनत नामों की एक लंबी फेहरिस्त है। ऊपर के नामों के अलावा राजनीति में सुषमा स्वराज, सोनिया गांधी, विजयाराजे, वृंदा करात, डिंपल यादव, प्रियंका वडेरा, अम्मा जयाललिता, ममता बनर्जी व आनंदीबेन जब अपने रंग में आते हैं तो अच्छों-अच्छों को छका देते हैं। इंदिरा नुई ने पेप्सीको को सम्हाल रखा है तो आधुनिक लेखन में अरुंधति राॅय की कलम की आग चमत्कार का दूसरा नाम बनकर उभरी है आज।
कीर्तिमानों का पर्याय
इतना ही नहीं, औरत केवल माँ, बहन, पत्नी या दूसरे नारी सम्यक रुपों के लिए ही नहीं वरन आज रफ-टफ माने जाने वाले सैक्टरों में भी छा रही है। कल्पना चावला अंतरिक्ष तक धावा मार आई हैं तो कनेरु हंप्पी ने शतरंज में परचम फहराकर दिखाया है। पी. टी. उषा ने एथेलेटिक में जो शुरुआत की थी, उसे स्त्री ने मरने नहीं दिया है। आज भी ओलंपिक व एशियाई खेलों में भारत का झंडा पुरुष से ज्यादा उसी ने ऊंचा रखा है।
आज की नारी न केवल कोमलमना व संस्कारी तथा मूल्यों की संरक्षक है, वह परिवार की धुरी व समाज की सेतु है। उसने अपने जीवट व जिजीविषा का परिचय दिया है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम भी उस पर लगा दोयम का लेबल उतार उसके सपनों की उड़ान के सहभागी बनें क्योंकि याद रखिए नारी बढ़ेगी तभी देश भी बढ़ेगा और देश के बढ़ने का मतलब है सबका विकास तो उसी विकास के सपनों को अपने सहयोग से सींचने का दिन भी बना दें 8 मार्च को।
– घनश्याम बादल