लघुकथा
शमशेर जी प्रसिद्ध लेखक और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता है। सोशल मीडिया पर भी सक्रिय रहते हैं। कवि गोष्ठियों के आयोजन भी करवाते हैं। उपहार में अधिकतर पुस्तकें भेंट करते हैं और इसका प्रचार-प्रसार भी खूब करते हैं। जन्मदिन हो, शादी की सालगिरह हो, परिवार के किसी भी सदस्य के जन्मदिन के अवसर पर ढेरों डायरियाँ, खाली रजिस्टर, पुस्तकें बरामदे में रखवा देते हैं। मित्र परिचित अपनी पसंद की पुस्तकें और डायरियां ले जाते थे। आज भी उन्होंने ऐसा ही किया। हमेशा की तरह पुस्तकें, खाली रजिस्टर्ड, डायरियाँ रख दीं।
उसी दिन अचानक किसी रिश्तेदार की तबीयत खराब होने पर उनको शहर से बाहर जाना पड़ा। दूसरे दिन आकर क्या देखते हैं कि डायरियाँ, रजिस्टर मित्र परिचित ले गए हैं लेकिन पुस्तकें वैसी ही रखी हैं। पुस्तकों के ऊपर एक पर्ची रखी थी, जिस पर लिखा था –
‘कवि महोदय, पुस्तकें ऑनलाइन मोबाइल पर ज्यादातर लोग पढ़ लेते है, सभी पुस्तक प्रेमी और किताबी नशे वाले नही होते। कौन ढोता रहेगा पुस्तकों को? आप किसी कबाड़ी को बेच दीजिए।’