सुनो, तुम्हारी कविताएं चेतना हैं,
तुम्हारे बोल बारिश,
तुम्हारे कहन के बीच सुनाई देती है
बादल की गड़गड़ाहट,
तुम्हारा मौन लिख देता है ग्रंथ,
तुम्हारा दर्द में डूबे रहना नहीं जुड़ने देता अणुओं को,
जिससे अधूरी रह जाती है कई यौगिक क्रियाएं,
और द्रव्य नही छू पाता धरातल,
तुम्हारी तल्खी भी कुछ जरूरी है क्योंकि,
जो ले आती हैं वक्त पर मौसम,
हाँ ! तुम्हारी संजीदगी से
हवा हो जाती है रूहानी,
तुम्हारे नज़्म से जी उठते है
ठूंठ शजर ,
कुछ देर तुम्हारे ठहरने से झूमते हैं पत्ते,
तुम्हारे सुप्त रहने से नहीं मचलती तितलियाँ,
नहीं स्थानांतरित होते परागकण,
तुम्हारे मुँह फेर लेने से नही चमकती बिजलियाँ,
और वो फलियाँ रह जाती है खाली – खाली,
तुम्हारा न दिखना
खत्म कर देता है गुरुत्वाकर्षण,
तुम्हारा देखना सबब है
दिन-रात का,
सुनो …
तुम लिखा करो
सुनो तुम दिखा करो
जनवरी 2024
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सुनो, तुम लिखा करो
सुनो, तुम्हारी कविताएं चेतना हैं, तुम्हारे बोल बारिश, तुम्हारे कहन के बीच सुनाई देती है बादल की गड़गड़ाहट, तुम्हारा मौन लिख देता है ग्रंथ, तुम्हारा दर्द में डूबे रहना नहीं जुड़ने देता अणुओं को, जिससे अधूरी रह जाती है कई यौगिक क्रियाएं, और द्रव्य नही छू पाता धरातल, तुम्हारी तल्खी भी कुछ जरूरी है क्योंकि,... Read More