जब से उन्होंने नई टू व्हीलर खरीदी है तब से वे लगातार उसे पोंछ रहे हैं। गाड़ी चलाते हुए सब से आगे नहीं हैं लेकिन पोंछने में किसी से पीछे भी नहीं है। परिवार वालों ने अपने कपड़े छुपा दिये है क्योकि ये महाशय जो भी कपड़ा देखते हैं उसे गाड़ी पोंछने के लिये ले लेते हैं। अब तो घर वाले इनके सामने आने से भी डरने लगे हैं कि कही ये आदमी गाड़ी पोंछने के लिए उनके जिस्म से कपड़े न उतार दे।
साबुन, शैम्पू और टॉवेल हाथ में लेते हैं तो पत्नी समझती है नहाने जा रहे हैं लेकिन ये गाड़ी धोने चले जाते हैं। गाड़ी साफ़ रखने के चक्कर में खुद गंदे हो गये हैं। जब से गाड़ी लिये हैं, नहाए नहीं हैं। कहते हैं नहाने में पानी बर्बाद करने से अच्छा है उस पानी से गाड़ी धो ली जाये क्योकि शरीर तो वैसे भी नश्वर है। इनकी मान्यता है बूंद बूंद पर लिखा है धोने वाले का नाम। गाड़ी का इन्होने क्रिकेट से अजीब रिश्ता जोड़ा है कहते हैं गाड़ी में धोना है तो क्रिकेट में धोनी है, फिर गंभीर होकर कहते है ये दुनियां धोना धोनी का खेल है।
इनके ऑफिस के साथी सोच रहे थे कि अब इन्होंने नई गाड़ी खरीद ली है तो अब छुट्टी नहीं मारेंगे और रोज़ अपनी गाड़ी पर आ जायेगे। उन्होंने सोचा था ये छुट्टी नहीं लेगे और इन्होंने गाड़ी पोंछने के लिए ऑफिस से छुट्टी ले ली। छुट्टी के आवेदन में इन्होंने लिखा कि मेरे घर में गाड़ी की देखभाल करने वाला कोई नहीं है और मैं जवान और खूबसूरत गाड़ी को घर में अकेला नहीं छोड़ सकता अतः मुझे गाड़ी पोंछने के लिए एक माह की छुट्टी देने कि महती कृपा करे। बॉस ने यह कहते हुए छुट्टी मंज़ूर कर ली कि बीच में जिस दिन भी गाड़ी साफ़ दिखे, काम पर आ जाना।
अब इनके जीवन का एक ही लक्ष्य है गाड़ी धोना। ठंड के दिनों में गाड़ी को ज़ुकाम न हो जाए इसलिए गाड़ी गर्म पानी से धोते है। ठंडी रातों में खुद खुल्ला सोते है लेकिन गाड़ी को कंबल उढाते हैं, विक्स लगाते है और गर्म पानी की थैली से सेक करते हैं। डरते हैं कि कहीं गाड़ी को निमोनिया न हो जाये।
बाबा भारती भी अपने घोड़े से इतना प्रेम नहीं करते होगे जितना ये अपनी गाड़ी से करते है एक पल भी गाड़ी से दूर नहीं होते है। इनका मानना है कि बाबा भारती के समय में तो बस एक ही डाकू था लेकिन अभी सुल्ताना की संख्या में ज़बरदस्त बढ़ोतरी हुई है। गाड़ी के प्रेम में पत्नी को भूल गए हैं , दो चक वाली के चक्कर में दो पग वाली को छोड़ दिए।
कॉलोनी के लोग इन्हें गाड़ी धोते पोंछते देखने के इतने आदी हो गए हैं कि किसी दिन ये गाड़ी पोंछते हुए दिखाई नहीं देते है तो लोगों को टेंशन हो जाता है , उन्हें जीवन में कुछ कमी सी महसूस होती है और वे आपस में एक दूसरे से पता करते है कि उनकी तबियत तो ठीक है? जब तक वो गाड़ी के पास नहीं आ जाते लोग परेशान रहते हैं और उनका किसी काम में मन नहीं लगता। जैसे ही खबर आती है कि वो गाड़ी पोंछना शुरू कर दिये हैं तब लोग चैन की सांस लेते है और अपने अपने काम में लग जाते हैं।
गाड़ी का ऐसा कोई हिस्सा नहीं जिसे इन्होंने पोंछा नहीं और ऐसा कोई किस्सा नहीं जिसे इन्होने बोला नहीं। पॉवर ग्लास से धूल देख-देख कर पोंछते है। गाड़ी पोंछने में इनकी श्रद्धा है लेकिन गाड़ी चलाने में आस्था नहीं है। इनका स्पष्ट कहना है कि चलाने से गाड़ी खराब हो जाती है जिस कारण रिसेल वैल्यू नहीं मिलती। इस मामले में ये इतने कट्टर है कि शोरुम से घर तक भी गाड़ी चलाते हुए नहीं बल्कि ऑटो में रख कर लाये थे।
एक वरिष्ठ गाड़ीवान का दावा है कि वो भले आज पोछ्म पाछ मचा ले लेकिन जैसे जैसे गाड़ी पुरानी होती जायेगी उसकी कद्र घटती जायेगी और एक दिन ऐसा आयेगा जब गाड़ी घर में वृद्धो की तरह सहमी , आफ़िस में गंभीर मामलो की फाईल की तरह धूल खाती और मेले में लोक कलाकारों की तरह उपेक्षित पड़ी रहेगी।