दो घटनाएँ
एक चौक पर रोती हुई महिला हर किसी से अपने खोये हुए बच्चे के विषय में पूछती है। लोग टिप्पणी करते हुए निकल जाते हैं, “पैदा तो कर लेते है, लेकिन सम्भाल कर नहीं रख सकते…हराम के पिल्लों को…!”
लोगों के पूछने पर वह कहता है, “सौ रुपये का का एक नोट…।”
कुछ देर बाद उस चौक पर खड़ा हर व्यक्ति कचरे के ढेर मेें नोट खोजने में जुट जाता है।
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दोगलापन
‘‘क्या जमाना आ गया है साहब! लोग कितने संवेदनहीन हो गये हैं। कल मैंने छोटे भाई को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया। उसे ख़ून की आवश्यकता थी। डाॅक्टर से संपर्क करने पर मालूम उसने क्या कहा कि “यहाँ क्या ख़ून का नल लगा हुआ है, जिसे चालू करके ख़ून दे दें।” एक सरकारी बाबू ने अपने पास बैठे दूसरे बाबू से कहा।
सामने बैठी नव विधवा, जो अपने दिवंगत पति के दावों के संबंध में पूछताछ करने आई थी, ने मन ही मन यह सोचकर कि एक संवेदनशील व्यक्ति से उसका सामना हुआ है, उत्साहित होकर अपने आने का प्रयोजन बताया। इस पर उस बाबू के शब्द थे, ‘‘काहे का पैसा…? तेरे मरद ने मरकर क्या सरकार पर एहसान किया है?”