लघुकथा
शर्मा जी के पास अथाह पैतृक संपत्ति थी इसलिए उन्होंने अध्ययन की तरफ़ अधिक ध्यान नहीं दिया। घर के बाहर एक बड़े चौराहे पर हीरा टी स्टॉल पर उनका पूरा दिन बीतता था। बहुत सारे लोग शर्मा जी को जानने लगे थे और अक्सर उनको घेर कर बैठे रहते। शर्मा जी उनकी चाय का बिल बहुत ख़ुशी से चुकाते और दिन भर राजनीतिक चर्चा का आनंद उठाते। परिवार भी बड़ा हो गया था। दो बेटे बड़े हो गए थे और दोनों के बहुएँ भी आ गयी थीं। शर्मा जी की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं आया।
नगर परिषद के चुनाव का समय आया तो हीरा टी स्टॉल के मित्रों ने शर्मा जी को सलाह दी कि इस बार आप भी पार्षद का चुनाव लडें, हम सब आपके साथ हैं। आपके घर में ही सात वोट हैं, आपकी जीत निश्चित है। शर्मा जी ने सबकी बात पर विश्वास करके पार्षद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया। चुनाव होने तक चाय के साथ कचौड़ी, मिठाई आदि का सभी ने हीरा टी स्टॉल पर बैठ कर लुत्फ़ उठाया। चुनाव का जब परिणाम आया तो शर्मा जी को केवल चार वोट ही मिले। इतनी अविश्वसनीय हार के बाद शर्मा जी को ध्यान आया कि घर में ही सात वोट थे फिर भी चार वोट ही कैसे मिले। पूरे परिवार पर भी उनको शक होने लगा। मोबाइल के इस युग में भी किसी भी चाय मित्र का सांत्वना तक का फ़ोन नहीं आया। शर्मा जी को अब राजनीति की सही परिभाषा समझ में आई। अगले दिन से उन्होंने हीरा टी स्टॉल जाना छोड़ दिया और मंदिर जाना शुरू कर दिया।