संस्मरण
सब लोग कह रहे हैं वो ‘अनवर’ नहीं रहे- अमन चाँदपुरी
करीब ढाई साल पहले की बात है। 29 सितंबर 2015 को अम्बेडकर नगर अपने 20 वर्ष पूरे होने का जश्न मना रहा था। उसी साल अम्बेडकर नगर महोत्सव की शुरुआत हुई थी। इस एक दिवसीय महोत्सव का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के राज्यपाल श्रीराम नाइक ने किया था। नृत्य, संगीत, कला एवं अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ एक मुशायरा एवं कवि सम्मेलन भी आयोजित हुआ था, जिसमें विकल साकेती, अनवर जलालपुरी, हरि फ़ैज़ाबादी, वाहिद अली ‘वाहिद’, गजेंद्र प्रियांशु, हाशिम रज़ा जलालपुरी एवं अभय सिंह ‘निर्भीक’ आदि श्रेष्ठ कवियों-शायरों के साथ मुझे भी आमंत्रित किया गया था। यही वो पहला मौक़ा था जब मैंने किसी काव्य मंच पर कविता पाठ किया। देर रात हज़ारों श्रोताओं के बीच कार्यक्रम की शुरुआत हुई। उस दिन अनवर साहब को पहला ‘अम्बेडकर नगर रत्न’ सम्मान देकर सम्मानित किया गया। यहीं पर पहली बार उनसे मेरी मुलाक़ात हुई थी। उस दिन उन्होंने जो काव्यपाठ किया, उसके अनेक शेर आज भी मेरे ज़ेहन में ताज़ा हैं-
तुम प्यार की सौग़ात लिए घर से तो निकलो
रस्ते में तुम्हें कोई भी दुश्मन न मिलेगा
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जो भी नफ़रत की है दीवार गिराकर देखो
दोस्ती की भी ज़रा रस्म निभाकर देखो
कितना सुख मिलता है मालूम नहीं है तुमको
अपने दुश्मन को कलेजे से लगाकर देखो
उनका पूरा जीवन सामाजिक सौहार्द और राष्ट्रीय एकता को समर्पित रहा। वो गंगा-जुमनी तहज़ीब के बहुत बड़े अलमबरदार थे। उन्होंने जहाँ क़ुरआन के तीसवें पारे को शायरी में ढालकर ग़ैर मुस्लिम लोगों को आसान ज़बान में पढ़ने के लिए उपलब्ध कराया। वहीं हिन्दुओं के पवित्र धार्मिक ग्रंथ श्रीमद्भगवतगीता का ‘उर्दू शायरी में गीता’ नाम से अनुवाद कर उसे जन-जन तक पहुंचाया। मेरी दृष्टि में जो मुक़ाम महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की ‘श्रीरामचरितमानस’ का है। वही मुक़ाम ‘उर्दू शायरी में गीता’ का भी है। मैं इन दोनों पुनीत ग्रंथों को एक ही श्रेणी का मानता हूँ। मेरी निजी लाइब्रेरी में श्रीमद्भगवतगीता, जो गीता प्रेस, गोरखपुर से प्रकाशित है, उपलब्ध है। उसे मैंने कई बार पढ़ने की कोशिश की। लेकिन समझ में न आने के कारण जितनी कठिनाई से उसे पढ़ने के लिए उठाता था उससे कई गुना आसानी से वापस रख देता था। वहीं ‘उर्दू शायरी में गीता’ जो अनवर साहब के शागिर्द हरि सर ने जब उपहार स्वरूप दी तो उसे अगले ही दिन 701 श्लोकों का 1761 अशआर में किया गया अनुवाद एक ही बैठक में पूरा पढ़ गया। गंगा-जमुना के अविरल प्रवाह की तरह मिली-जुली हिन्दी-उर्दू ज़बान में श्रीमद्भगवतगीता के पहले श्लोक “धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः/मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय” का कितनी सरलता से और सधी ज़बान में उन्होंने अनुवाद किया है, देखिए-
धृतराष्ट्र आँखों से महरूम थे
मगर यह न समझो कि मासूम थे
उन्हें भी थी ख़्वाहिश की दुनिया है क्या
अंधेरा है क्या और उजाला है क्या
वह एक शख़्स संजय पड़ा जिसका नाम
वही उनसे आख़िर हुआ हम क़लाम
उसे रब ने ऐसी नज़र बख़्श दी
कि बिन देखे हर इक शय देख ली
धृतराष्ट्र राजा भी थे, बाप भी
समझते थे वह पुण्य भी पाप की
मोहब्बत से बेटों की सरशार थे
अजब तरह के वह भी क़िरदार थे
उन्हें थी यह ख़्वाहिश कि सब जान लें
सभी लड़ने वालों को पहचान लें
कहानी तो संजय सुनाता रहा
है मैदान में क्या बताता रहा
वह मैदां जो था जंग ही के लिये
वहीं से जले धर्म के भी दीये
लखनऊ में उनसे छिटपुट मुलाक़ातें तो अक्सर होती रहती थीं। मेरी तीव्र इच्छा थी एक बार उनसे उनके घर पर मिला जाए। उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व को और भी नज़दीक से जाना और समझा जाए। इसलिए हरि सर के साथ 22 मई को मैं अनवर साहब के दौलतख़ाने पर गया। 28 मई को हरि सर के दोहा संग्रह ‘जीवन की हर बात’ का विमोचन होना था, जिसमें वो विशिष्ट अतिथि थे। उसी का निमंत्रण पत्र उन्हें देने हम लोग गए थे। हरि सर ने अनवर साहब से मेरा परिचय कराते हुए कहा, “इनका नाम अमन चाँदपुरी है, अम्बेडकर नगर में टांडा के पास इनका घर पड़ता है। यहाँ रहकर पढ़ाई करते हैं। मेरे घर से चंद क़दमों की दूरी पर ही रहते हैं। आपसे मिलने की इनकी बड़ी इच्छा थी इसलिए आज इनको भी साथ ले आया। इस किताब (जीवन की हर बात) में इनका भी आलेख है।”
अनवर साहब के लिए मैं मोहताजे-तारुफ़ नहीं था। उन्होंने फ़ौरन कहा, “अम्बेडकर नगर महोत्सव में तो इनसे मुलाक़ात हुई थी।” मुझे ये जानकर बड़ी हैरत हुई कि अनवर साहब को मेरा चेहरा ही नहीं बल्कि नाम भी याद है। उन्होंने कहा, “अपना लिखा कुछ सुनाओ।” मैंने उन्हें कुछ दोहे, कुंडलियाँ एवं हाइकु सुनाए। उन्हें मेरी रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं। बोले, “यदि ग़ज़ल कहते हो तो वो भी सुनाओ। तुम्हारे नाम से तो लगता है तुम ग़ज़लकार हो।” उस समय तक मैंने सिर्फ दो ही ग़ज़लें कही थीं, दोनों सुना दी। उन्हें मेरे शेर भी पसंद आये। लौटते समय उन्होंने अपनी कुछ किताबें मुझे भेंट की। उस दिन इस मुलाक़ात का ज़िक्र करते हुए फेसबुक पर मैंने लिखा था-
“यश भारती अवार्डी मशहूर शायर अनवर जलालपुरी साहब की ‘उर्दू शायरी में गीता’ मैंने पढ़ी है, ‘अदब के अक्षर’ एवं ‘प्यार की सौग़ात’ को भी मैंने पढ़ा है। आज उनके आवास पर मुझे हरि फ़ैज़ाबादी साहब के साथ मुलाक़ात करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस दौरान उन्होंने पुस्तक के रूप मुझे दो ख़ूबसूरत तोहफ़े दिये। ये दोनों उनके द्वारा अनुदित पुस्तकें हैं जिनका नाम है ‘उर्दू शायरी में गीतांजलि’ एवं ‘उर्दू शायरी में रुबाईयात-ए-ख़य्याम’
“वो हाथों में ग़ज़लें लिए फिर रहा
कहो उससे ग़ज़लें छुपा कर चले”
अनवर साहब को मेरा ये शेर काफी पसंद आया।”
मगर आज अनवर साहब सशरीर हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन उनकी रचनाएँ रहती दुनिया तक उन्हें ज़िन्दा रखेंगी। भारत सरकार ने उन्हें इस वर्ष देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान पद्मश्री मरणोपरांत प्रदान किया है। 31 दिसम्बर को मैं ट्रामा सेंटर उन्हें देखने गया था। स्थिति नाज़ुक थी, कोमा में थे। लेकिन नए साल से ये उम्मीद थी कि 2018 नई सुबह लेकर आयेगा और अनवर साहब पहले की तरह स्वस्थ्य होकर हमें फिर से मंचों पर शेर पढ़ते हुए, निजामत करते हुए नज़र आयेंगे। लेकिन 2 जनवरी की सुबह जलालपुर से निकलकर दुनिया के कोने-कोने में अपने इल्मो-फ़न का लोहा मनवाने वाला ये आफ़ताब ढल गया और सभी लिखने, पढ़ने और सुनने वालों को ग़मगीन कर गया। उनकी मौत की ख़बर सुनकर किसी के लिए भी यक़ीन कर पाना बेहद मुश्किल था। मगर मृत्यु तो अटल सत्य है, इस पर किसी का बस नहीं चलता। उस दिन ख़िराजे-अकीदत के रूप में चार मिसरे कहे थे। उसी से अपनी बात को विराम देते हुए अल्लाह से दुआ करता हूँ कि इस अज़ीम शायर, लेखक, नाज़िम एवं गीता पुरुष को मग़फ़िरत अता करे और जन्नत में आला मुक़ाम दे। आमीन। सुम्मआमीन।
बज़्मे-अदब उदास है आँखें हैं सबकी नम
अब बोल तेरे बाद सुख़नवर कहें किसे
जिसने करोड़ों दिल को फ़तेहयाब है किया
सब लोग कह रहे हैं वो ‘अनवर’ नहीं रहे
– अमन चाँदपुरी