दोस्तों, हिंदी ग़ज़ल की दस पुस्तकें लिख चुके शिखर ग़ज़लकार और हाल ही में प्रकाशित बेहतरीन पुस्तक “हिंदी ग़ज़ल की अवधारणा” के लेखक, दो कहानी संग्रह (धारणा के दंश एवं कोरोना काल की कहानियां) के कहानीकार एवं अन्य ग़ज़ल संबंधित पुस्तकों के रचयिता, ज़हीर कुरेशी सर को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत है मेरा तीसरा संस्मरण…
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संस्मरण – 3
20 अप्रैल, 2018 के आसपास मैं एक दिन भोपाल रेलवे स्टेशन किसी कार्य से गया। चूंकि ज़हीर सर का घर स्टेशन के बहुत पास ही है, लौटते वक़्त मैंने सोचा कि सर से मुलाक़ात की जा सकती है। दोपहर का समय था। संकोच के साथ मैंने उनके मोबाइल पर कॉल किया। उन्होंने कॉल रिसीव नहीं किया। मुझे लगा विश्राम कर रहे होंगे। एक मिनट बाद ही उनकी कॉल आ गई। मैंने उनका कुशल क्षेम पूछा और बताया कि आपके अपार्टमेंट के पास हूँ, अगर आप विश्राम न कर रहे हों तो आपसे मिलना चाहता हूँ। वो थोड़े परेशान दिखे। उन्होंने बताया, “मेरा ड्राइविंग लाइसेंस एक्सपायर हो रहा है, मैं उसके रिन्यूअल के लिए आर.टी.ओ. ऑफिस जा रहा हूँ, अभी रास्ते में हूँ। आज तो नहीं मिल पाऊंगा, किसी और दिन मिलते हैं”। शायद उन्होंने स्कूटी रोककर मुझे कॉल बैक किया था। सर के पास एक छोटी-सी स्कूटी थी जिस पर वो अपनी छड़ी टिकाकर आस-पास तक ही जाते थे। मैं सोच में पड़ गया। एक पैर में पोलियो के साथ सर कैसे आर.टी.ओ. ऑफिस तक जाएंगे जो उनके घर से क़रीब दस किलोमीटर की दूरी पर है। यूँ समझिए, पुराने भोपाल से नए भोपाल जाना था उनको। मेरी जान पहचान के एक सज्जन, रमाकांत जी आर.टी.ओ. ऑफिस में हैं। अतः मैंने उनको मदद करने की इच्छा जताई। उन्होंने कहा, “अभी मैं अपने से प्रयास कर रहा हूँ, असफल हुआ तो अवश्य आपको बताऊंगा”। मैं वापस अपने घर आ गया पर ध्यान वहीं लगा रहा कि उनके ड्राइविंग लाइसेंस रिन्युअल का क्या हुआ होगा। मैंने रात में ही उनको फ़ोन किया तो उन्होंने बताया, “मेरे पैर में पोलियो के कारण मेरा लाइसेंस रिन्युअल नहीं हो पा रहा है। किसी मझोले अधिकारी ने आपत्ति लगाते हुए मेरे फॉर्म पर कमेंट लिख दिया है”। उन्होंने आगे बताया कि वही “फॉर्म लेकर, स्कूटी चला कर सरकारी अस्पताल (जे पी अस्पताल) जाना है, वहां डॉक्टर द्वारा उनका फिज़िकल टेस्ट होगा, स्कूटी चलाकर दिखाना होगा, जब टेस्ट पास होंगे तब ड्राइविंग लाइसेंस बनने की अनुमति मिलेगी, वो अनुमति पत्र ले जाकर आर.टी.ओ. ऑफिस में देना होगा तब ड्राइविंग लाइसेंस बनेगा”।
मुझे प्रोसेस बहुत लंबा दिखा, मैने रमाकांत जी से मदद लेनी चाही और अगले दिन उनको सब बातें विस्तार से बताई। रमाकांत जी ने विभागीय छानबीन करके बताया, “चूंकि अधिकारी ने उनके कागज़ पर अस्पताल से टेस्ट करा कर रिपोर्ट लगाने की बात लिख दी है, इसलिए अब कुछ नहीं हो सकता। पूरा प्रोसेस करना ही पड़ेगा”। मैंने ज़हीर सर को पूरी बात बताई और उनसे निवेदन किया कि आप स्कूटी से जे.पी.अस्पताल सुबह ग्यारह बजे पहुँचें, मैं अपने घर से वहीं आऊंगा और आपके साथ ही रहूँगा। वो मुझे आने से मना करते रहे पर मेरे बार-बार के निवेदन पर वो मान गए। हम दोनों समय से अस्पताल पहुंच गए, जो उनके घर से 6-7 किलोमीटर की दूरी पर था। पर ये क्या? वहां के स्टाफ ने बताया कि फ़िज़िकल टेस्ट केवल गुरुवार के दिन होता है। मैंने रमाकांत जी को कॉल कर बताया, उनको भी इस संबंध में जानकारी नहीं थी। हम आने वाले गुरुवार को सुबह ग्यारह बजे वहीं मिलने की बात करके, बुझे मन से वापस लौट गए।
अगले गुरुवार हम दोनों फिर नियत समय पर वहीं थे। ज़हीर सर को छड़ी लेकर सीढ़ियों पर चलने में दिक्कत हो रही थी। मैंने उनका बैग अपने हाथ मे लेकर दूसरे हाथ से उनका हाथ थामा और धीरे-धीरे पहली मंज़िल पर उस डॉक्टर के पास पहुंच गए। वहां कम से कम पचास लोगों की भीड़ थी। मैंने ज़हीर सर को उनके सारे डॉक्यूमेंट्स, भरा हुआ फॉर्म लेकर वहीं किनारे एक बेंच पर बैठा दिया और लाइन में लग गया। लाइन आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। थक कर मैं नियम तोड़ते हुए अंदर, डॉक्टर के पास चला गया। वो नाराज़ हुए। मैंने कहा कि मुझे पता है मैंने ग़लत किया पर जिस सज्जन को मैं लेकर आया हूँ, वो बुजुर्ग भी हैं और अपने देश के बहुत बड़े साहित्यकार भी, पैर में पोलियो है। आप उनका टेस्ट ज़रा जल्दी से कर लीजिए तो बड़ी मेहरबानी होगी। उन्होंने साफ मना कर दिया और नंबर से आने को कहा। मैं वापस लाइन में लग गया। ख़ैर, क़रीब तीन घंटे बाद नंबर आया। डॉक्टर ने पैर का टेस्ट करने के बाद ड्राइविंग लाइसेंस के लिए मना कर दिया। मैंने और ज़हीर सर ने उनको समझाया कि पैर की इसी अवस्था मे पहले तो लाइसेंस बना था फिर इस बार क्या समस्या है? ज़हीर सर ने उनको स्कूटी चलवा कर टेस्ट करने की भी बात की। पता नहीं कैसे अंततः डॉक्टर महोदय तैयार हो गए। उन्होंने बिना स्कूटी चलवाये, फॉर्म पर “ओ.के” लिख दिया। काम यहीं पर समाप्त नहीं हुआ। अब वो फॉर्म लेकर हमें दूसरे डॉक्टर के पास जाना था जहां पर सर्टिफिकेट बनना था। वहां पर वो डॉक्टर लापता। क़रीब एक-दो घंटे खोजने के बाद मैं उनको क़रीब-करीब पकड़ कर उनके केबिन में लाया। आने के बाद उन्होंने ये कहते हुए सर्टिफिकेट बना दिया कि “पता नहीं डॉक्टर साहब ने कैसे ओ.के. कर दिया”। सर्टिफिकेट हाथ मे लेकर ऐसा लगा हमने आधा युद्ध जीत लिया हो। हम दोनों ने एक दूसरे को देखा, मुस्कुराए। ज़हीर सर ने मुझे “धन्यवाद” बोला, जिसे मैंने उनको सप्रेम वापस कर दिया। मैंने रमाकांत जी को सर्टिफिकेट बन जाने की बात बताई और आगे का प्रोसेस पूछा। उन्होंने कहा कि अब सर को एक बार फ़ोटो खिंचवाने आर.टी.ओ. ऑफिस आना होगा। फिर एक-दो दिन में डाइविंग लाइसेंस आपको मिल जाएगा, कुछ फ़ीस भी उन्होंने बताई। हम दोनों क़रीब शाम छः बजे वापस अपने घर पहुंचे।
अगले दिन मैं ज़हीर सर को उनके घर से अपनी कार में लेकर आर टी ओ ऑफिस पहुंचा। वहां उन्होंने लाइन में लगकर फ़ोटो खिंचवाया, फीस जमा किया। रमाकांत जी ने बताया कि कल आपको ड्राइविंग लाइसेंस मिल जाएगा। ज़हीर सर को आने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने मुझे ही अगले दिन आकर कलेक्ट करने को कहा। अगले दिन उनका ड्राइविंग लाइसेंस मेरे हाथ मे था। मैंने उनको फ़ोन करके ये ख़ुशख़बरी बता दी। वो भी ख़ुश थे और पुनः मुझे धन्यवाद प्रेषित किया जिसे मैंने फिर से सादर वापस कर दिया। उन्होंने कहा, “आप जब भी मेरे घर की तरफ आएं, लेते आइएगा, अभी कोई जल्दी नहीं है”। मैं कुछ एक सप्ताह बाद उनके घर पहुंच कर उनका नया लाइसेंस उनको सौंपा। निश्चित ही हम दोनों बहुत प्रसन्न थे। बातें चल ही रहीं थीं कि आंटी चाय-नाश्ता लेकर आ गईं। सर ने हँसते हुए उनको भी इस कई दिनों की मशक्कत और दौड़ भाग के बाद मिली विजय की गाथा सुनाई।
निकलते-निकलते मैंने उनसे कहा, “सर, आपको जानने वाले क़रीब-क़रीब सभी सरकारी विभागों में और बहुत ही ऊँचे पदों पर लोग होंगे, कुछ को तो मैं भी जानता हूँ, आप चाहते तो उनसे मदद ले सकते थे। आपको इतनी परेशानी नहीं होती”। उन्होंने कहा, “मैं तन से थोड़ा अक्षम ज़रूर हूँ, पर मन से नहीं”। अपने जवाब में आगे उन्होंने मुझसे पूछा,”मनीष, आप ममता तिवारी जी को जानते हैं”? मैंने “हां” में सिर हिलाया और आगे बोला, “अभी कुछ दिनों पहले दुष्यन्त कुमार संग्रहालय (उस समय संग्रहालय भोपाल में ही माता मंदिर के पास होता था) में आयोजित काव्य गोष्ठी में, जिसकी आपने अध्यक्षता की थी, वो भी वहां थीं। वो एक बहुत अच्छी कवयित्री हैं और मैंने देखा कि वो आपका बहुत सम्मान भी करती हैं”। मैंने एक सांस में ही सारी बातें कह दीं। तब उन्होंने मुस्कुराते हुए बताया, “उनके पति संजय तिवारी जी ही इस समय भोपाल के आर टी ओ हैं”।
मैं अवाक!! अगले 5-10 सेकंड उनको देखे जा रहा था….
उस दिन जब मैं उनके घर से बाहर निकलते समय उनका चरण स्पर्श कर रहा था, मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा के भाव असीमित थे।
क्रमशः….