लेख
हिन्दी विश्व- मोनिका अग्रवाल
क्या आप जानते हैं कि भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है! जबकि भारत के हर राज्य में अपनी एक अलग भाषा बोली जाती है। हिन्दी, विश्व के तीस से अधिक देशों जैसे मॉरिशस, फिजी, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, अमरीका आदि देशों में पढ़ी और पढ़ाई जाती है। यहाँ हिन्दी के प्रति लोगों का विशेष लगाव है। मैं यह बात यूँ ही नहीं कह रही। मेरा भाई और उसका परिवार लगभग 20 साल से अमेरिका में रह रहा है। लेकिन जब-जब उन लोगों से मिलना होता है, कभी भी हिंदी की वजह से शर्मिंदा नहीं होना पड़ा। भले ही वह अमेरिका में सिर्फ इंग्लिश में बात करते हैं। लेकिन मातृभाषा के प्रति उनका प्रेम इसी बात से समझ आता है कि उन्हें हिंदी बोलते हुए ज़रा-सी भी हिचक नहीं होती। यही नहीं मेरे माता-पिता का हर साल कुछ महीनों के लिए अमेरिका जाना होता है। वहाँ भाई भाभी के मित्रों से मिलना होता है। वह लोग भी बहुत आत्मीयता से मिलते हैं और हिंदी में बात करते हैं। आपसी बातों को समझने के लिए, हिंदी सबसे सरल भाषा लगती है।
दूसरा उदाहरण मैं आपको अपनी एक सखी, रीता कौशल जी का दूंगी। जो पिछले 15 सालों से आस्ट्रेलिया में रहती है और वहाँ रहते हुए भारत भारती, हिंदी समाज ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया, जैसे मंच से हिंदी का प्रचार और प्रसार कर रही हैं। अगर सुखद पहलू देखा जाए तो अच्छी बात यह है कि विदेशों में रहने वाले भारतीयों के बीच, भारतीय संस्कृति व भाषा सीखने की रुचि बढ़ी है। यही कारण है कि कई विदेशी देशों ने भारतीय अध्ययनों को बढ़ावा देने के लिए, अपने यहाँ हिंदी सीखने के लिए अध्ययन केंद्र स्थापित किए हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण अमेरिका, आस्ट्रेलिया और सिंगापुर हैं। यहाँ कुछ स्कूलों ने फ्रेंच, स्पैनिश और जर्मन के साथ एक विदेशी भाषा के रूप में हिंदी को शुरू करने का फैसला लिया है। इससे भी हिंदी को वैश्विक पहचान मिली है। विश्वभर में जिस तरह हिंदी की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है उसी तरह हिंदी भाषा के क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ते जा रहे हैं।
दुखद पहलू यह है कि आज भी भारत में अधिकतर अभिभावक अपने बच्चों का दाख़िला, ऐसे स्कूलों में करवाना चाहते हैं, जो अंग्रेज़ी माध्यम से शिक्षा प्रदान करते हैं। यदि घर मेंबच्चा, आने वाले अतिथियों को अंग्रेज़ी में कविता सुना दे तो माता-पिता का मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है। जबकि मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चे के लिए सर्वाधिक आसान भाषा, अपनी मातृभाषा ही है और मातृभाषा में किसी भी बात को भली-भांति समझ सकता है।
भारत में भले ही अंग्रेज़ी बोलना सम्मान की बात और हिंदी बोलना शर्म की बात मानी जाती हो, पर विश्व के बहुसंख्यक देशों में अंग्रेज़ी का इतना महत्त्व नहीं है। हिंदी बोलने में हिचक का एकमात्र कारण पूर्व प्राथमिक शिक्षा के समय अंग्रेज़ी माध्यम का चयन किया जाना है। हिंदी केवल15 अगस्त और 26 जनवरी पर पढ़ी जाती है। इसके बाद कोई हिंदी नहीं बोलना चाहता। अंग्रेज़ी भाषी विद्यालयों में तो किसी विद्यार्थी द्वारा हिंदी बोलने पर जुर्माना होता है। वैसे भी अंग्रेजी में बात करना स्टेटस सिंबल बन गया है। क्याहोगा ऐसे बच्चों का भविष्य जो हिंदी और अंग्रेजी के बीच फंस गए। शायद हम सब भूल गए हैं कि दुनिया में हिंदी का परिचय बतौर विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कराया था। जहाँ भारतीय नेता विदेशों में हिंदी बोलने में संकोच करते हैं, वहीं चार अक्टूबर 1977 को दौरान संयुक्त राष्ट् रअधिवेशन में वाजपेयी जी ने हिंदी में भाषण दिया और खुशी व्यक्त करते हुए, उन्होंने इसे अपने जीवन का अब तक का सबसे सुखद क्षण बताया था।
हिन्दी की इस दुनिया में ‘हिन्दीविश्व’ की जनसंख्या कम नहीं है। यह विशाल हिन्दी विश्व, विभिन्न देशों में फैला हुआ है, जिससे एक माला में पिरोने की जरूरत है ताकि इसकी शक्ति क्षीण न पड़े, इसे संजोना होगा।
आवश्यकता इस बात की है कि हिन्दी विश्व को संजोया जाए, उसे यह अनुभव कराया जाए कि हिन्दी एक प्रतिष्ठा की भाषा है, इसलिए नहीं कि वह शासन-प्रशासन की भाषा है, अपितु इसलिए कि वह सबसे सरल भाषा है। मूल्यों के गिरते बाज़ार में विश्व को अच्छे मूल्यों की चीज़ देने की क्षमता हिन्दी में है। हमें अपनी आत्मा को जगाने की आज सबसे बड़ी आवश्यकता है। विदेशों में हिंदी को हीनभावना से नहीं देखा जाता जबकि भारतीय समाज में हिंदी तुच्छ भाषा समझी जाती है। अतः विश्व हिन्दी की इस भावना को भारत में सबसे पहले विकसित करना होगा। विदेशों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार की बात करते समय, इस बात की ओर प्रमुख ध्यान देकर चलना होगा। अंत में यही कहूंगी-
हिंदी बोलो, हिंदी सीखो, हिंदी में हो काम।
हिंदी से ही प्रगति, हिंदी से ही है नाम।।
– मोनिका अग्रवाल