प्रेम रंग में रंगी है सखियाँ,
प्रियतम रंग चढ़ावें है।
शुक्ल पक्ष फाल्गुन माह संग,
प्रेमालाप बढ़ावें है।
कभी हँसकर, कभी मुलक कर,
नयनों संग तीर चलावें है।
तीर भी बन गये एके 47,
यह बात समझ न पावें है।
प्रेम रंग में इक-दूजे संग,
अपना हर हाल बतावें है।
नहीं होती है दुनियादारी,
यह बात हमें समझावें है।
भाग-दौड़ कर मध्य सड़क पर,
उत्साह संचार बढावें है।
हाथों में प्रिय का हाथ लिए,
प्रेमारंग से पार करावें है।
नवीन भी देखें और समझें,
संग कलम के प्यार बढ़ावें है।
इस रंग में तुम भी रंग जाओं,
यह विरले को चढ़ पावें है।
यह विरले को चढ़ पावें है।