पट्टी अहंकार की बांध जहां
बैठे दुर्योधन शिला प्रासाद,
अंधे का बेटा अंधा हो
फिसलेगा ही विपरीत पाद.
देखो द्वापर में क्या घटा
यह सत्य समझ न आया क्यों,
अहंकार, स्वेच्छा, निरंकुशता
के अस्त्रों ने फुसलाया क्यों?
वह द्यूत क्रीड़ा, मामा शकुनि
ज्यों जीत गया, त्यों भूल गया,
मदमस्त हस्ति सा डोल गया
भाई- भार्या का अपमान किया.
महासभा में केश पकड़
ले आया दुशासन क्रूर,
दुर्योधन ने हुंकार भरी
करो चीरहरण, था मदचूर.
कृष्णा, यज्ञसेनी, पांचाली
द्रुपद- सुता, कुरुवंश की रानी,
ससुर, पितामह, देवर, पतियों
बीच छली गई वह पटरानी.
दुर्गा, चण्डी, काली, ज्वाला
अंधे पहचान नहीं पाए,
महाभारत तो होता ही है
अपमान सीमाएं लांघ जाए.
मत छेड़ो अग्निगर्भा को
हो जाएगा सब तहस- नहस,
जब- जब द्वापर को भूलोगे
महाभारत लेंगे पुनर्जन्म.