कुसुम बैठी दीवार पर सोना (रक्षाबंधन के चित्र) बना रही थी, तभी उसे पता चला कि उसके भाई कमल की कटने को तैयार खड़ी सारी फसल आग से बर्बाद हो गई। सुनकर उसका जी हलक को आ गया। उसका मन हुआ कि अभी भाग कर मायके पहुंच जाएं। उसके मायके ससुराल में कहने को ज्यादा दूरी ना थी लेकिन घर गृहस्थी के चक्कर में फंसी कुसुम सिर्फ तीज त्योहारों पर ही मायके जा पाती थी।
लेकिन जब उसके पति ने उसको परेशान देखा तो कहा, “जा घर हो आ, सभी को अच्छा लगेगा और तुझे भी थोड़ी तसल्ली हो जायेगी, और हाँ! देख, यहां की फिक्र ना रखियो। दो दिन बाद राखी है आराम से त्योहार मनाना। मैं राखी वाले दिन शाम तक लेने आ पहुँचूंगा।” पति ने कुछ रूपए और जरूरी कागज उसके हाथ में रख दिए, जिसे देखकर कुसुम के चेहरे पर मुस्कान और अपने पति के प्रति आदर का भाव आ गया।
उसने जल्दी- जल्दी बस कुछ जरूरी सामान और मुन्ने (अपने बेटे) का सामान बांधा और सोचा मैं तो अम्मा या भाभी की साड़ी बांध लूंगी। दो दिन का क्या काटना और कौन सा मुझे घूमने जाना है! जब अपने घर में आग लगी हो तो कुछ भी कैसे भा सकता है!
चलते-चलते याद आया भैया की बिटिया के लिए तो कुछ ला ही नहीं सकी। त्योहार है कुछ तो ले जाना ही चाहिए। सोच कर उसने जल्दी से अपना बक्सा खोला और वही पायल निकाल ली जो उसके भाई ने बचपन में राखी पर उपहार में दी थी। इतने में तांगा भी आ गया, उसके पति ने कहा अपना ध्यान रखना, और तांगे वाले को भी समझा दिया। तांगा भी अपनी रफ्तार से दौड़ने लगा। यूं तो कुसुम का मायका दूर नही था लेकिन आज थोड़ी सी दूरी भी कोसों दूर होने का एहसास करा रही थी।
थोड़ी देर में तांगा मायके की दहलीज पर खड़ा था। जाते ही अम्मा ने गले लगा लिया, और भौजाई भी आँखों में आँसू छिपाते पानी का गिलास लेकर आ गई। आज कुसुम ने भाभी को अपने पैर ना छूने दिये , सीधे गले लगा लिया। गांव देहात में आज भी भाभियां नन्द के पांव छूती है। कुसुम ने भौजाई को अपने पास ही खटोले पर बैठाते हुए कहा, “भाभी तुम फिक्र ना करना सब ठीक हो जायेगा।”
कुछ देर बाद जब भैया और बाबूजी चौपाल से लौटे तो खेत में आग के बाबत कुसुम बातचीत करने लगी, तो कमल ने कहा “तू काहे चिंता करें है! जिंदगी में लाभ हानि तो लगे रहवे है। ये सब ईश्वर के हाथ है, तू बता राखी का क्या उपहार चाहिए?”
कहने को तो कमल ने कह दिया, लेकिन मन ही मन चिन्तित था कि किस तरह नुकसान की भरपाई कर पायेगा.. किस के आगे हाथ फैलायेगा।
कुसुम ने कहा,भैया उपहार तो मैं जरूर लूंगी और आपको उपहार में मुझे एक वादा करना होगा कि “हर साल आप फसल का बीमा जरूर कराएंगें, जिससे आप और हम सब निश्चिंत हो सकें। आपकी समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य ही मेरा उपहार है।”
कहकर कुसुम ने झोले में से इस साल के फसल के बीमे के कागज भाई के साथ में थमा दिए, जिसे उसने चुपचाप अपने पति के साथ मिलकर भाई की फसल के लिए कराया था। इसे देखकर भाई की आँखों से आँसू बहने लगे, और बिन कुछ कहे सुने ही दोनों भाई बहन को राखी का उपहार मिल गया।