भान है मुझे,
जो मुझ तक आती थीं
वो राहें, बदल गई हैं तुम्हारी।
मुड़ गई हैं
किसी अन्य दिशा में
एक नए गंतव्य की ओर।
नहीं,
मैं व्यथित नहीं।
बस चाहती हूँ
अपनी अमानतें जो
तुमने छोड़ी हैं मेरे पास
वो ले जाओ आकर
अपने साथ।
दरवाज़े के पीछे
नजरों से ओझल
दीवार पर खूँटी से टँगा है
तुम्हारे अहम का पुलिंदा।
निचोड़ा था मैंने जिन्हें
बड़ी कोमलता से,
तुम्हारे व्यक्तित्व के
हर कोने से
उसे ले जाओ।
जब असफलताओं से टूटकर
आशा की लौ बुझने लगी थी
तुम्हारी निराश आँखों में।
उस लौ को रोशन किया मैंने
अपनी जीवंत आँखों में
तुम्हें तुम्हारी छवि दिखाकर।
उस लौ की कुछ किरणें
बिखरी पड़ी हैं अब भी
मेरे हर तरफ, उन्हें भी ले जाओ।
वो तुम्हारी हृदय चीरने वाली
चुप्पियाँ!
तोड़ा था जिनको मैंने
अपनी गुनगुनाहट से,
तुम्हारे बालों को
अपनी उँगलियों से
सहलाते हुए।
उन चुप्पियों को ले जाओ
मेरी गुनगुनाहट के बदले।
जरा ठहरो!
मेरी भी कुछ अमानतें
तुम्हारे पास हैं।
तुम्हारे तकिए के नीचे
मेरी आँखों से ढ़लके
कुछ मोती मिलेंगे।
तुम्हारे कमरे की दीवारों से
टकराकर वापस आती
मेरी सिसकियों की प्रतिध्वनियां
अब भी दबी पड़ी होंगी
दरवाजे पर पायदान के नीचे।
और कभी तुम्हारे गुदगुदाने से
खिलखिलाती मेरी हँसी
वहीं भूल आई हूँ, रसोई की दराज में
शहद की शीशी के आसपास।
एक बार छेड़ा था तुमने
किसी चुटकुले के बहाने
तब शर्म से सूर्ख हुई
मेरे गालों की लाली
अब भी कैद है
दीवार पर टँगे दर्पण में।
अमानतें मेरी
वो सब, लौटा दो मुझे,
फिर तुम स्वतंत्र हो
मुखातिब होने के लिए
अपने नए गंतव्य की ओर।