भाषान्तर
हत्यारे
(अर्नेस्ट हेमिंग्वे की कहानी ‘द किलर्स’ का हिन्दी में अनुवाद)
अनुवादक- सुशांत सुप्रिय
‘हेनरी भोजनालय’ का दरवाज़ा खुला और दो व्यक्ति भीतर आए। वे एक मेज़ के साथ लगी कुर्सियों पर बैठ गए।
“आप क्या लेंगे?” जॉर्ज ने उनसे पूछा।
“पता नहीं।” उनमें से एक ने कहा।” अल, तुम क्या लेना चाहोगे?”
“पता नहीं।” अल ने कहा। “मैं नहीं जानता, मैं क्या लूँगा।”
बाहर अँधेरा होने लगा था। खिड़की के उस पार सड़क की बत्तियाँ जल गई थीं। भीतर बैठे दोनों व्यक्तियों ने मेनू-कार्ड पढ़ा। हॉल के दूसरी ओर से निक ऐडम्स उन्हें देख रहा था। जब वे दोनों भीतर आए, उस समय वह जॉर्ज से बातें कर रहा था।
“मैं सूअर का मुलायम भुना हुआ गोश्त, सेब की चटनी और आलू का भर्ता लूँगा।” पहले आदमी ने कहा।
“यह सब अभी तैयार नहीं है।”
“तो फिर तुमने इसे मेनू-कार्ड में क्यों लिख रखा है?”
“यह रात का खाना है।” जॉर्ज ने बताया। “यह सब आपको छह बजे के बाद मिलेगा।”
जॉर्ज ने पीछे लगी दीवार-घड़ी की ओर देखा।
“अभी पाँच बजे हैं।”
“लेकिन घड़ी में तो पाँच बजकर बीस मिनट हो रहे हैं।” दूसरे आदमी ने कहा।
“घड़ी बीस मिनट आगे चल रही है।”
“भाड़ में जाए तुम्हारी घड़ी।” पहला आदमी बोला। “खाने के लिए क्या मिलेगा?”
“मैं आपको किसी भी तरह का सैंडविच दे सकता हूँ।” जॉर्ज ने कहा। “मैं आपको सूअर का सूखा माँस और अंडे या सूअर का नमकीन माँस और अंडे या फिर टिक्का दे सकता हूँ।”
“तुम मुझे मुर्ग़ का माँस, भुनी हुई मटर, क्रीम की सॉस और आलू का भर्ता दो।”
“यह सब रात का खाना है।”
“हमें जो भी चीज़ चाहिए, वह रात का ख़ाना हो जाता है? तो ऐसी बात है!”
“मैं आपको सूअर का सूखा माँस और अंडे, सूअर का नमकीन माँस और अंडे, कलेजी–”
“मैं सूअर का सूखा माँस और अंडे लूँगा।” अल नाम के आदमी ने कहा। उसने एक टोपी और लम्बा कोट पहना हुआ था, जिसके बटन उसकी छाती पर लगे हुए थे। उसका चेहरा छोटा और सफ़ेद था और उसके होंठ सख़्त थे। उसने रेशमी मफ़लर और दस्ताने पहन रखे थे।
“मेरे लिए सूअर का नमकीन माँस और अंडे ले आओ।” दूसरे आदमी ने कहा। क़द में वह भी अल जितना ही था। हालाँकि उनके चेहरे-मोहरे अलग थे पर दोनों ने एक जैसे कपड़े पहन रखे थे, जैसे वे जुड़वाँ भाई हों। दोनों ने बेहद चुस्त ओवरकोट पहना हुआ था और दोनों मेज़ पर अपनी कोहनियाँ टिकाए, आगे की ओर झुककर बैठे हुए थे।
“पीने के लिए क्या है?” अल ने पूछा।
“कई तरह की बीयर है।” जॉर्ज ने कहा।
“मैं वाक़ई ‘पीने’ के लिए कुछ माँग रहा हूँ।”
“जो मैंने कहा, वही है।”
“यह बड़ा गरम शहर है।” दूसरा आदमी बोला। “इस शहर का नाम क्या है?”
“सम्मिट।”
“क्या कभी यह नाम सुना है?” अल ने अपने साथी से पूछा।
“कभी नहीं।”
“यहाँ रात में तुम लोग क्या करते हो?” अल ने पूछा।
“वे यहाँ आ कर रात का खाना खाते हैं।” उसके साथी ने कहा।” वे सब यहाँ आ कर धूम-धाम से रात का खाना खाते हैं!”
“हाँ, आपने ठीक कहा।” जॉर्ज बोला।
“तो तुम्हें लगता है कि यह ठीक है?” अल ने जार्ज से पूछा।
“बेशक।”
“तुम तो बेहद अक़्लमंद लड़के हो, नहीं?”
“बिल्कुल।” जॉर्ज ने कहा।
“लेकिन तुम अक्लमंद नहीं हो, समझे?” छोटे क़द के दूसरे आदमी ने कहा।” तुम क्या कहते हो अल?”
“यह बेवक़ूफ़ है।” अल बोला। फिर वह निक की ओर मुड़ा।” तुम्हारा नाम क्या है?”
“ऐडम्स।”
“एक और अक़्लमंद लड़का।” अल बोला। “क्या यह अक़्लमंद नहीं है, मैक्स?”
“यह पूरा शहर ही अक़्लमंदों से भरा हुआ है।” मैक्स ने कहा।
जॉर्ज सारा खाना लेकर आया और उसे उनकी मेज़ पर रख दिया।
“तुम्हारा कौन-सा है?” अल ने पूछा।
“क्या तुम्हें याद नहीं?”
“सूअर का सूखा माँस और अंडे।”
“वाह, अक़्लमंद लड़के!” मैक्स बोला। वह आगे की ओर झुका और उसने अपना खाना ले लिया। दोनों बिना अपने दस्ताने उतारे ही खाना खाने लगे। जॉर्ज उन्हें खाते हुए देखता रहा।
“तुम इधर क्या देख रहे हो?” मैक्स ने जॉर्ज से पूछा।
“कुछ नहीं।”
“झूठे, तुम मुझे देख रहे थे।”
“शायद लड़के ने मज़ाक़ में ऐसा किया होगा।” अल ने कहा। जॉर्ज हँस दिया।
“तुम्हें हँसने की इजाज़त नहीं। तुम्हें हँसने की इजाज़त बिल्कुल नहीं है, समझे?”
“ठीक है।” जॉर्ज बोला।
“तो यह समझता है कि यह ठीक है।” मैक्स अल की ओर मुड़ा। “यह समझता है कि यह ठीक है। वाह, यह अच्छी सोच है!”
“अरे, यह दार्शनिक है।” अल ने कहा। वे दोनों खाना खाते रहे।
“उधर बैठे उस लड़के का क्या नाम है?” अल ने मैक्स से पूछा।
“सुनो, अक़्लमंद लड़के।” मैक्स निक से बोला। “तुम अपने दोस्त के साथ उधर दूसरे कोने में चले जाओ।”
“क्या मतलब?”
“कोई मतलब नहीं है।”
“फ़ौरन उस ओर चले जाओ, अक़्लमंद लड़के।” अल बोला। निक ने वैसा ही किया जैसा उसे कहा गया था।
“आप चाहते क्या हैं?” जॉर्ज ने पूछा।
“तुम अपने काम से काम रखो।” अल बोला।” रसोई में कौन है?”
“हब्शी है।”
“हब्शी से तुम्हारा क्या मतलब है?”
“हब्शी रसोइया।”
“उसे यहाँ आने के लिए कहो।”
“आप करना क्या चाहते हैं?”
“उसे यहाँ आने वाले के लिए कहो।”
” आपको क्या लग रहा है, आप कहाँ हैं?”
“अबे स्साले, हमें अच्छी तरह पता है, हम कहाँ हैं।” मैक्स नाम के आदमी ने कहा।” क्या हम बेवक़ूफ़ दिखते हैं?”
“तुम मूर्खतापूर्ण बातें कर रहे हो।” अल ने उससे कहा। तुम इस लड़के से बहस क्यों कर रहे हो?” “सुनो” उसने जॉर्ज से कहा। “हब्शी को यहाँ आने के लिए कहो।”
“आप उसके साथ क्या करने वाले हैं?”
“कुछ नहीं। अपना दिमाग़ इस्तेमाल करो, अक़्लमंद लड़के। हम एक हब्शी के साथ क्या करेंगे?”
जॉर्ज ने हॉल और रसोई के बीच की खिड़की खोल ली। “सैम!” उसने आवाज़ लगाई। “एक मिनट यहाँ आना।”
रसोई का दरवाज़ा खुला और अश्वेत रसोइया हॉल में दाख़िल हुआ।
“क्या बात थी?” उसने पूछा। वहाँ बैठे दोनों अजनबियों ने उस पर निगाह डाली।
“ठीक है, हब्शी। तुम वहीं खड़े रहो।” अल ने कहा। अपने पेट पर कपड़ा लपेटे हुए सैम नाम के उस अश्वेत रसोइये ने उन दोनों की ओर देखा।” जी श्रीमान्” वह बोला। अल अपनी कुर्सी से उठा।
“मैं हब्शी और इस अक़्लमंद लड़के के साथ रसोई में जा रहा हूँ।” उसने कहा। “चलो, वापस रसोई में चलो, हब्शी। अक़्लमंद लड़के, तुम भी उसके साथ जाओ।” अल उस लड़के और सैम नाम के हब्शी के पीछे-पीछे चलता हुआ रसोई में चला गया। बीच का दरवाज़ा बंद हो गया। मैक्स नाम का आदमी वहीं जॉर्ज के पास बैठा रहा। वह जॉर्ज की ओर न देखकर पीछे दीवार पर लगे आदमकद आईने की ओर देखता रहा। ‘हेनरी भोजनालय’ पहले एक सैलून था, जिसे बाद में खाना खाने की जगह में बदल दिया गया था।
“हाँ, अक़्लमंद लड़के।” मैक्स ने आईने में देखते हुए कहा। “तुम कुछ कहते क्यों नहीं?”
“आप लोग आख़िर चाहते क्या हैं?”
“अरे, अल!” मैक्स ने आवाज़ लगाई। “यहाँ यह अक़्लमंद लड़का जानना चाहता है कि हम लोग आख़िर चाहते क्या हैं?”
“तो फिर तुम उसे बता क्यों नहीं देते।” अल की आवाज़ रसोई में से आई।
“तुम्हें क्या लगता है, हम लोग क्या चाहते हैं?”
“मुझे नहीं पता।”
“तुम्हारा ख़्याल क्या है?”
बोलते हुए मैक्स सारा समय आईने में देखता रहा।
“मैं नहीं कह सकता।”
“अरे अल! यह अक़्लमंद लड़का कह रहा है कि यह नहीं कह सकता कि हम लोग क्या चाहते हैं।”
“हाँ, मैं तुम्हें सुन सकता हूँ।” अल ने रसोई में से कहा। उसने रसोई और हॉल के बीच की खिड़की खोल दी थी। “सुनो अक़्लमंद लड़के!” उसने रसोई में से जॉर्ज से कहा। “तुम उस तरफ़ थोड़ी और दूरी पर खड़े हो जाओ। मैक्स, तुम थोड़ा बाईं ओर आ जाओ।” वह किसी समूह की फ़ोटो ले रहे फ़ोटोग्राफ़र जैसा लग रहा था।
“मुझसे बात करो, अक़्लमंद लड़के!” मैक्स ने कहा, “तुम्हें क्या लगता है, यहाँ क्या होने वाला है?”
जॉर्ज ने कुछ नहीं कहा।
” मैं तुम्हें बताता हूँ।” मैक्स बोला। “हम एक स्वीडन-वासी की हत्या करने वाले हैं। क्या तुम उस विशालकाय स्वीडन-वासी ओल एंडरसन को जानते हो?”
“हाँ।”
“वह हर रोज़ रात का खाना खाने यहीं आता है, है न?”
“हाँ, वह कभी-कभी यहाँ आता है।”
“वह यहाँ शाम छह बजे आता है, है न?”
“हाँ, जब कभी वह आता है।”
“वह सब हमें पता है अक़्लमंद लड़के।” मैक्स बोला। “किसी और चीज़ के बारे में बात करो। क्या तुम कभी फ़िल्में देखने जाते हो?”
“कभी-कभार।”
“तुम्हें ज़्यादा फ़िल्में देखनी चाहिए। तुम्हारे जैसे अक़्लमंद लड़के के लिए फ़िल्में देखना अच्छा रहेगा।”
“आप ओल एंडरसन की हत्या क्यों करना चाहते हैं? उसने आपका क्या बिगाड़ा है?”
“उसे इसका मौक़ा ही नहीं मिला। उसने तो हमें देखा भी नहीं है।”
“और वह हमें केवल एक बार ही देख पाएगा।” रसोई में से अल ने कहा।
“तो फिर तुम उसे जान से क्यों मारना चाहते हो?” जॉर्ज ने पूछा।
“हम एक मित्र के लिए उसकी हत्या करने जा रहे हैं। केवल एक मित्र पर अहसान करने के लिए, अक़्लमंद लड़के।”
“चुप रहो।” अल ने रसोई में से कहा।” तुम स्साले बहुत बोलते हो।”
“देखो, मुझे इस अक़्लमंद लड़के का दिल लगाए रखना है। है कि नहीं, अक़्लमंद लड़के?”
“तुम स्साले बहुत ज़्यादा बोलते हो।” अल ने कहा। “यहाँ हब्शी और मेरे वाला अक़्लमंद लड़का ख़ुद से ही अपना दिल लगाए हुए हैं। मैंने इन दोनों को किसी धार्मिक मठ की दो सहेलियों की तरह पीठ के बल एक साथ बाँध दिया है।”
“मुझे लगता है, तुम भी किसी धार्मिक मठ में काम करते थे।”
“क्या पता।”
“तुम ज़रूर यहूदियों के मठ में काम करते होगे। हाँ, वहीं।”
जॉर्ज ने घड़ी की ओर देखा।
“अगर कोई खाना खाने यहाँ आए तो तुम उसे कहना कि रसोइया छुट्टी पर है। अगर वह फिर भी नहीं माने तो…तो तुम उसे कहना कि तुम भीतर रसोई में जा कर उसके लिए बनाकर कुछ ले आओगे। समझे, अक़्लमंद लड़के?”
“ठीक है।” जॉर्ज ने कहा। “बाद में तुम लोग हमारे साथ क्या करोगे?”
“वह कई बातों पर निर्भर करेगा।” मैक्स बोला। “यह उनमें से एक बात है, जिसके बारे में तुम पहले से नहीं जान सकते।”
जॉर्ज ने घड़ी की ओर देखा। सवा छह बज चुके थे। तभी भोजनालय का बाहरी दरवाज़ा खुला। एक कार-चालक भीतर आया।
“हलो, जॉर्ज।” उसने कहा। “क्या मुझे खाना मिल जाएगा?”
“रसोइया सैम बाहर गया है।” जॉर्ज बोला। “वह लगभग आधे घंटे में लौट आएगा।”
“ओह! तब तो मुझे आगे किसी दूसरे भोजनालय में जाना चाहिए।” कार-चालक ने कहा। जॉर्ज ने घड़ी की ओर देखा। छह बजकर बीस मिनट हो रहे थे।
“यह तुमने अच्छा किया, अक़्लमंद लड़के।” मैक्स बोला। “तुम तो बड़े सज्जन निकले।”
“अरे, उसे पता था कि अगर वह कुछ और करता तो…तो मैं उसकी खोपड़ी उड़ा देता।” रसोई में से अल ने कहा।
“नहीं, नहीं।” मैक्स बोला। “यह बात नहीं है। यह अक़्लमंद लड़का बढ़िया है। यह लड़का वाक़ई बढ़िया है। मुझे यह पसंद है।”
छह बज कर पचपन मिनट पर जॉर्ज ने कहा, “ओल एंडरसन नहीं आएगा।”
तब तक भोजनालय में बाहर से दो और लोग आए थे। एक बार जॉर्ज रसोई में गया था और उसने सूअर के सूखे माँस और अंडे का सैंडविच बनाकर उसे काग़ज़ में लपेटकर उस ग्राहक को दे दिया था, जो खाना अपने साथ ले जाना चाहता था। रसोई में उसने टोपी पहने हुए अल को एक कुर्सी पर बैठे हुए देखा था। उसके बगल में उसकी पिस्तौल पड़ी हुई थी। निक और रसोइया सैम कोने में पीठ के बल आपस में बँधे हुए थे। दोनों के मुँह में कपड़ा ठूँस दिया गया था। जॉर्ज ने जल्दी से सैंडविच बनाया, उसे काग़ज़ में लपेटा, उसे एक थैले में डाला और बाहर हॉल में आ गया। ग्राहक ने पैसे दिए और खाने का सामान ले कर चला गया?
“मेरे वाला अक़्लमंद लड़का सब कुछ कर सकता है।” मैक्स बोला।” वह खाना बनाने के अलावा भी बहुत कुछ कर सकता है। तुम किसी लड़की की बढ़िया बीवी बनोगे, अक़्लमंद लड़के!”
“अच्छा?” जॉर्ज ने कहा।” आपका मित्र ओल एंडरसन अब नहीं आएगा।”
“चलो, उसे दस मिनट और देते हैं।” मैक्स बोला।
मैक्स आइने और घड़ी की ओर देखता रहा। घड़ी ने सात और फिर सात बज कर पाँच मिनट बजाए।
“चलो अल।” मैक्स ने कहा। “हमें चलना चाहिए। वह नहीं आएगा।”
“अरे, उसे पाँच मिनट और देते हैं।” अल ने रसोई में से कहा।
उन पाँच मिनटों में एक और व्यक्ति भोजनालय में आया और और जॉर्ज ने उसे बताया कि रसोइया बीमार हो गया था।
” तो तुम दूसरे रसोइये का बंदोबस्त क्यों नहीं करते?” उस आदमी ने नाराज़ होकर कहा। “क्या तुम भोजनालय नहीं चला रहे?” यह कह कर वह बाहर चला गया।
“चलो अल, चलते हैं।” मैक्स ने दोबारा कहा।
“इन दो अक़्लमंद लड़कों और इस हब्शी का क्या करें?”
“इन्हें छोड़ दो।”
“क्या तुम्हें ऐसा लगता है?”
“हाँ, अब हमें इससे कोई लेना-देना नहीं।”
“मुझे यह पसंद नहीं।” अल बोला। “यह बेढंगा तरीक़ा है। तुम बहुत बोलते हो।”
“अबे, छोड़ यार। हमें अपना दिल भी तो लगाए रखना है, है कि नहीं?”
“कुछ भी हो, तुम बहुत बोलते हो।” अल ने कहा।
वह रसोई में से बाहर हॉल में आ गया। उसके चुस्त ओवरकोट की जेब में से उसकी पिस्तौल का उभार साफ़ नज़र आ रहा था। उसने अपने दस्ताने वाले हाथों से उस उभार को ठीक किया।
“फिर मिलेंगे, अक़्लमंद लड़के।” उसने जॉर्ज से कहा। “तुम बेहद किस्मतवाले हो।”
“हाँ, यह सच्ची बात है।” मैक्स बोला। “तुम्हें तो घुड-दौड़ पर पैसा लगाना चाहिए, अक़्लमंद लड़के।”
फिर दोनों भोजनालय के मुख्य द्वार से बाहर निकल गए। जॉर्ज उन्हें सड़क पार करते हुए देखता रहा। अपने चुस्त ओवरकोटों और टोपियों में वे दोनों किसी नाटक-कम्पनी के पात्रों जैसे लग रहे थे। जॉर्ज भीतर रसोई में गया और उसने निक और रसोइये सैम को बाँधने वाली रस्सी खोल दी।
“अब मुझे इस सब से कोई लेना-देना नहीं।” रसोइया सैम बोला। “मुझे इस सब से कोई लेना-देना नहीं।”
निक भी खड़ा हो गया। इससे पहले कभी भी उसके मुँह में कपड़ा नहीं ठूँसा गया था।
“मैं कहता हूँ।” वह बोला। “क्या बेहूदगी थी यह।”
वह शेखी बघार कर इस घटना के बुरे अनुभव से उबर जाना चाहता था।
“वे ओल एंडरसन की हत्या करने वाले थे।” जॉर्ज ने कहा। “जब ओल खाना खाने यहाँ आते तो वे दोनों उन्हें गोली मार देते।”
“ओल एंडरसन?”
“हाँ।”
रसोइया अपने अँगूठे से अपने मुँह के किनारों को महसूस कर रहा था।
“वे दोनों चले गए?” उसने पूछा।
“हाँ।” जॉर्ज बोला। “वे दोनों जा चुके हैं।”
“मुझे यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।” रसोइये ने कहा। “मुझे यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।”
“सुनो!” जॉर्ज ने निक से कहा। “तुम्हें जाकर ओल एंडरसन को यह सब बता देना चाहिए।”
“ठीक है।”
“लेकिन अगर तुम नहीं जाना चाहते, तो मत जाओ।” जॉर्ज बोला।
“इस लफड़े में पड़ने से तुम्हारा कोई फ़ायदा नहीं होगा।” रसोइये सैम ने कहा। “तुम इस सबसे अलग रहो।”
“मैं जाकर उनसे मिलूँगा।” निक ने जॉर्ज से कहा। “वे कहाँ रहते हैं?”
रसोइया मुड़ गया।
“किशोरों की उम्र में लड़के क्या करना चाहते हैं, उन्हें जैसे सब पता होता है।” उसने कहा।
“वे हर्श के मकान में रहते हैं।” जॉर्ज ने निक से कहा।
“मैं वहाँ जाऊँगा।”
बाहर सड़क की बत्तियों की रोशनी पेड़ों की बिन पत्तियों वाली टहनियों के बीच से चमकती दिखाई दे रही थी। निक कारों के पहियों के निशान से भरी सड़क के किनारे-किनारे चलता रहा। अगली बत्ती के पास वह साथ वाली गली में मुड़ गया। तीन मकानों के बाद हर्श का मकान था। निक ने दो सीढ़ियाँ चढ़कर दरवाज़े पर लगी घंटी बजाई। एक महिला ने दरवाज़ा खोला।
“क्या ओल एंडरसन घर पर हैं?”
“क्या तुम उनसे मिलना चाहते हो?”
“हाँ, यदि वे भीतर हैं तो।”
निक उस महिला के पीछे-पीछे कुछ और सीढ़ियाँ चढ़ कर एक गलियारे के अंत में आ गया। महिला ने एक दरवाज़ा खटखटाया।
“कौन है?”
“कोई आपसे मिलने आया है, श्री एंडरसन।”
“मैं निक ऐडम्स हूँ।”
“भीतर आ जाओ।”
दरवाज़ा खोलकर निक भीतर कमरे में चला गया। ओल एंडरसन बाहर जाने वाले कपड़े पहनकर बिस्तर पर लेटे हुए थे। वे अपने ज़माने में एक नामी मुक्केबाज़ थे और अब भी बिस्तर से ज़्यादा लम्बे-चौड़े थे। उन्होंने अपने सिर के नीचे दो तकिये लगा रखे थे। उन्होंने निक की ओर नहीं देखा।
“क्या बात थी?” उन्होंने पूछा।
“मैं ‘हेनरी भोजनालय’ में था।” निक ने कहा, “और दो लोग वहाँ आए। उन्होंने मुझे और रसोइये को बाँध दिया और वे आपकी हत्या कर देने वाले थे।”
निक को यह कहते समय अपनी बात मूर्खतापूर्ण लगी। ओल एंडरसन ने कुछ नहीं कहा।
“उन्होंने हमें रसोई में ले जाकर बाँध दिया।” निक बोलता रहा। “वे आपको तब मार देने वाले थे जब आप रात का खाना खाने वहाँ आते।”
ओल एंडरसन दीवार की ओर देखते रहे और चुप रहे।
“जॉर्ज ने सोचा कि मुझे यहाँ आ कर आपको सब कुछ बता देना चाहिए।”
“मैं इसके बारे में कुछ भी नहीं कर सकता।” ओल एंडरसन ने कहा।
“मैं आपको उनका हुलिया बताता हूँ।”
“मैं उनका हुलिया नहीं जानना चाहता।” ओल एंडरसन ने कहा। उन्होंने दीवार की ओर देखा। “यहाँ आकर मुझे यह सब बताने के लिए शुक्रिया।”
“ठीक है, श्रीमन्।”
निक ने उस लम्बे-चौड़े आदमी को बिस्तर पर लेटे हुए देखा।
“क्या आप इसके बारे में जाकर पुलिस से नहीं मिलना चाहते?”
“नहीं।” ओल एंडरसन ने कहा। “इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा।”
“क्या मैं इस बारे में किसी भी तरह से आपकी कोई मदद कर सकता हूँ?”
“नहीं। तुम मेरी कोई मदद नहीं कर सकते।”
“शायद वे दोनों मज़ाक़ कर रहे थे।”
“नहीं। वह कोई मज़ाक़ नहीं था।”
ओल एंडरसन ने दीवार की ओर करवट ले ली।
“दरअसल बात यह है कि….” उन्होंने दीवार की ओर मुँह किए हुए ही कहा, “मैं बाहर जाने के बारे में अपना मन नहीं बना पा रहा हूँ। आज मैं सारा दिन कमरे में ही रहा हूँ।”
“क्या आप इस शहर से बाहर कहीं और नहीं जा सकते?”
“नहीं।” ओल एंडरसन ने कहा। “अब मैं और नहीं भाग सकता। अब कुछ नहीं किया जा सकता।” उन्होंने दीवार की ओर देखा।
“क्या आप अपने बचने का कोई उपाय नहीं कर सकते?”
“नहीं। मैं ग़लत जगह पर फँस गया।” वे उसी सपाट स्वर में बोल रहे थे।” अब कुछ करने की ज़रूरत नहीं। थोड़ी देर बाद मैं बाहर जाने के बारे में अपना मन बना लूँगा।”
“तब तो मुझे जॉर्ज के पास लौट जाना चाहिए।” निक ने कहा।
“फिर मिलेंगे।” ओल एंडरसन ने कहा। उन्होंने निक की ओर नहीं देखा। “यहाँ आने के लिए शुक्रिया।”
निक कमरे से बाहर निकल गया। दरवाज़ा बंद करते समय उसने बाहर जाने वाले कपड़े पहन कर बिस्तर पर लेटे हुए ओल एंडरसन को देखा जो दीवार को घूर रहे थे।
“वे सारा दिन कमरे में ही रहे हैं।” सीढ़ियाँ उतरने पर मकान-मालकिन ने निक से कहा। “श्री एंडरसन, पतझड़ के इतने ख़ूबसूरत दिन आपको बाहर घूम कर आना चाहिए।” “मैंने उनसे कहा भी, लेकिन उनका बाहर जाने का मन ही नहीं था।”
“जी, हाँ। वे बाहर घूमने नहीं जाना चाहते।”
“मुझे अफ़सोस है कि वे ठीक महसूस नहीं कर रहे।” महिला ने कहा। “वे बहुत अच्छे आदमी हैं। क्या तुम जानते हो, वे पेशेवर मुक्केबाज़ थे।”
“हाँ, मैं जानता हूँ।”
“तुम यह बात नहीं जान पाओगे लेकिन उनके चेहरे से पता चल जाता है।” महिला ने कहा। वे दोनों मुख्य दरवाज़े के पास खड़े होकर बातें करते रहे। “वे बेहद विनम्र हैं।”
“ख़ैर, शुभ-रात्रि, श्रीमती हर्श।” निक ने कहा।
“मैं श्रीमती हर्श नहीं हूँ।” महिला ने जवाब दिया। “वे इस जगह की मालकिन हैं। मैं केवल उनके लिए इस जगह की देखभाल करती हूँ। मैं श्रीमती बेल् हूँ।”
“ठीक है। शुभ-रात्रि, श्रीमती बेल्।”
“शुभ-रात्रि।” महिला ने जवाब दिया।
निक अँधेरी गली को पार करके मुख्य सड़क की रोशनी में लौट आया। फिर वह कार के टायरों के निशानों के बगल में चलते हुए ‘हेनरी भोजनालय’ पहुँच गया। जॉर्ज भीतर वाले बड़े हॉल में मौजूद था।
“क्या तुम ओल से मिले?”
“हाँ।” निक ने कहा। “वे अपने कमरे में हैं और वे बाहर नहीं जाएँगे।”
निक की आवाज़ सुन कर रसोइये ने रसोई और हॉल के बीच की खिड़की खोली।
“मैं तो इसके बारे में कुछ भी नहीं सुनूँगा।” उसने कहा और बीच की खिड़की बंद कर ली।
“क्या तुमने उन्हें सारी बात बताई?” जॉर्ज ने पूछा।
“हाँ, मैंने उन्हें बताया लेकिन वे इसके बारे में पहले से ही जानते थे।”
“अब वे क्या करेंगे?”
“कुछ नहीं।”
“वे दोनों उन्हें मार देंगे।”
“हाँ, शायद ऐसा ही होगा।”
“ज़रूर उन्होंने शिकागो में किसी से दुश्मनी मोल ले ली होगी।”
“हाँ, शायद यही बात रही होगी।”
“यह बड़ी भयावह बात है।”
“हाँ, यह वाक़ई भयावह है।” निक ने कहा।
कुछ देर वे दोनों चुप रहे। जॉर्ज ने एक गीला कपड़ा लेकर पास की मेज़ को पोंछ दिया।
“पता नहीं उन्होंने क्या किया होगा?”
“किसी को धोखा दिया होगा। वे लोग इसी के लिए हत्याएँ करते हैं।”
“मैं यह शहर छोड़ कर कहीं बाहर चला जाऊँगा।” निक ने कहा।
“ठीक है।” जॉर्ज ने कहा। “ऐसा करना ही ठीक होगा।”
“मैं तो यह सोच कर ही काँप जाता हूँ कि कमरे में बिस्तर पर पड़े श्री ओल को सब पता है कि हत्यारे उनकी हत्या कर देंगे। यह एक भयानक जानकारी है।”
“ख़ैर” जॉर्ज बोला। “बेहतर होगा कि तुम इसके बारे में सोचो ही नहीं।”
– सुशांत सुप्रिय