फिर से आया है नया साल चलो रक़्स करें
चाहे कैसा भी हो अब हाल चलो रक़्स करें
है वही दिल वही नज़रें वही मासूम अदा
क्या जो बदले हैं ख़द-ओ-ख़ाल चलो रक़्स करें
यूं बहाने न बनाओ न ही अब दूर रहो
के चलेगी न कोई चाल चलो रक़्स करें
जबसे देखा है तेरा रूप सुनहरा उसने
आइना भी है ये बेहाल चलो रक़्स करें
होश में जा नहीं पाया जो करीब उनके तो
नींद में चूम लिए गाल चलो रक़्स करें
कल को जैसे थे वो फिर आज भी वैसे ही हैं
यूं तो बदला है मह-ओ-साल चलो रक़्स करें
साल भर बाद ही आएगा नया साल ये अब
फिर मिलेंगे न ये सुर ताल चलो रक़्स करें
रक़्स – नृत्य/नाच
ख़द-ओ-ख़ाल – चेहरा, शक्ल सूरत
मह-ओ-साल – महीना और साल
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