
'लड़की घर भी संभाल लेगी, और मैडल भी जीत लेगी'. टोक्यो ओलंपिक में भारतीय महिला एथलीटों के उत्कृष्ट प्रदर्शन से उत्साहित लोग सोशल मीडिया पर कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया दे रहे हैं. मनोबल बढ़ाने के उद्देश्य से कही गई ये बात तथ्यात्मक रूप से बिल्कुल सही है. लड़कियों के लिए हमारे समाज में जिस तरह का वातावरण मौजूद है, उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए कई सामंजस्य बैठाने पड़ते हैं. 'घर संभालने' की अदृश्य जिम्मेदारी का दबाव उनमें से एक है. फिलहाल इस बात को मैं महिला-पुरुष वाली डिबेट में नहीं ले जाना चाहती. और ओलंपिक में पदक जीतने के साथ देश का मान बढ़ा रही बेटियों के आनंद में अपनी खुशी को महसूस करना चाहती हूँ. क्योंकि, इन खिलाड़ियों के पूरे होते सपने लाखों-करोड़ों लड़कियों को सपने दे रहे हैं.
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प्रीति अज्ञात