विमर्श
हिन्दी व्याकरण की परंपरा में किशोरीदास वाजपेयी
– धर्मवीर
किसी भी भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिये उसके व्याकरण की जानकारी होना अत्यावश्यक है। हिंदी भाषा का व्याकरण लिखने का प्रयास काफी पहले आरंभ हो चुका था। हिंदी व्याकरण रचना का प्रारम्भ प्राय: विदेशी विद्वानों द्वारा किया गया। हिंदी व्याकरण को लिखने का प्रयास संस्कृत और अँग्रेजी व्याकरण पद्धति से आरंभ हुआ। हिंदी व्याकरण लेखन में किशोरीदास वाजपेयी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। इन्होंने कामता प्रसाद के व्याकरण लेखन की कमियों को दूर करने का प्रयास किया।
हिन्दी व्याकरण की धारा में आचार्य किशोरीदास वाजपेयी की महत्वपूर्ण भूमिका है। इनका व्याकरण वास्तव में ऐसा पहला ग्रंथ सिद्ध हुआ, जिसने इस भाषा के सारे प्रयोगों तथा व्याकरण के सभी अंगों का समाहार करते हुए, ऐसा व्यवस्थित ढाँचा तैयार किया, जो आज तक कायम है। किशोरीदास वाजपेयी जी ने एक भाषा वैज्ञानिक के रूप में हिंदी की अशुद्धियों का परिमार्जन कर परिनिष्ठित हिन्दी का आदर्श रूप स्थापित किया। भाषा के मानकीकरण हेतु इन्होंने महत्वपूर्ण प्रयास किये। किसी भाषा के व्याकरण का निर्माण उसके साहित्य की पूर्ति का कारण होता है और उसकी प्रगति में सहायता देता है। जिस प्रकार किसी संस्था को सुव्यवस्थित रूप से चलाने के लिए सर्वसम्मत नियमों की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार भाषा की कमियों को दूर करने और उसे व्यवस्थित रूप में रखने के लिये व्याकरण ही सर्वोत्तम साधन है।
आचार्य किशोरीदास वाजपेयी ने हिंदी को परिष्कृत रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इनसे पूर्व हिंदी का कोई व्यवस्थित व्याकरण नहीं लिखा गया था। अतः आपने अपने अथक प्रयास और ईमानदारी से हिंदी भाषा का परिष्कार करते हुए व्याकरण का एक सुव्यवस्थित रूप निर्धारित कर नए मानदंड स्थापित किये। वाजपेयी जी की प्रतिभा को पहचानने और जानने का कार्य सर्वप्रथम पंडित राहुल सांकृत्यायन ने एक लेख ‘किशोरीदास वाजपेयी’ (1954) के ज़रिए किया। राहुल जी ने न सिर्फ उनकी प्रतिभा को पहचाना बल्कि उन्होंने लोगों से इस संदर्भ में अपील भी की कि वे वाजपेयी जी की प्रतिभा का सदुपयोग करें। वाजपेयी जी मूलत: भाषा के पारखी थे, उन्होंने भाषा के साथ-साथ साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों में भी काम किया है। राहुल सांकृत्यायन जी ने अपने लेख ‘किशोरीदास वाजपेयी’ में वाजपेयी जी के बारे में बताया है कि “मैं जिन विषयों पर अच्छा लिख सकता हूँ, वे ये हैं-
1. काव्य के तत्व, रस, शब्दशक्ति, अलंकार आदि।
2. हिंदी का व्याकरण
3. निरुक्त
4. हिंदी साहित्य का इतिहास
5. बहुविज्ञापित हिंदी का रहस्यवाद
6. कांग्रेस युग का राजनीतिक इतिहास
7. धर्म विज्ञान
8. शब्द शिल्प
प्राय: इन सभी विषयों के नमूने मैं देख चुका हूँ। अब यह देश पर अवलंबित है कि कोई मुझसे काम ले या न ले।” आचार्य वाजपेयी जी की चिंतन दृष्टि पैनी एवं समय सदुपयोगी थी। वह पल-पल, क्षण-क्षण का मूल्य जानते थे और उसका उपयोग करना चाहते थे।
डॉ. अनंत चौधरी ‘हिंदी व्याकरण का इतिहास’ में लिखते है कि “हिंदी व्याकरण का निर्माण कार्य, हिंदी भाषा के उद्भव के लगभग सात सौ वर्ष बाद, सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम चरण में, हिंदी गद्य के सूत्रपात के साथ ही साथ प्रारंभ हुआ।”1 व्याकरण वह विद्या है, जिसका संबंध भाषा से है। ‘हिन्दी शब्दानुशासन’ में यह वाक्य सार्थक प्रतीत हो रहा है। जिस प्रकार बालक ‘बोलना’ पहले सीखता है, सही ग़लत की परवाह नहीं करता, शुद्ध बोलना बाद में। ठीक वैसे ही कोई व्यक्ति भाषा पहले सीखता है, व्याकरण बाद में। इस संसार में भाषा का निर्माण पहले हुआ और व्याकरण का बाद में। व्याकरण के संदर्भ में आचार्य किशोरीदास वाजपेयी जी का मत है कि “जब कोई भाषा विकसित होकर पूर्ण हो जाती है, जब वह अपने कामकाज में किसी दूसरी भाषा की मोहताज नहीं रहती और उसमें साहित्य रचना भी होने लगती है, तब उसका व्याकरण बनता है। तब उसके अंग प्रत्यंग का विश्लेषण निरूपण किया जाता है। यही व्याकरण है। जैसी भाषा है, उसका ज्यों का त्यों रूप व्याकरण में आना चाहिए।”2
उनके प्रसिद्ध ग्रंथ हैं- ‘ब्रजभाषा का व्याकरण’, ‘हिन्दी निरुक्त’, ‘अच्छी हिन्दी’, ‘हिन्दी शब्दानुशासन’, ‘भारतीय भाषाविज्ञान’, ‘हिन्दी वर्तनी और शब्द विश्लेषण’ आदि। उनके कार्य का महत्व इसलिए है कि भाषाविज्ञान को उन्होंने शुद्ध भारतीय दृष्टि से लिया है। अंग्रेज़ी की कोई भी छाप उनके लेखन पर नहीं है। किशोरीदास वाजपेयी ने जीवनपर्यंत हिन्दी को स्वतंत्र भाषा के रूप में विकसित करने के लिए प्रयास किये थे। किशोरीदास वाजपेयी को हिन्दी का प्रथम वैज्ञानिक भी कहा जाता है।
वाजपेयी जी व्याकरण संबंधी यह परिभाषा न सिर्फ हिंदी की कमी को पूरी करती हैं बल्कि जनता से सीधे जुड़ी होने के कारण हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मजबूत भी करती हैं। ‘हिंदी शब्दानुशासन’ सन 1958 में नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित हुआ। ‘हिंदी शब्दानुशासन’ के परिपेक्ष्य में वाजपेयी जी की व्याकरणिक दृष्टि को निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित कर देखने का प्रयास किया गया है- वर्ण के रूप में, शब्द के रूप में तथा वाक्य के रूप में।
हम यह कह सकते हैं कि वाजपेयी जी ने हिंदी व्याकरण के क्षेत्र में नए प्रतिमान स्थापित किये हैं। राहुल जी लिखते हैं- “वे ‘अवधि’ के सुपुत्र हैं और ‘ब्रज’ एवं ‘कौरवी’ की भूमि में एकांतवासी होकर उन्होंने जिस तरह व्याकरण का मनन किया है, वह साधारण नहीं बल्कि असाधारण व्यक्तित्व के रूप में है।”3
वाजपेयी जी ने हिंदी व्याकरण को सुव्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया। इनके ग्रंथ के आधार पर परवर्ती व्याकरणों का विकास हुआ।
‘हिंदी शब्दानुशासन’ की रचना प्रक्रिया के पीछे एक लंबा इतिहास है। हिंदी भाषा को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए प्रयास करते रहें। इस भाषा का कोई परिनिष्ठित व्याकरण न होने के कारण वाजपेयी जी ने ‘हिंदी शब्दानुशासन’(1958) में ग्रंथ की रचना की, जिससे विश्वविद्यालय स्तर तक पढ़ाया जा सके। इस व्याकरण के रचना की पूर्व कामता प्रसाद गुरु ने ‘हिंदी व्याकरण’ (1920) की रचना करके अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी। गुरुजी ने अंग्रेजी पद्धति को ध्यान में रखकर व्याकरण रचा। उन्होंने कहा भी है कि यह व्याकरण अधिकांश अंग्रेजी भाषा के व्याकरण के ढंग पर लिखा गया है। इस व्याकरण के अनुसरण का मुख्य कारण यह है कि हिंदी के आरंभ से ही इसी प्रणाली का उपयोग किया गया है और आज तक किसी लेखक ने संस्कृत का कोई पूर्ण आदर्श उपस्थित नहीं किया है। गुरुजी की संस्कृत प्रणाली वाली व्याकरण की कमी को किशोरीदास वाजपेयी ने दूर किया। उन्होंने संस्कृत व्याकरण के आधार पर हिंदी व्याकरण बेहद सरल तरीके से लिखी। वाजपेयी जी ने हिंदी व्याकरण की परंपरा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “हिंदी प्राकृत परंपरा की भाषा है और इसका अपना विपुल शब्द भंडार है। संस्कृत साहित्य में उपलब्ध अनंत शब्द राशि भी, इसकी अपनी ही संपत्ति है और संस्कृत के धातु तो अटूट शब्दस्रोत के रूप में इसे प्राप्त है। हिंदी एक स्वतंत्र भाषा है और किसी भी भाषा के मूल शब्द उसका ‘मूलधन’ है।”4
1. क्रियापद
2. अव्यय
3. विभक्तियाँ
4. सर्वनाम
ये चार प्रमुख स्तंभ है, जिस पर भाषा का अस्तित्व टिका रहता है।
हिंदी व्याकरण के क्षेत्र में पं. किशोरीदास वाजपेयी नवीन चेतना के अग्रदूत बनकर आये। वे इस बात की घोषणा करने वाले प्रथम वैयाकरण हैं कि हिंदी एक स्वत्रंत भाषा है। वह संस्कृत से अनुप्राणित आवश्यक है, जैसे अन्य भारतीय भाषाएँ परन्तु वह अपने क्षेत्र में सर्वभौम सत्ता रखती है। यहाँ उसके अपने नियम कानून लागू होते हैं। उसमें संस्कृत या अन्य भाषाओं में आने वाले शब्द उसकी अपनी प्रजा है। उन पर वह अपने नियमों से शासन करेगी। वाजपेयी जी ने एक भाषा-वैज्ञानिक के रूप में हिन्दी की अशुद्धियों को परिष्कृत कर हिन्दी का आदर्श रूप स्थापित किया।
संदर्भ-
1. डॉ. अनंत चौधरी, हिंदी व्याकरण का इतिहास (बिहार हिंदी ग्रन्थ अकादमी, पटना,1972)
2. आचार्य किशोरीदास वाजपेयी, हिंदी शब्दानुशासन (नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, 1958)
3. राहुल सांकृत्यायन, किशोरीदास वाजपेयी (1954) निबंध
4. आचार्य किशोरीदास वाजपेयी, हिंदी शब्दानुशासन (नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, 1958)
– धर्मवीर