वृद्धाश्रम
गुप्ता जी पर भगवान की बड़ी कृपा थी । वे १० की सोचते तो ईश्वर उन्हें १०० देता । गुप्ता जी धनी भी थे और बुद्धिमान भी । अपने पैसों का सदुपयोग करने के लिये तत्पर रहते थे । सहयोग राशि और दान वग़ैरह देने में उनकी बड़ी रूचि रहती थी। घर पर आये हुए किसी भी शख़्स की मदद करने को तत्पर रहते थे। उनके घर से कोई भी ख़ाली हाथ नहीं लौटता था । छोटे क़स्बे में रहते थे इसलिये उनके बारे में सभी लोगों को जानकारी थी। एक बार कुछ समाजसेवी गुप्ता जी से उस क़स्बे में वृद्धाश्रम खोलने के लिये सहयोग राशि लेने आए। गुप्ता जी ने उनका आदर सत्कार तो किया पर सहयोग राशि देने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया। इस बात पर गुप्ता जी में तथा समाजसेवियों में तर्क-वितर्क शुरू हो गया। गुप्ता जी ने कहा कि वे वृद्धाश्रम खोलने के लिये सहयोग राशि देकर बहुत बड़ा पाप नहीं कर सकते। समाज-सेवियों ने तर्क किया कि वृद्धाश्रम के लिये सहयोग राशि देना पाप कैसे हो सकता है, लोग अनाथ- आश्रम भी तो खोलते हैं तथा उसके लिये सहयोग राशि प्रदान करते हैं। गुप्ता जी ने बड़ी तार्किक बात कही, वे बोले “ अनाथ वो है जिसका इस दुनियाँ में कोई नहीं है, जिसे घर की छत नसीब नहीं है तथा जो सड़क पर है। परन्तु वृद्ध वह है जिसका पूरा परिवार है जिसके पास स्वयं की मेहनत से बनाई हुई छत है। आप वृद्धाश्रम खोलकर युवा पीढ़ी को एक ग़लत रास्ता दिखा रहे हैं। आप उन्हें वृद्धों से छुटकारा पाने के लिये एक स्थान उपलब्ध करवा रहे हैं। जैसे ही कोई वृद्धाश्रम खुलता है अधिकाँश युवाओं को अपने माँ-बाप बोझ लगने लगते हैं। उनको एक ऐसा स्थान मिल जाता है जिससे वे इस बोझ से छुटकारा पा सकते हैं। मैं इस पाप के लिये एक रूपया भी नहीं दूँगा। मैं आपसे भी अनुरोध करूँगा कि आप उस घर का पूर्णत: सामाजिक बहिष्कार करें जिस घर के बुज़ुर्गों को वृद्धाश्रम में भेजा जाता है। उनका सम्मान नहीं किया जाता है।” सभी लोग गुप्ता जी की बात को समझ गये। आज उस क़स्बे में वृद्धाश्रम तो नहीं है परन्तु वृद्धों के प्रति सम्मान ज़रूर है।
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प्रतिक्रिया
प्रोफ़ेसर शर्मा दो माह बाद सेवा निवृत होने वाले थे । सेवा पुस्तिका में सभी प्रविष्टियाँ सही अंकित है या नहीं, इस बात की जाँच करवाने में व्यस्त थे । अपने हाथों में सेवा पुस्तिका तथा पत्रों का बड़ा सा पुलिंदा लिये कभी प्राचार्य कक्ष और कभी आफिस के चक्कर लगा रहे थे । आफिस में उनके कुछ परिचित छात्र किसी कार्यवश आये थे और अपने सर के हाथों में इतने सारे काग़ज़ देखकर जिज्ञासावश पूछ बैठे “ ये काग़ज़ किससे सम्बन्धित हैं और आप इन्हें लेकर क्यों घूम रहे हैं?” प्रो . शर्मा ने बताया कि वे दो माह बाद सेवा निवृत हो रहे हैं तथा ये काग़ज़ उसी से सम्बन्धित हैं । छात्रों में से एक छात्र तपाक से बोला “ सर,ये तो बड़ी ख़ुशी की बात है, इस बात पर तो पार्टी बनती है” यह सुनकर प्रो. शर्मा का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया । बोले “ शर्म नहीं आती, मै तुम्हारे पिता जी की उम्र का हूँ, मुझसे तुम पार्टी माँगते हो।” छात्रों ने माफ़ी माँगी और चले गये । कुछ देर बाद छात्राओं का एक समूह किसी कार्यवश आफ़िस में आया और उन्होंने भी शर्मा सर से यही बात पूछी और फिर एक छात्रा ने कहा “ सर, इस बात पर पार्टी तो बनती है ।” शर्मा साहब की आवाज़ में अचानक मधुरता आ गई और बोले “ ज़रूर – ज़रूर, ऐसे अवसर पर पार्टी जरुर बनती है, आप लोग तय करके बतायें कि पार्टी कब और किस जगह पर देनी है।