तन सोना मन काला काजल उससे नयन मिलाएं क्यों,
केवल करते वार हवा में ऐसे तीर चलाएं क्यों।
झूठे रिश्ते, जाली कागज, खोटे सिक्के एक सरीखे
वक्त पङ़े जो काम न आये उनका बोझ उठाएं क्यों।
ना ही वादा ना ही चिठ्ठी ना आने का दिन तय है,
झूठी यादों के जंगल में बोलो दौङ लगाएं क्यों।
किसने कितना पाप किया हैं किसने कितना पून्य कमाया,
सबका लेखा-जोखा करते अपना समय बिताएं क्यों।
गीत, गजल, शब्दों, भावों में खुशबू बनकर बिखरी हूं
मुस्कानों के शिखरों पर हम मौत का खौफ सजाएं क्यों।
जब पुरुषार्थ से बदल लिया हाथों की रेखाओं को,
फिर ‘पूनम’ तकदीरों के सर पर इल्ज़ाम लगाएं क्यों
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