कथा-कुसुम
लघुकथा- राजनीति
“पापा, देखिये आपकी पार्टी के वरिष्ठ मंत्री जी बागी उम्मीदवार को मिठाई खिलाकर उनका मुँह मीठा कर रहे हैं।” मंत्री जी के किशोर बेटे ने लोकल न्यूज चैनल देखते हुए कहा।
“हाँ, तो इसमें नई बात क्या है?” मंत्री जी ने पूछा।
“पापा, आपको याद होगा इसी न्यूज चैनल पर एक डिबेट में मतगणना के पहले आज सुबह आपकी पार्टी के अध्यक्ष ने कहा था कि बागी उम्मीदवारों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाएगी। उन्हें आवश्यकतानुसार निष्कासित भी कर सकते हैं। और अब ये देखिए, पार्टी के वरिष्ठ मंत्री बागी उम्मीदवार के कंधे पर हाथ रखकर चल रहे हैं।” किशोर चकित था।
नेताजी ने समझाया, “बेटा, यही तो राजनीति है। यहाँ कोई भी संबंध स्थाई नहीं होता। जरूरत पड़ने पर शेर और हिरण एक ही घाट पर पानी पीते हैं। यहाँ सबकुछ देश, काल, परिस्थिति पर निर्भर करता है।”
“मतलब…!” बेटे ने बाप की ओर आश्चर्य से देखते हुए पूछा।
“मतलब ये कि सुबह मतगणना के पहले तक हमारे माननीय अध्यक्ष महोदय आश्वस्त थे कि हमारी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। अब परिणाम जारी होने के बाद तुम देख ही रहे हो मामला फँस गया है। दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच काँटे की टक्कर है। ऐसे में सरकार बनाने के लिए इन जीते हुए बागी उम्मीदवारों के समर्थन के लिए ऐसा करना समय की माँग है। वैसे बड़े सयाने कह के गए हैं, सुबह का भूला शाम को घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते हैं।” नेताजी ने बेटे की जिज्ञासा शांत कर दी थी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा