भाषांतर
इस बार भाषांतर में प्रस्तुत है कुछ अलग-अलग मराठी रचनाकारों की कविताओं का हिन्दी अनुवाद, अलकनंदा साने की कलम से-
औरत
(मूल रचनाकार- हर्षदा सौरभ)
कपड़े सुखाने जैसे रोजमर्रा के काम
और ऐसी ही छोटी-छोटी बातों में
छुपा रहता है किसी औरत का कौशल्य।
वह जानती है
कि यदि ताप का सामना करना हो
तो बाहरी नकली दिखावे से
ज्यादा जरुरी है
अंदर की मजबूती।
अनुभवों की एक पूरी बिसात है उसके भीतर
और इसीलिए वह कपड़े सुखाते समय
उन्हें पलट कर अंदर के हिस्सों को
कर देती है, धूप के समक्ष।
औरत एक एक कपड़ा निकालती है बाल्टी से
गीले कपड़े को करती है सीधा,
झटकारती है और फिर डालती है रस्सी पर
क्योंकि एक वही तो है
जो जानती है
कि जरुरी होता है
समय रहते चीजों को सरल बनाना
और अनावश्यक कारकों को
झटककर बाहर करना।
सामने की ओर
धूप के सम्मुख पहली रस्सी पर
वह सुखाती है, पुराने, घर में पहनने के
या बदरंग हो गए कपड़े
उसके सिवा कोई नहीं जानता
कि दृढ़तापूर्वक और बिना किसी उपालंभ के
घर के कपड़े सब संभाल लेते हैं
तभी बाहर पहने जाने वाले कपड़े
पाते हैं प्रतिष्ठा।
बिल्कुल पीछे की ओर वह सुखाती है
पति के शॉर्टस और बच्चों के अंतर्वस्त्र आदि
वह चौकन्नी रहती है
ताकि बालकनी के अंदर की चीजें
बाहर वालों को कभी भी न दिखाईं दें
और उसके अपने अंतर्वस्त्र
दूसरे कपड़ों के बीच में छुपाना नहीं भूलती वह
क्योंकि सुखाने की बजाय
अंतर्वस्त्रों का छुपाया जाना ज्यादा जरुरी है
यह जोर देकर बताया है माँ ने उसे
और वह भी यह रिवाज
किसी कीमती परम्परागत धरोहर की तरह
सौंपेगी अपनी बेटी को।
एक औरत,
घर के महज एक काम के बीच भी
कितना साधती है परिवार को
फिर भी जब उससे पूछा जाता है
कि ”क्या करती हैं आप”
तब वह ”कुछ नहीं, घर पर ही रहती हूँ”
इतना कहकर रुक जाती है।।
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कुछ भी मुश्किल नहीं
(मूल रचनाकार- शिवाजी सावंत)
सिर्फ कविता लिखते जाना
मुश्किल नहीं होता
वर्णमाला का जोड़ घटाव भी
मुश्किल नहीं होता
दीवानगी की हद तक चाहना करो कविता की
उसके गीत गाओ
उसकी नज़रों से नज़र मिलाकर
उतर जाओ भीतर तक
फिर दिखेगा उसका मोहक
सुन्दरतम स्वरूप
शायद कुछ म्लान, विषण्ण हो
पर वही होगा असली जीवन संगीत।
सीने पर वार झेलना
कठिन नहीं होता
एक ही गोली में दम निकल जाना
कठिन नहीं होता
इंच इंच ज़मीन के लिए लड़े होंगे बहुतेरे
तुम देह के हर इंच पर
ज़ख्मों को सहेजते हुए
लड़कर देखो
जीत के नज़दीक जाकर
किसी के लिए हारकर देखो
नंगे पैर चलकर देखो
कोयले-सा रफ़्ता-रफ़्ता जलकर देखो
लाल-काली मिटटी में
बीज-सा धँसकर कोंपल बनकर देखो।
मुदित, हर्षित हो
खिल-खिल जाना असम्भव नहीं होता
गदराए घर की चहल-पहल में
मशगूल हो जाना असम्भव नहीं होता
गौरैया के लिए, मैना के लिए,
कौव्वे के लिए, तोते के लिए
छत पर दाना पानी रखकर देखो
बछड़े-पाड़े के लिए थोड़ी-सी
खुली जगह रखकर देखो
क़दम मुड़ेंगे अपने आप
अच्छे पद चिह्न बनाकर देखो
आँधी, तूफान में दिये की लौ को
हाथ की ओट से बचाकर देखो।
देखो!
कुछ भी
मुश्किल नहीं है,
कठिन नहीं है,
असम्भव नहीं है,
करके तो देखो!!
नोट: शिवाजी सावंत कवि है, उपन्यास ‘मृत्युंजय’ के लेखक नहीं
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सुनो मन!
(मूल रचनाकार- आनंद पेंढारकर)
मन रे!
एक बात बता
तेरे-मेरे रिश्ते का
एक सुन्दर-सा चित्र बनाया तो कैसा रहेगा?
चिंता मत करना
यक़ीनन सब पसंद करेंगे उसे।
मैं उसमें भरूँगा
अपनी साँसों में घोलकर बनाए हुए
सारे ख़ूबसूरत,कोमल, भावुक रंग
मैं जानता हूँ
कि तुम्हें पसंद नहीं ही आएँगे
मैंने भरे हुए रंग
कुछ को तो तुम नकली भी समझोगे
इसीलिए मैंने केनवास की जगह
पारदर्शक काँच लिया है
तुम तुम्हारी ओर से भरो
अपने पसंदीदा रंग
और मैं अपनी ओर से करता हूँ वादा
कि मेरे लिए वे रंग भी
उतने ही प्रिय होंगे
जितने मेरे अपने।
सिर्फ एक बिनती है
कि चित्र वैसा ही रहने देना
उसका आकार मत बदलना
व्याकुल हो जाएँगे मेरे प्राण।
जैसे बचपन में पढ़ते थे हम
कि राक्षस के प्राण होते थे तोते में
ठीक वैसे ही
जान बसी है मेरी उसमें
– अलकनंदा साने