अर्वाचीन संस्कृत साहित्य का आकाश विविध विधा रूपी ऩक्षत्रों से भरा हुआ जगमगा रहा है। कथ्य और शिल्प में इधर परिवर्तन भी देखने को मिलता है। संभवतः इसका कारण यह रहा कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् के समय में जब तकनीकी उन्नति के कारण विश्व आस-पास सिमट आया तो संस्कृत कवि का परिचय केवल भाषायी विविधता वाले भारत देश की संस्कृतेतर भाषाओं के साहित्य से ही नहीं हुआ अपितु वह विदेशी भाषाओं के साहित्य के भी सम्पर्क में आया। उन भाषाओं के साहित्य का प्रभाव उसके लेखन पर देखने को मिलता है। साथ ही अब संस्कृत कवि स्तुति-प्रशस्ति मात्र में अपनी प्रतिभा को नहीं खपाना चाहता अपितु वह अपने काव्य में समकालीन घटनाओं को देखता हुआ भी उस काव्य को सर्वकालिक बनाता है।
संस्कृत समीक्षकों ने 20 वीं एवं 21 वीं सदी के संस्कृत साहित्य को स्वर्ण युग के नाम से अभिहित किया है। वर्तमान में कई वरिष्ठ कवियों के साथ युवा कवि भी सतत् रचनाएँलिख रहे हैं। ये रचनाएँ पाठकों द्वारा पढी और सराही भी जा रही है। कई पत्र-पत्रिकाएँ निरन्तर प्रकाशित हो रही हैं। साथ ही इन रचनाओं पर कई विश्वविद्यालयों से शोध कार्य भी हो रहे हैं। समीक्षक अर्वाचीन संस्कृत की रचनाओं की समीक्षा कर रहे हैं। युवा समीक्षक डॉ.अरुण कुमार निषाद उत्साही अध्येता हैं। डॉ. निषाद अर्वाचीन संस्कृत साहित्य पर आलेख लिखते रहे हैं। इसके पूर्व भी डॉ. निषाद के दो ग्रन्थ‘आधनिक संस्कृत साहित्य की महिला रचनाधर्मिता’ और ‘आधुनिक संस्कृत साहित्य : विविध आयाम’प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ में अर्वाचीन संस्कृत साहित्य पर समय-समय पर डॉ. अरुण कुमार निषाद द्वारा लिखित 25 आलेखों का संकलन करके एक साथ प्रकाशित करवाया जा रहा है, जो निश्चित ही प्रशंसनीय है। प्रस्तुत ग्रन्थ को तीन भागों गद्य,पद्य एवं नाट्य खण्ड में विभाजित किया गया है। गद्य खण्ड में चार आलेख संकलित हैं। ये चारों आलेख कथा साहित्य पर आधारित हैं। पद्य खण्ड में 20 आलेखों का संकलन किया गया है। मुक्तकच्छन्द कविता, गजलगीति, हाइकु, बालसाहित्य आदि नवीन विधाओं की रचनाओं पर युवा समीक्षक ने उपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाई है। साथ ही पारम्परिक छन्दों में प्राचीन एवं नवीन विषयों पर आधारित आलेख भी यहाँ संकलित हैं। नाट्य खण्ड में 2 आलेख हैं।
ये सारे आलेख न केवल कृति की विषय-वस्तु का परिचय ही देते हैं अपितु उसके कथ्य एवं शिल्प को भी उद्घाटित करते हैं। ये आलेख पाठक वर्ग के साथ-साथ शोध के इच्छुक जनों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होंगे। अर्वाचीन संस्कृत साहित्य की जीवंतता का प्रतीक यह ग्रन्थ समीक्षा के क्षेत्र में एक नया सोपान बनेगा। वाग्देवी से यही कामना है कि युवा लेखक डॉ.अरुण कुमार निषाद इसी प्रकार सतत् सुरभारती की सेवा में संलग्न रहें।