कविता-कानन
कविता- मुर्गे की बारात
एक मुर्गे की चढ़ी बरात,
ढोल-नगाड़े साथम-साथ।
कौआ, कोयल सारे साथी,
नाच रहे बनकर बाराती।
काले रंग का सूट पहनकर,
लाल रंग की टाई लगाये।
मुर्गे राजा घूम रहें हैं,
कान पे अपने फोन लगाये।
मुर्गी भी तैयार हुई,
और मेहंदी हाथ रचायी।
लाल रंग का पहन के लहंगा,
बिन्दिया लाल लगायी।
शादी की पार्टी में सबने,
लड्डू-पेड़े खाए।
मोर-मोरनी डी.जे. फ्लोर
नाचे, पंख फैलाए।
नाच कूदकर सोये ऐसे,
भूले सभी विदाई।
सुबह खुली जब आँख,
तो खुद मुर्गे ने बांग लगाई।
सूरज सर पे आया देख,
सब बाराती भागे।
पीछे सब बाराती,
मुर्गा-मुर्गी कार में आगे।।
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कविता- बिल्ली का झूला
सावन में एक पेड़ पे,
बिल्ली ने भी झूला डाला।
लगा के उस पर गद्दी बढ़िया,
ऊँचा दिया उछाला।
बैठ के झूले में बिल्ली,
चूहों पर रौब जमाए।
बोली जब मैं ऊँची जाऊं,
सब ताली खूब बजाएँ।
झूल रही थी, मज़े-मज़े में,
गिरी पेड़ की डाली।
सारे चूहों ने हँस हँसकर,
खूब बजाई ताली।।
– असमा सुबहानी