हाइकु
हाइकु
मत बनना
छुईमुई-सी तुम
छलेंगे लोग।
सर्दी की रात
भीतर सदियों से
जले अलाव।
कहती सब
गर तुम सुनते
मेरे मन की।
जंगल राज
भेड़ियों की जमात
डरी बेटियाँ।
ज़िन्दगी माँ की
कट गयी सोचते
सबकी ख़ुशी।
लुटते गाँव
कचोटते शहर
कहीं न ठाँव।
फ़ोन की स्क्रीन
उँगलियाँ नाचतीं
ख़ाक छानतीं।
मशीनी युग
एहसास मरते
दिल टूटते।
चित्र बनाए
जीवन कैनवास
फिर भी कोरा।
घर सजाया
सँवारा सब कुछ-
अपने सिवा।
– डॉ. भावना तिवारी
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