संस्मरण – 5
चलिए आज से कुछ दस महीने पीछे चलते हैं, सितंबर 2020 के आस पास।
आदतन, किसी से भी ग़ज़ल की बात होने पर मैं उनसे ज़हीर सर का ज़िक्र करता था। यह भी बताता था कि सर की हिंदी ग़ज़लें उत्तर महाराष्ट्र विश्वविधालय, जलगांव एवं मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, नांदेड़ में स्नातकोत्तर के पाठ्यक्रम में पढ़ाई जाती हैं। ये लोग, जिनको मैं ये सब बातें बताता था, या तो पहले से सर का नाम सुन रखे थे या मुझसे पहली बार सुन रहे थे। ये सभी लोग मुझसे पूछते थे कि सर की ग़ज़लें, कहानियां कहाँ और कैसे पढ़ने को मिलेंगी? चूंकि सर सोशल मीडिया को पसन्द नहीं करते थे इसलिए वहां इनकी रचनाएँ नहीं के बराबर मिलती थीं। कुछ छिटपुट ग़ज़लें गूगल पर ज़रूर मिल जाती थीं। कुल मिलाकर सर की किताबों के अलावा उनको और कहीं पढ़ना लगभग दुरूह-सा था। कहना चाहूंगा कि इन साथियों के सवालों का मेरे पास भी ठीक-ठाक जवाब नहीं होता था।
इसी तारतम्य में मैंने सोचा कि जो छात्र-छात्राएं सर की ग़ज़लों पर पी.एच.डी. कर रहे हैं (बताना चाहूंगा कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) सहित अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राओं द्वारा सर की ग़ज़लों पर किये गए रिसर्च पर कुछ को तो पी.एच.डी. अवार्ड हो चुकी है और कुछ की प्रोसेस में है) उनको सर की ग़ज़लें (स्टडी मटेरियल) कहाँ मिलती होंगी? वो भी तो बहुत परेशान होते होंगे।
ये बातें सोचते-सोचते रात में मुझे एक युक्ति सूझी और मैंने अपनी सलाह के साथ अगले दिन दोपहर में सर को कॉल लगा दिया और सीधे उनके पी.एच.डी स्कॉलर्स को विषय वस्तु की अनुपलब्धता के संबंध में सवाल पूछ दिया कि वे आपकी ग़ज़लें कहाँ और कैसे पाते होंगे? साथ ही शंका व्यक्त की कि उनको बहुत समस्याएं आतीं होंगी। साथ में ये भी बताया कि बहुत से लोग आपको पढ़ना चाहते हैं उनके पास भी आपकी क़िताबें नहीं होतीं। पुराने प्रकाशक भी नहीं मिलते। फिर आपको वो सभी कैसे पढ़ें? इतने वर्षों के साथ में शायद एक मात्र इसी सवाल का जवाब मुझे उनके पास नहीं मिला। मैंने उन्हें बताया, “सर एक तरीका है जिससे आप देश-विदेश में अपने सभी चाहने वालों तक पहुंच सकते हैं” और उनको उनकी वेबसाइट बनवाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा,” मुझे इसके बारे में कोई आईडिया नहीं है कि ये कैसे बनती है”। मैंने कहा यदि आप तैयार हैं तो मैं जानकारी जुटा कर देता हूँ। उनकी सहमति के बाद मैने फ़ोन रख दिया।
मैं जानकारी एकत्र कर ही रहा था कि 2 -3 दिन बाद सर का फ़ोन आ गया और उन्होंने बताया “एक युवा ग़ज़लगो हैं के.पी.अनमोल, जो रुड़की में रहते हैं और मुझे पसंद भी करते हैं, उनका स्वयं का वेबसाइट डेवलपिंग का काम है। उनसे मेरी बात हो गई है और वो भी इस काम को करने के लिए तैयार हैं”। मैं भी बहुत ख़ुश हुआ कि एक ग़ज़लगो यदि इस काम को करें तो निःसंदेह किसी अन्य वेबसाइट डेवलपर से ज़्यादा अच्छा काम होगा और सर को भी मानसिक मेहनत कम करनी पड़ेगी।
शीघ्र ही सर की वेबसाइट पर काम शुरू हो गया फिर मैं लगातार सर से फॉलोअप लेता रहा कि काम कहाँ तक पहुंचा और यथासंभव इस संदर्भ में सुझाव/सलाह देता रहा। करीब 5-6 महीने की मेहनत के बाद वेबसाइट http://zaheerqureshi.com 15 मार्च, 2021 के आसपास बन कर तैयार हो गई।
ज़हीर सर इस समय चंदेरी में थे। सर ने वहीं से फ़ोन कर के ये ख़ुशख़बरी मुझे सुनाई और कहा, चलिए आपके कारण ये भी काम हो गया। मैं भी बहुत ख़ुश था और भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए उनको धन्यवाद बोला। उन्होंने मुझे के.पी.अनमोल जी का मोबाइल नंबर दिया और बताया कि 21 मार्च, 2021 को वेबसाइट को ऑनलाइन लांच करने की बात चल रही है, आप बात कर लें। मैंने अनमोल जी को कॉल किया, वेबसाइट बनाने के लिए उनको धन्यवाद ज्ञापित किया। ग़ज़ल आदि विषय पर बात करते हुए वेबसाइट के लॉन्चिंग की बातें कीं। उन्होंने मुझे ही मंच संचालन के लिए राज़ी कर लिया। पुनः ज़हीर सर से बात की तो उन्होंने बताया कि संस्था कर्मभूमि, अहमदाबाद (संस्थापिका सुश्री नीरजा भटनागर एवं सुश्री प्रीति अज्ञात) के बैनर तले गूगल मीट के द्वारा वेबसाइट लांच किया जाना है जिसमें ज़हीर सर के साथ ही डॉ. मधुर खराटे (वरिष्ठ हिंदी ग़ज़ल आलोचक), श्री हरेराम समीप ( वरिष्ठ ग़ज़लकार एवं हिंदी ग़ज़ल के आलोचक), सुश्री प्रीति अज्ञात (संस्थापक-संपादक, हस्ताक्षर वेब पत्रिका), श्री के पी अनमोल (युवा हिंदी ग़ज़लकार) के अलावा मैं शामिल रहूँगा।
21 मार्च, 2021 सायं 4 बजे कार्यक्रम शुरू हुआ। सभी ने ज़हीर सर के व्यक्तित्व और उनकी रचनाधर्मिता पर अपने उद्गार रखे। ज़हीर सर ने भी अपने वक्तव्य रखते हुए और अपनी कुछ ग़ज़लें सुनाते हुए सभी को धन्यवाद ज्ञापित किया और एक बहुत शानदार तरीके से वेबसाइट का ऑफ़िशियल शुभारंभ किया गया। मुझे और सर को बहुत ख़ुशी तो थी ही जिसको बयान करना मुश्किल है पर मुझे साथ-ही साथ ऐसा लग रहा था, मानो किसी रेगिस्तान में एक दरिया बह निकली हो।
ध्यान रहे, इस वेबसाइट का अनावरण उनके अवसान (20 अप्रैल) से ठीक एक महीने पहले (21 मार्च) को हुआ था। उस ख़ुशी के पल में किसने सोचा था कि एक महीने बाद ऐसा क्रूर दिन देखने को मिलेगा….
क्रमशः …..