मूल्याँकन
लोक एवं व्यवस्था के संदर्भों को चीन्हते नवगीत
– भवेश दिलशाद…
मूल्याँकन
लोक एवं व्यवस्था के संदर्भों को चीन्हते नवगीत
– भवेश दिलशाद…
कविता-कानन
दोगे न मेरा साथ
मैंने चाहा है
हमारा साथ हो
धूप …
ग़ज़ल-गाँव
ग़ज़ल-
ये न समझो कि कोई फ़रिश्ता हूँ मैं
अपने किरदार …
उभरते-स्वर
मुफ़लिसी और अमीरी
सच कहूँ अगर मैं
बड़ा भाग्यशाली हूँ
क्योंकि …
कविता-कानन
बोरसी
हमारी बोरसी खो गई है
हीटर, ब्लोअर की गर्मी में…
विमर्श
सामाजिक संघर्ष के आईने में किन्नर समाज
– अकबर शैख़
मानव …