1. मेरे हिस्से की धूप
मूल लेखिका: इरम रहमान, लाहौर
अनुवाद : हसनैन आक़िब, भारत
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मेरे हिस्से की धूप खा गई
ये ज़िंदगी मेरा सारा रूप खा गई
मैं नीले आसमान को तरसती रही
मैं क़ैद रही
दुखों के तह खाने में
और कहीं रिम झिम बारिश बरसती रही
मेरे कदमों तले बस गीली रेत थी
मैं गिरती रही और चलती रही
आबला पा रही इस रेगज़ार में
तमाशा बनी दुनिया के बाज़ार में
मेरे इर्द गिर्द बस ख़ार थे
मुझे लूटने को सब तय्यार थे
मेरे ज़ख्म रिसते रहे
सब मेरी बेबसी पर हंसते रहे
ऊंचाईयों से मैं फिसलती रही
कभी दलदल में पैर धंसते रहे
मैं अंधेरों की बासी बन गई
मेरी पहचान उदासी बन गई
मैं थी प्रेम नगर की शाहज़ादी
और मुहब्बत की प्यासी बन गई।।
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2. मेरा दिल क्या कहता है
मूल लेखिका: इरम रहमान, लाहौर
अनुवाद : हसनैन आक़िब, भारत
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मेरा दिल क्या कहता है
ओ हमदम!
सुनो ज़रा!
वादा वफ़ा करने मत आना
अपना अहद निभाने
मत आना
तुम जाओ
दरया दरया
अपनी प्यास बुझाओ
जिन आँखों में चाहो, डूबो
जिस दिल में चाहो, बेख़ुद उतरो
मेरी जलन
आवाज़ न देगी
अपने माज़ी का राज़ न देगी
तुम जब थक जाओ
रंग बिरंगे चेहरों से
तुम उकता जाओ
एक जैसे शाम सवेरों से
मेरी चाहत
याद बन कर
तुम्हारे अंदर
सिसकने लगे
मेरी मुहब्बत
आग बन के
तुम में दहकने लगे
और मुझे पाने की लौ
इतनी तेज़ हो जाए
बरसात भी तुम से कहने लगे
लौट जाओ
लौट जाओ
तब
लौट आना
मैं तुम्हें वहीँ मिलूँगी
जहां तुम मुझे छोड़ गए थे
मेरा दिल तोड़ गए थे
फिर भी
बस
लौट आना
मैं तुम्हें यहीं मिलूंगी।।
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3. सुनो! तुम याद आते हो
मूल लेखिका: इरम रहमान, लाहौर
अनुवाद : हसनैन आक़िब, भारत
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सुनो तुम याद आते हो
बहोत प्यार से मुझ को
जब रिम झिम बूँदें बरसती हैं
जब खन खन चूडिय़ां खनकती हैं
आंखों में भरा काजल
हंसते हंसते बहता है
जब मुंडेर पर कागा काएं काएं करता है
जब कोई जुदाई का ज़िक्र करता है
दिल तुम से मिलने की फ़िक्र करता है
तुम्हें देखने को
रूह मचलती है
पुरनम आंख तरसती है
शब के पिछले पहर
दिल में हूक सी उठती है
बे-तरतीब सी धडकन
सीने में मचलती है
बिना परवाने आस की शमा
तन्हा पिघलती है
जब धीरे धीरे
पत्ते सरसराते हैं
जब मुस्कराते होंट
कपकपाते हैं
जब पंछी गीत गाते हैं
दिन रात, सारे लम्हे
तन्हा बीत जाते हैं
तुम
बहोत याद आते हो
बहोत प्यार से मुझ को
बहोत याद आते हो।।